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चौपाल पर अब न लोग, न हुक्के की गुड़गुड़ाहट

गांव के चौपाल में अब बैठकों का दौर थम सा गया है। पहले जहां हुक्के की गुड़गुड़ाहट सुनाई देती थी वहां अब हुक्का तो दूर की बात लोग भी बहुत ही कम नजर आते हैं। अब गांवों में भी शहरों की तरह लोगों का खाली वक्त घर के बाहर नहीं बल्कि घर के अंदर बीत रहा है। सुरहेड़ा 1

By JagranEdited By: Published: Tue, 26 May 2020 09:48 PM (IST)Updated: Wed, 27 May 2020 06:10 AM (IST)
चौपाल पर अब न लोग, न हुक्के की गुड़गुड़ाहट
चौपाल पर अब न लोग, न हुक्के की गुड़गुड़ाहट

गौतम कुमार मिश्रा, पश्चिमी दिल्ली

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गांव के चौपाल में अब बैठकों का दौर थम सा गया है। पहले जहां हुक्के की गुड़गुड़ाहट सुनाई देती थी, वहीं अब हुक्का तो दूर की बात लोग भी बहुत ही कम नजर आते हैं। अब गांवों में भी शहरों की तरह लोगों का खाली वक्त घर के बाहर नहीं, बल्कि घर के अंदर बीत रहा है।

सुरहेड़ा 18 के प्रधान देवेंदर बताते हैं कि देहात में अब कोरोना के कारण कई चीजें बदलनी शुरु हो गई हैं। कोरोना के कारण अब लोगों को अपने स्वास्थ्य की चिता सताने लगी है। कोरोना दूसरी बीमारियों की तरह नहीं है, जिसमें केवल वही व्यक्ति प्रभावित होता है जिसे बीमारी है। देवेंदर बताते हैं कि कोरोना के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसका संक्रमण एक व्यक्ति से अनेक व्यक्ति में फैल सकता है। इसके कारण लोग अपने स्वास्थ्य के साथ दूसरों की भी फिक्र करने लगे हैं। यानि सामाजिक पहलू से देखें तो लोगों को अब खुद के साथ-साथ दूसरों के बारे में भी सोचना पड़ रहा है। आप अकेले नहीं हैं, आपके साथ और भी लोग हैं। इसको देखते हुए अब लोग ज्यादातर समय घर के भीतर बिताने लगे हैं। पहले खाली समय में ग्रामीण इलाकों में लोगों का वक्त चौपाल में हुक्का पीने या ताश खेलने में बीतता था। अब ऐसा नहीं हो रहा है। लोग घर में रह रहे हैं। एक बात और जो ग्रामीण इलाकों में नजर आने लगी है, वह है स्वास्थ्य को लेकर फिक्र। अब लोग स्वास्थ्य को लेकर पहले की तुलना में ज्यादा सजग हैं। हर व्यक्ति अपनी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। सुबह लोग अब सैर करने अवश्य निकलते हैं, खानपान में पौष्टिक चीजों का ध्यान रखा जा रहा है। कई लोगों ने श्वास से जुड़ी इस बीमारी के बारे में सबकुछ जानने के बाद धूम्रपान छोड़ दिया है। ये सब कुछ ऐसे बदलाव हैं जो ग्रामीण क्षेत्र में सकारात्मक माहौल बना रहे हैं। लेकिन सबकुछ सकारात्मक ही हो, ऐसा नहीं है। देहात की जीवनशैली में लोगों का आपस में मिलना-जुलना और बातचीत बेहद जरूरी है। लेकिन अब कोरोना के कारण आपस में मुलाकात, बातचीत का दौर कम हो रहा है, जो सही नहीं है। इधर सुरहेड़ा गांव से कई किलोमीटर दूर इसापुर गांव में भी अब कोरोना के कारण यहां के ग्रामीणों को जीवनशैली में बदलाव महसूस हो रहा है। अब यहां भी हुक्के की गुड़गुड़ाहट कम सुनाई देती है। गांव के युवक जो रोज सुबह या शाम के समय सैर के दौरान एक दूसरे से रोजाना मिलते थे, बातों का दौर चलता था, पूरे गांव का जायजा लिया जाता था, अब यह सब नहीं हो रहा है। अब मेलजोल वास्तविक नहीं, बल्कि आभासी दुनिया में हो रहा है।


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