हरियाणा के विवादित अफसर खेमका पर पहलवान योगेश्वर दत्त का ट्वीट- ऐसे अफसर से राम बचाए
हरियाणा सरकार द्वारा खिलाड़ियों की कमाई का हिस्सा मांगने के बाद पिछले दिनों शुरू विवाद खत्म होता नजर नहीं आ रहा है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। हरियाणा सरकार द्वारा खिलाड़ियों की कमाई का हिस्सा मांगने के बाद पिछले दिनों शुरू विवाद खत्म होता नजर नहीं आ रहा है। ताजा मामले में हरियाणा खेल विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी अशोक खेमका द्वारा जारी अधिकृत अधिसूचना पर पहलवान योगेश्वर दत्त ने ट्वीट कर कटाक्ष किया है। उन्होंने अपने ट्वीट में कहा है- 'ऐसे अधिकारी से राम बचाए'।
पहले ट्वीट में उन्होंने लिखा है- 'इनको ये भी नहीं पता कि प्रो-लीग जब होती है तो जो खिलाड़ी विभिन्न कैंपों में रहते हैं, इसमें हिस्सा लेते हैं। कितनी बार छुट्टियों का अप्रूवल कहां-कहां से लेते रहेंगे। अनुभव है कि नामचीन खिलाड़ी जब साहब को सलाम नहीं ठोकते तो नए पैंतरे अपनाते हैं उन्हें अपने पीछे भगाने के।'
वहीं, दूसरे ट्वीट में और जोरदार हमला करते हुए योगेश्वर ने कहा- 'ऐसे अफसर से राम बचाए, जब से खेल विभाग में आए हैं तब से बिना सिर-पैर के तुगलकी फरमान जारी किए जा रहे हैं। हरियाणा के खेल विकास में आपका योगदान शून्य है...।'
वहीं ट्वीट के बाद इस मुद्दे पर हरियाणा के खेल मंत्री अनिल विज का बयान भी आया है। अनिल विज का कहना है कि खेल विभाग में इस प्रकार के नियम पहले से हैं और इसमें कुछ नया नहीं है।
दूसरी ओर गीता और बबिता ने सरकार के फैसले पर ट्वीट कर विरोध किया है। गीता ने कहा कि सरकार खेलों को खत्म करने के राह पर है।
इसलिए शुरू हुआ विवाद
गौरतलब है कि 30 अप्रैल को हरियाणा खेल विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी अशोक खेमका द्वारा अधिकृत एक अधिसूचना जारी की गई। इसमें कहा गया था कि प्रोफेशनल प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों विज्ञापन से होने वाली कमाई का एक-तिहाई हिस्सा हरियाणा स्पोर्ट्स काउंसिल में जमा किया जाएगा। इन पैसों का इस्तेमाल खेलों के विकास के लिए किया जाएगा। इसमें प्रदेश सरकार द्वारा नौकरी पर रखे गए खिलाड़ी भी शामिल हैं।
फैसले की बारीकी को समझना होगा, हम खिलाडिय़ों के हक में
वहीं, अशोक खेमका ने इस पर सफाई दी है। उन्होंने कहा कि सरकार के फैसले को गलत ढंग से परिभाषित किया जा रहा है। इस फैसले की भावना को समझना होगा। हमने पहली बार खिलाडिय़ों को प्रोफेशनल खेलने तथा विज्ञापन करने की अनुमति प्रदान की है, जो खिलाडिय़ों के हक में बड़ा फैसला है। पेशेवर खेलों में खिलाड़ी किसी देश को नहीं बल्कि पैसे को चुनता है। बीसीसीआइ जब किसी खिलाड़ी को खिलाती है तो उसे पैसा देती है। आइपीएल में जब कोई खिलाड़ी खुद खेलता है तो उसकी बोली लगती है। बस यही तकनीकी अंतर है। अब खिलाड़ी खुलकर खेलें और विज्ञापन करें। हम सहयोग करेंगे। बस, उन्हें कुछ हिस्सा खेल व खिलाडिय़ों के कल्याण के लिए देना होगा।