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World Heart Day: जान ही नहीं, रिश्ते भी बचाता है दिल का दान; जानिए नोएडा और बड़ौत के इन लोगों की कहानी

अंगदान से सिर्फ किसी की जान नहीं बचती बल्कि कई रिश्ते भी बच जाते हैं। किसी का बेटा किसी का भाई किसी का पिता किसी का पति या पत्नी सहित कई रिश्ते एक साथ बच जाते हैं। जानिए बड़ौत और ग्रेटर नोएडा के रहने वाले दो शख्स की कहानी।

By Ranbijay Kumar SinghEdited By: GeetarjunPublished: Thu, 29 Sep 2022 07:27 PM (IST)Updated: Thu, 29 Sep 2022 07:27 PM (IST)
World Heart Day: जान ही नहीं, रिश्ते भी बचाता है दिल का दान; जानिए नोएडा और बड़ौत के इन लोगों की कहानी
जान ही नहीं, रिश्ते भी बचाता है दिल का दान; जानिए नोएडा और बड़ौत के इन लोगों की कहानी।

नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। अंगदान से सिर्फ किसी की जान नहीं बचती, बल्कि कई रिश्ते भी बच जाते हैं। किसी का बेटा, किसी का भाई, किसी का पिता, किसी का पति या पत्नी सहित कई रिश्ते एक साथ बच जाते हैं। अब ऐसा ही महसूस करते हैं छह साल पहले अंगदान से मिले दिल से नई जिंदगी पाने वाले 50 वर्षीय यज्ञवीर आर्य, जो उत्तर प्रदेश के बड़ौत के रहने वाले हैं।

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विश्व हृदय दिवस के मद्देनजर फोर्टिस एस्कार्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट में राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (नोटो) और कार्डियक सर्जरी के डाक्टरों के संगठन (इंडियन एसोसिएशन आफ कार्डियोवैस्कुलर-थोरेसिक सर्जन) द्वारा अंगदान के प्रति जागरूकता के लिए आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। उनकी तरह हृदय प्रत्यारोपण के कई अन्य लाभार्थियों की जिंदगी भी संवर रही है।

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15 ही काम कर रहा था हृदय

यज्ञवीर ने बताया कि वह हरियाणा के सोनीपत में एक निजी कंपनी में बतौर इलेक्ट्रिक इंजीनियर नौकरी करते थे। 41 साल की उम्र में छह माह के अंतराल पर दो बार हार्ट अटैक हुआ। दोनों बार एंजियोप्लास्टी हुई। दूसरी बार हार्ट अटैक के बाद हृदय की मांसपेशियां काफी कमजोर हो गईं। इस वजह से हृदय 15 प्रतिशत ही काम कर पा रहा था।

छूट गई थी नौकरी

इससे जीवन संकट में दिखने लगा। वह ठीक से सांस नहीं ले पाते थे। कुछ कदम चलने पर सांस फूलने लगती थी। इस वजह से नौकरी भी छूट गई। फोर्टिस में जब वह इलाज के लिए पहुंचे तो डाक्टरों ने पहले ही दिन कह दिया कि हृदय प्रत्यारोपण ही इलाज का एकमात्र उपाय बचा है, लेकिन अंगदान कम होने से डोनर मिलना मुश्किल है।

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कुछ माह बाद अस्पताल से पहली बार डोनर उपलब्ध होने की सूचना आई तो उन्होंने यह सोचकर मना कर दिया कि प्रत्यारोपण सफल होगा या नहीं? अक्सर मरीज यह गलती करते हैं। दूसरी बार अस्पताल से प्रत्यारोपण के लिए जब बुलावा आया तो वह अस्पताल पहुंचे और फरवरी 2016 को उनका हृदय प्रत्यारोपण हुआ। 21 दिन वह अस्पताल में भर्ती रहे।

अब चलाते हैं स्कूल

प्रत्यारोपण को छह साल हो चुके हैं और वह बिल्कुल ठीक हैं। बड़ौत में ही 10वीं तक निजी स्कूल चलाते हैं और डोनर का परिवार उनके लिए फरिश्ते से कम नहीं। वह कहते हैं कि अंगदान की कमी के कारण दिल खराब होने की बीमारी से पीड़ित हजारों मरीज हर साल दम तोड़ देते हैं। यदि हादसे के शिकार ज्यादातर लोगों का अंगदान सुनिश्चित हो तो बहुत मरीजों की जान के साथ-साथ कई रिश्ते भी बचाए जा सकते हैं।

हृदय प्रत्यारोपण के बाद हुई शादी

हृदय प्रत्यारोपण के एक अन्य लाभार्थी ग्रेटर नोएडा के रहने वाले 22 वर्षीय प्रिंस विधूड़ी ने बताया कि किशोरावस्था में अचानक दिल की बीमारी होने का पता चला। वह ठीक से सांस नहीं ले पा रहे थे। भूख भी नहीं लग रही थी। जांच में पता चला कि हृदय में सूजन हो गई थी और यह 15 प्रतिशत ही काम कर रहा था।

जनवरी 2015 में उनका हृदय प्रत्यारोपण हुआ, तब उनकी उम्र 16 साल थी। प्रत्यारोपण के बाद युवा होने पर उनकी शादी हुई और सामान्य जीवन व्यतीत भी कर रहे हैं। अभी उनके दो बच्चे (एक बेटी व एक बेटा) हैं।


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