पर्यावरण संरक्षण का संदेश देगा विश्व पुस्तक मेला, लगेंगे 1600 स्टॉल्स
6 जनवरी से 14 जनवरी तक प्रगति मैदान में 9 हजार लेखकों को पढऩे का मौका मिलेगा। देश-दुनिया के एक हजार से ज्यादा प्रकाशकों का जमावड़ा नि:संदेह इस अवसर को त्योहार के मानिंद बना देता है।
नई दिल्ली [ जेएनएन ]। मेट्रो सिटी की भागमभाग भरी जिंदगी में किताबें सुुकून का पर्याय बन चुकी है। जहां, ना केवल खुद का वजूद तलाशने का मौका मिलता है, बल्कि दुनिया को देखने और समझने का एक नया नजरिया विकसित होता है। कुछ इसी मकसद को साकार करने की कल्पना के साथ 46 साल पहले शुरू हुआ विश्व पुस्तक मेला एक बार फिर नए कलेवर में हाजिर है।
6 जनवरी से 14 जनवरी तक प्रगति मैदान में 9 हजार लेखकों को पढऩे का मौका मिलेगा। देश-दुनिया के एक हजार से ज्यादा प्रकाशकों का जमावड़ा नि:संदेह इस अवसर को त्योहार के मानिंद बना देता है। प्रदूषण पर मचे हो हल्ला के बीच पुस्तक मेले की महत्ता इसलिए भी बढ़ जाती है क्यों कि इस बार थीम वातावरण और जलवायु परिवर्तन है।
पर्यावरण संरक्षण का देगा संदेश
इस वर्ष की थीम वातावरण और जलवायु परिवर्तन है। प्रगति मैदान के हॉल नंबर-7 में थीम मंडप बनाया जाएगा। इसमें हर भारतीय भाषा में प्रकृति और प्रदूषण पर प्रकाशित पुस्तकों की प्रदर्शनी लगाई जाएगी। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के चेयरमैन बलदेव शर्मा ने बताया कि राजधानी दिल्ली प्रदूषण की मार से बेहाल है। ऐसे में विश्व पुस्तक मेला एक उम्मीद लेकर आया है। मेले में पर्यावरण संरक्षण को प्रमुखता से दर्शाया गया है। पर्यावरण पर पहली बार देश के कोने-कोने से 500 किताबें जुटाई गई है।
प्रत्येक वर्ग तक पर्यावरण संरक्षण का संदेश पहुंचे इसके लिए ये किताबें अलग अलग भाषाओं में चुनी गई है। इसके अलावा सेमिनार आयोजित किए जाएंगे। सोनल मान सिंह और मालिनी अवस्थी लोकगीतों के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का संदेश देंगी।
पंजाब की काली नदी को फिर से जीवित करने वाले बलबीर सिंह सीचेवाल की कहानी से दर्शक रूबरू हो पाएंगे। पर्यावरण संरक्षण पर अनुपम मिश्र को याद करते हुए न्यास ने एक वृतचित्र तैयार की है। साथ ही अनुपम मिश्र की किताब आज भी खरे है तालाब पर एक नाटक का भी मंचन होगा। बतौर अतिथि शामिल यूरोपियन यूनियन भी पर्यावरण संरक्षण का संदेश देती चित्र प्रदर्शनी लगाएगी।
सन 1972 में शुरू हुआ सफर
भारत ही वह देश है जिसने विश्व को शून्य का ज्ञान दिया। किताबों का प्रचलन भी हमारे देश में काफी पहले ही शुरू हो चुका था। रामायण, महाभारत जैसे महाकाव्य हमारे देश में हजारों साल पहले ही लिखी जा चुकी थी। आजादी के बाद से ही एक ऐसे मंच की तलाश शुरू हो गई थी जहां जहां पर विश्व की लोकप्रिय किताबें, सुप्रसिद्ध लेखक और प्रकाशक एकत्रित हों। सबमें प्रत्यक्ष वैचारिक आदान प्रदान हो।
इससे न केवल किताब से जुड़े सभी लोगों को एक प्लेटफार्म मिले बल्कि प्रकाशकों को पाठकों की रूचि जानने, समझने का मौका मिले, जिससे वे और बेहतर किताबें छापने के लिए उत्साहित हो। विश्व पुस्तक मेला उसी सोच की देन है।
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के पदाधिकारियों ने बताया कि पहला विश्व पुस्तक मेला 18 मार्च से 4 अप्रैल 1972 तक चला। करीब 6790 स्कवायर मीटर एरिया में लगे मेले में 200 प्रकाशकों ने हिस्सा लिया। इसके बाद प्रत्येक दो साल बाद मेले का आयोजन होता था।
सन 2000 में आयोजित मेले में अब तक के सर्वाधिक प्रकाशक भाग लिए। मेले में 1281 प्रकाशकों ने भाग लिया था। पहला पुस्तक मेला विंडसर प्लेस पर आयोजित हुआ था लेकिन उसके बाद के मेले प्रगति मैदान में ही आयोजित हुए।
नौ हजार लेखकों की पुस्तकें
इस बार मेले में 30 विदेशी प्रकाशक भी भाग लेंगे। इस वर्ष यूरोपियन यूनियन को अतिथि देश के रूप में आमंत्रित किया गया है। पदाधिकारियों की मानें तो आयोजन का उद्देश्य लोगों में पुस्तकों के प्रति रुचि पैदा करना है।
मेले में इतिहास, भूगोल, ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, यात्रा, धर्म, भाषा, जीवन-वृत्त, आत्मकथाएं, लोक कथाएं, मनोरंजन, सिनेमा, स्वास्थ्य, सिलाई-बुनाई-कढ़ाई आदि सभी विषयों पर पुस्तकें मिल जाती हैं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि कोई विषय ऐसा नहीं होता, जिस पर विश्व पुस्तक मेले में पुस्तक न मिले।
इस वर्ष प्रगति मैदान के पुनर्विकास कार्यों के चलते मेले का आकार छोटा हो गया है। प्रगति मैदान के हॉल 7ए से एच, 8, 9, 10, 11, 12 और 12 ए में पुस्तक मेले के 1600 स्टॉल्स होंगे, जहां दुनियाभर के करीब 9 हजार लेखकों की किताबें पाठकों के लिए लायी जाएंगी।
गीत-संगीत की भी सजेगी महफिल
राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के मुताबिक पुस्तक मेले में 11 जनवरी को हंस ध्वनि थियेटर में पुस्तक प्रेमियों के लिए मुशायरा आयोजित होगा। इस मुशायरे में वसीम बरेलवी और गुल्जार दहलवी समेत देश के 18 प्रसिद्ध शायर शिरकत करेंगे। इसके अलावा मालिनी अवस्थी भी अपनी आवाज से लोगों का मनोरंज करेगी।