Move to Jagran APP

Farmer Protest: क्या शाहीन बाग पर दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खुद पर लागू करेंगे किसान?

शाहीनबाग का मामला जब सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था तब कोर्ट ने भी अपने फैसले में कहा था कि अगर आपको आंदोलन करना है तो जरूर कीजिए यह आपका अधिकार है परंतु ऐसी जगह कीजिए जहां जनता को परेशानी न हो। जहां आवागमन में कोई रुकावट न हो।

By Mangal YadavEdited By: Published: Wed, 07 Apr 2021 01:17 PM (IST)Updated: Wed, 07 Apr 2021 01:17 PM (IST)
Farmer Protest: क्या शाहीन बाग पर दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खुद पर लागू करेंगे किसान?
आंदोलन करना है तो जरूर कीजिए यह आपका अधिकार है, परंतु ऐसी जगह कीजिए जहां जनता को परेशानी न हो।

नई दिल्ली। प्रजातंत्र में लोगों को अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है। बशर्ते कि उससे किसी को कोई परेशानी या नुकसान न हो। आप अपनी बात कह सकते हैं, पर उसे जबरदस्ती किसी पर थोप नहीं सकते। दूसरे शब्दों में कहें तो अपने विचारों को दूसरों पर थोपना प्रजातंत्र में उचित नहीं है। यह बात आंदोलन और प्रदर्शन करने वालों पर भी लागू है। उनका अपना विरोध है, अपनी कुछ मांगें हैं, मगर उसके लिए मुख्य मार्ग को अवरुद्ध कर आम जन को परेशान करना उचित नहीं है।

loksabha election banner

शाहीनबाग का मामला जब सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था तब कोर्ट ने भी अपने फैसले में कहा था कि अगर आपको आंदोलन करना है तो जरूर कीजिए यह आपका अधिकार है, परंतु ऐसी जगह कीजिए जहां जनता को परेशानी न हो। जहां आवागमन में कोई रुकावट न हो।

अब किसान करें विचार

दिल्ली की सीमाओं पर जो कुछ भी चल रहा है, उससे हर कोई वाकिफ है। इन रास्तोंके बंद होने से दिल्ली ही नहीं दूसरे राज्यों के लोग भी प्रभावित हो रहे हैं। उनके कारोबार पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। दिल्ली को आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। अपनी मांगों को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर कब्जा जमाना, वहां अवैध निर्माण करना साफ तौर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना है। सरकार इस मामले में जबरदस्ती कुछ भी नहीं करना चाहती, क्योंकि किसानों की हम सब बहुत इज्जत करते हैं। किसान हमारा अन्नदाता है।

इसलिए किसानों को अब स्वयं यह समझ लेना चाहिए कि उन्हें जो बात कहनी थी उन्होंने कह दी अब मार्ग बाधित करने, वहां टेंट लगाने और घर बसाने से क्या लाभ? सरकार तो बात करने को भी तैयार थी। कई दौर की वार्ता भी हुई। डेढ़ साल के लिए कानून स्थगित करने की बात भी कही गई लेकिन किसान अपने जिद पर अड़े हुए हैं कि कानून वापस लो तभी हम बात करेंगे। प्रजातंत्र में ऐसा नहीं होता है।

राजधानी की सरकारों के पास सीमित होते हैं अधिकार

जहां तक दिल्ली के समग्र विकास के लिए बहुनिकाय व्यवस्था और चुनी हुई सरकार को मजबूत बनाने की बात है तो ये दोनों मुद्दे अलग-अलग हैं। यह बात सही है कि किसी भी शहर में बहु निकाय व्यवस्था से विकास कार्य में देरी होती है। किसी भी कार्य के लिए बहुत से विभागों से अनुमति लेनी होती है। लेकिन लाभ भी है कि बहुत सी संस्थाएं शहर के विकास के लिए मिलकर काम करती हैं।

चुनी हुई सरकार का काम व्यवस्था बनाए रखना है। विश्व के किसी भी शहर में देख लें जो शहर देश की राजधानी है या जहां केंद्र सरकार का मुख्यालय है, उस राज्य या शहर की तमाम जिम्मेदारी उसकी केंद्रीय सरकार अपने पास रखती है। अगर ऐसा नहीं होगा तो अव्यवस्था का माहौल बन जाएगा। छोटे मोटे मुद्दों की जिम्मेदारी राज्य सरकार को दी जाती है। देश की राजधानी वाली राज्य सरकारों के पास सीमित अधिकार ही होते हैं। यहां मतदाताओं को ठगे जाने का कोई सवाल ही नहीं है।

(राज्यसभा के पूर्व महासचिव योगेंद्र नारायण से वीके शुक्ला की बातचीत पर आधारित।)

ये भी पढ़ेंः आखिर ऐसा क्या हो गया कुख्यात गैंगस्टर अनिल दुजाना की पत्नी पूजा को चुनाव लड़ने से खींचना पड़ा पांव, जानें वजह


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.