दिल्ली एनसीआर में लापरवाही और प्रदूषण ने बढ़ाई कोरोना संक्रमण की चाल
सवाल यही उठता है कि हम खुद सुधरना नहीं चाहते। नियमों का पालन करना नहीं चाहते। जागरूकता ताक पर है राजनीति चरम पर है। विभाग और प्रशासन भी लापरवाही देख आंखें मूंदे रहे। नियम तोड़ने वालों के खिलाफ जिस सख्ती की जरूरत थी।
नई दिल्ली, जेएनएन। अनदेखी संकट को जन्म देती है। खासकर जानबूझकर की गई गलती हो तो जरूर। बीते पखवाड़े से कोरोना संक्रमण के कारण दिल्ली के जो हालात बने हुए हैं, उससे संक्रमण और मौत का आंकड़ा लगातार रिकार्ड तोड़ रहा है। जहां देशभर में गति धीमी पड़ रही है, वहीं राजधानी में स्थितियां विपरीत बनी हुईं हैं। रियायत तो सभी को मिली थी। अनलाक तो सभी जगह हुआ, लेकिन दिल्ली ने लापरवाही का परिचय बखूबी दिया।
त्योहार में उत्साह और सब कुछ पहले की तरह ट्रैक पर लाने का उतावलापन शायद अधिक ही था, तभी संक्रमण से बचाव के नियम भीड़ में खो गए थे। बाकी कसर चरम पर पहुंचे प्रदूषण ने पूरी कर दी। जिसने लोगों को और अधिक बीमार किया। इस पर राजनीति भी खूब हुई कि प्रदूषण कारक है या भीड़ में उड़ते नियमों से संक्रमण फैल रहा। कारण जो भी हो कोरोना ने रफ्तार नियंत्रित नहीं की। प्रदूषण का स्तर कम करने की तमाम कोशिशें भी विफल साबित हो रही हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि लाख समझाने के बाद भी लोग आखिर क्यों अपनी जान को जोखिम में डालने पर तुले हैं? नियमों के पालन में क्यों बरती जा रही है लापरवाही? दिल्ली एनसीआर में क्यों नहीं थम रही कोरोना की रफ्तार? इसी की पड़ताल करना हमारा आज का मुद्दा है :
जान बचाना हमारी प्राथमिकता : दिल्ली में बीते कुछ दिनों में कोरोना के मामले भले ही तेजी से बढ़े हैं, लेकिन हालात नियंत्रण में है। विशेषज्ञों ने आने वाले दिनों में प्रतिदिन 15 हजार मामले तक आने की बात कही है। हम इसे गंभीरता से ले रहे हैं। उसी अनुसार तैयारियां भी की जा रही हैं। मुख्यमंत्री अर्रंवद केजरीवाल ने केंद्र सरकार को पत्र लिखा था, उसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री से उनकी मुलाकात भी हुई है। केंद्र सरकार ने मदद देने का आश्वासन दिया है। दिल्ली सरकार कोरोना को नियंत्रित करने के लिए हर संभव कदम उठा रही है। हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण है अधिक से अधिक जांच कर संक्रमित लोगों का पता लगाना।
दिल्ली सरकार की सभी डिस्पेंसरी, पालीक्लीनिक व अस्पतालों में जांच की सुविधा दी गई है। अन्य बीमारियों का इलाज कराने जा रहे लोगों की भी पहले कोरोना जांच की जा रही है। 60 हजार लोगों की अभी तक प्रतिदिन जांच की जा रही थी, अब इसे दो गुना कर सवा लाख प्रतिदिन करने जा रहे हैं। जांच के बाद जो लोग संक्रमित पाए जा रहे हैं उन्हें क्वारंटाइन किया जा रहा है। जिनके पास घर में रहने की सुविधा नहीं है, उन्हें कोविड केयर सेंटर में रखा जाएगा। जरूरत होने पर उन्हें अस्पताल में भी भर्ती किया जाएगा।
हम इस बात का भी पूरा ध्यान रख रहे हैं कि घर में रहने वाले मरीज में आक्सीजन का स्तर कम होने पर उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया जाए। मरीज अपने घर पर आक्सीजन का स्तर नापते रहें इसके लिए मरीजों को आक्सीमीटर दिया जा रहा है। उन्हें डाक्टर की सलाह उपलब्ध कराई जा रही है। हमारी प्राथमिकता लोगों की जान बचाना है और हम इसी पर ध्यान दे रहे हैं। हमारा मकसद है कि अगर कोई गंभीर रूप से संक्रमित है तो उसे भी हर हाल में बचाया जा सके। मुख्यमंत्री ने इस पर राय देने के लिए एक कमेटी भी बनाई थी। कमेटी के सुझावों पर अमल किया जा रहा है। सभी से अपील है कि मास्क जरूर लगाएं और शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करें।
गौतमबुद्धनगर के सीएमओ डा. दीपक ओहरी ने बताया कि कोरोना नियंत्रण के लिए लगातार कदम उठाए जा रहे हैं। ठंड में लोगों को और अधिक सतर्क रहने की जरूरत है। जरा सी लापरवाही भी खुद व स्वजनों के लिए परेशानी ला सकती है। लोगों से अपील है कि बेवजह घरों से बाहर नहीं निकलें। मास्क पहनें और समय समय पर हाथ धोते रहें।
गुरुग्राम के सिविल सर्जन डाक्टर विरेंद्र यादव ने बताया कि कोरोना संक्रमण के लिए लोगों की लापरवाही जिम्मेदार है। त्योहारी सीजन में जैसे जैसे बाजारों में लोगों की संख्या बढ़ी, कोरोना मरीजों में भी इजाफा होता गया। मास्क लगाने से प्रदूषण व कोरोना दोनों से बचाव होता है लेकिन इतनी सी बात लोगों को समझ में नहीं आई।
फरीदाबाद के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. रणदीप सिंह पूनिया ने बताया कि कोरोना से निपटने के लिए हमारे पास तीन हजार आइसोलेशन बेड का इंतजाम है। इसके अलावा होम आइसोलेशन की व्यवस्था को बेहतर बनाने का काम किया गया है। संक्रमण की रोकथाम के लिए प्रयास जारी है। ठंड में वायरस सक्रिय हो जाता है। इसकी वजह से मामले बढ़ रहे हैं।
गाजियाबाद के सीएमओ डा. एन के गुप्ता ने बताया कि जिले में एक हजार र्सिवलांस टीमें लगातार निगरानी का काम कर रही हैं। स्थिति नियंत्रण में है। सक्रिय मरीजों की संख्या दो माह से एक हजार या इससे नीचे है। मृत्यु दर बेहद कम है। रोज छह हजार लोगों की जांच की जा रही है।
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