बूंदबूंद पानी को तरसेगी दिल्लीः अब भी नहीं जागे तो विलुप्त हो जाएंगे सभी जल स्रोत
चिंताजनक यह है कि अंधाधुंध शहरीकरण में विकसित होते कंक्रीट के जंगलों के बीच दिल्ली में पहले बरसाती नहर व नाले, झील और तालाब भेंट चढ़े। अब यमुना का अस्तित्व खतरे में है।
नई दिल्ली (रणविजय सिंह)। दिल्ली पेयजल के मामले में भले ही उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड से बेहतर स्थिति में है, लेकिन हाल ही में पानी के लिए वजीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में हत्या और फिर संगम विहार में महिलाओं के बीच मारपीट की घटनाएं भविष्य के लिए खतरे का संकेत दे रहीं हैं। चिंताजनक यह है कि अंधाधुंध शहरीकरण में विकसित होते कंक्रीट के जंगलों के बीच दिल्ली में पहले बरसाती नहर व नाले, झील और तालाब भेंट चढ़े। अब यमुना का अस्तित्व खतरे में है। जल स्रोतों को बचाने के प्रति सरकारी महकमे व लोग अभी जागृत नहीं हुए तो वह दिन दूर नहीं जब यहां भी लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरसेंगे।
एक समय था जब अरावली के आंचल में बैठी दिल्ली में जल स्रोतों की भरमार थी, जो अब एक-एक कर खोते जा रहे हैं। दिल्ली पार्क एंड गार्डन सोसायटी की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में कुल 1012 जलाशय थे। इसमें से 117 जलाशयों पर निर्माण हो चुका है। कई जगहों पर भवन तो कई जगहों पर पार्क विकसित हो गए। इसके अलावा 168 पर अतिक्रमण है, 346 जलाशय सूखे हैं और 313 जलाशयों में कीचड़ व सीवरेज का गंदगी भरा रहता है।
236 विकसित जलाशयों में से सिर्फ पांच में साफ पानी
दिल्ली सरकार के राजस्व रिकार्ड में 629 जलाशय हैं, जिसमें 476 जलाशय सिंचाई व बाढ़ नियंत्रण विभाग व दिल्ली राज्य औद्योगिक ढांचागत विकास निगम (डीएसआइआइडीसी) के अधीन हैं। इसमें से 236 जलाशयों को पक्का किया गया है। फिर भी 121 तालाब सूखे पड़े रहते हैं, क्योंकि तकनीकी कारणों से जलाशयों तक बरसात का पानी नहीं पहुंच पाता। 99 तालाबों में कीचड़ व नौ तालाबों में गंदा पानी भरा होता है। सिर्फ पांच तालाबों में साफ पानी है, जबकि दो तालाबों की स्थिति अच्छी नहीं है। इससे स्पष्ट है कि तालाबों के जीर्णोद्धार पर अब तक सिर्फ पैसे बहाए गए हैं। 240 जलाशयों का जीर्णोद्धार नहीं किया जा सका क्योंकि इसमें से ज्यादातर पर अतिक्रमण और जमीन का विवाद है।
201 बरसाती नाले गटर में तब्दील
जल संचयन को लेकर कराए गए एक अध्ययन के अनुसार दिल्ली में 201 बरसाती नाले थे, जिनमें पहले मानसून के दिनों में बरसात का पानी भरा होता था। नजफगढ़ ड्रेन भी दिल्ली में जल स्रोत का बड़ा माध्यम था। इसकी पहचान राजस्थान व हरियाणा से होकर दिल्ली में यमुना में मिलने वाली बरसाती नदी के रूप में थी। सरकारी उदासीनता से यह सभी सीवरेज के गटर में तब्दील हो चुके हैं।
खत्म होते चले गए गए चेक डैम
जल संरक्षण के लिए सिंचाई व बाढ़ नियंत्रण विभाग द्वारा कराए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि वर्ष 1975 के राजपत्रित दस्तावेज के अनुसार दिल्ली में 17 चेक डैम थे। उनमें बरसात का पानी संरक्षित किया जाता था, जिससे वर्ष 2070-71 तक यहां 1473 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती थी। वर्ष 1975 तक उनमें से सिर्फ आठ चेक डैम बचे थे। अब वे भी नहीं रहे। उनमें से कई चेक डैम के आसपास फार्म हाउस बन गए। इससे यह साबित होता है कि विकास की दौड़ में जल स्रोत नष्ट होते चले गए।
यमुना का 21 किलोमीटर हिस्सा गंदा
दिल्ली में यमुना 51 किलोमीटर लंबी है। यमुना में सीवरेज गिराए जाने के कारण वजीराबाद से ओखला तक 21 किलोमीटर हिस्सा प्रदूषित हो चुका है। स्थिति यह है कि इसके आसपास का भूजल भी इस्तेमाल के योग्य नहीं रहा।