Delhi Congress: कांग्रेस क्यों नहीं पकड़ पा रही है दिल्ली वालों की नब्ज
Delhi Congress कांग्रेस पार्टी जब तक दिल्लीवालों की नब्ज थामने वाले मुद्दों को आवाज नहीं दी जाएगी पार्टी को दिल्ली में जमीन भी वापस नहीं मिल पाएगी फिर चाहे कितनी ही उछल कूद क्यों न कर ली जाए।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। Delhi Congress: दिल्ली कांग्रेस आजकल हर मुद्दा लपकने की कोशिश में लगी रहती है। इस पर भी गौर नहीं किया जाता कि दिल्लीवासियों की कसौटी पर कौन सा मुद्दा खरा उतरेगा और कौन सा नहीं। लॉकडाउन में पहले कांग्रेसी गरीबों को खाना खिलाने में लगे रहे तो फिर मजदूरों को घर भेजने का मुद्दा उठा लिया। अनलॉक में कभी भाजपा और आम आदमी पार्टी के निर्णयों की आलोचना से इतिश्री कर ली जाती है तो अब किसान आंदोलन और हाथरस कांड की मशाल थाम ली। सफाई कर्मियों को वेतन और कोरोना योद्धा का सम्मान एवं मुआवजा दिलाने का मुद्दा भी चल रहा है। दरअसल, पार्टी को अपनी खोई जमीन तलाशना चाह रही है, लेकिन थिंक टैंक की मदद के बगैर। जब तक दिल्लीवालों की नब्ज थामने वाले मुद्दों को आवाज नहीं दी जाएगी, पार्टी की जमीन भी वापस नहीं मिल पाएगी, फिर चाहे कितनी ही उछल कूद क्यों न कर ली जाए।
नेताजी को चाहिए बस एक क्लिक
इन दिनों कांग्रेस नेताओं की यह शिकायत बढ़ती ही जा रही है कि पुलिस उनके साथ सौतेला व्यवहार करती है। अगर कांग्रेसी कोई धरना-प्रदर्शन करे तो उन्हें पांच मिनट के भीतर ही हिरासत में ले लिया जाता है, जबकि आम आदमी पार्टी और भाजपा के प्रदर्शन को छूट दे दी जाती है। इस आशय की शिकायत पुलिस के आला अधिकारियों को भेजी गई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। ऐसे में प्रमुख नेता और पदाधिकारी अब पुलिस द्वारा उन्हें हिरासत लेने के क्रम में अपनी कोई बढ़िया फोटो बनवाने की जुगत में रहते हैं। दरअसल, कुछ आड़े तिरछे पोज क्लिक करवाकर मीडिया के जरिये दिखाने का प्रयास किया जाता है कि जनता की आवाज उठाने पर किस तरह पुलिस की सख्ती बर्दाश्त कर रहे हैं। अगर कोई लाठी लग जाए तो उसकी चोट की भी अलग से फोटो खिंचाई जाती है। कुछ तो वाट्सएप पर प्रोफाइल फोटो भी यही बना रहे हैं।
छोड़ा साथ तो ‘हाथ’ नहीं
दिल्ली कांग्रेस ने अंदरखाते एक नियम बनाया है। इस संघर्षकाल में जो भी पार्टी छोड़कर जाएगा, उसकी वापसी नहीं होगी। हालांकि, इस नियम की औपचारिक घोषणा नहीं की गई है, लेकिन इस पर अमल शुरू कर दिया गया है। पार्टी अब उन्हीं नेताओं-कार्यकर्ताओं को हाथ का साथ दे रही है जो दूसरी पार्टी के हैं। प्रदेश अध्यक्ष अनिल चौधरी के इस निर्णय को कुछ लोग सराह रहे हैं तो काफी खिलाफ भी हैं। खिलाफत करने वालों का सुझाव है कि ऐसी नौबत ही नहीं आनी चाहिए। कोई कार्यकर्ता ऐसा करता है तो उसे बुलाएं और कारणों की पड़ताल कर उसे दूर करें। इसके पीछे एक तर्क है कि कांग्रेस के ही कार्यकर्ताओं के सहारे आम आदमी पार्टी खड़ी हुई है। ऐसे में कार्यकर्ताओं के महत्व के समझना चाहिए। यह सिलसिला चलता रहा तो कहीं कांग्रेस की रीढ़ भी न टूट जाए। मौजूदा राजनीति में फिलहाल ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए।
बदलनी होगी कांग्रेस का रणनीति
इसमें शक नहीं कि सलाम हमेशा उगते सूरज को किया जाता है, डूबते को नहीं। राजनीति में भी कमोबेश यही नियम लागू होता है। पार्टी सत्ता में हो तो हर कोई साथ खड़ा रहता है, लेकिन सत्ता से बाहर होते ही नेताओं-कार्यकर्ताओं की शिकायत बढ़ने लगती है। दिल्ली कांग्रेस के साथ भी ऐसा ही चल रहा है। दिल्ली की सत्ता पर लगातार 15 साल शासन करने वाली कांग्रेस की स्थिति आज यह हो गई है कि करीब दो करोड़ की आबादी वाली दिल्ली में इसके पास दो सौ समर्थक भी नहीं नजर आते। किसी भी मुद्दे पर होने वाले धरने-प्रदर्शन में सौ लोगों को जुटाना भी मुश्किल है। बड़े और प्रमुख नेता तो कहीं नजर ही नहीं आते, जो चेहरे दिखाई देते हैं, उन्हें जनता पहचानती तक नहीं है। यहां तक कि मंचासीन चेहरे भी कमोबेश हर बार लगभग एक जैसे रहते हैं। ऐसे में कांग्रेस को रणनीति बदलनी होगी।
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