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21वीं सदी में सर्दी, गर्मी और बरसात क्यों तोड़ रही सारे रिकार्ड, विशेषज्ञों ने बताई वजह

जलवायु परिवर्तन दिल्ली-एनसीआर ही नहीं देश-दुनिया के लिए भी अब एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। जिस तरह से मौसम की चरम घटनाएं पिछले सभी रिकार्ड तोड़कर नए कीर्तिमान बना रही हैं विशेषज्ञों के लिए भी चिंता का विषय बन गई हैं।

By sanjeev GuptaEdited By: Mangal YadavPublished: Mon, 24 Jan 2022 06:05 AM (IST)Updated: Mon, 24 Jan 2022 08:18 AM (IST)
21वीं सदी में सर्दी, गर्मी और बरसात क्यों तोड़ रही सारे रिकार्ड, विशेषज्ञों ने बताई वजह
21वीं सदी में दिख रहा जलवायु परिवर्तन का अत्यधिक प्रभाव

नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। जलवायु परिवर्तन दिल्ली-एनसीआर ही नहीं, देश-दुनिया के लिए भी अब एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है। जिस तरह से मौसम की चरम घटनाएं पिछले सभी रिकार्ड तोड़कर नए कीर्तिमान बना रही हैं, विशेषज्ञों के लिए भी चिंता का विषय बन गई हैं। 21वीं सदी के 22 वर्षों में तो इसका अत्यधिक प्रभाव देखने को मिल रहा है। आने वाले वर्षों में यह प्रभाव लगातार बढ़ने का अनुमान है। विशेषज्ञों की मानें तो जलवायु परिवर्तन की प्रमुख वजह मानवीय गतिविधियों द्वारा जीवाश्म ईंधन का जलाया जाना और वनों की कटाई है।

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जलवायु परिवर्तन के असर से मौसम चक्र में लगातार बदलाव देखने को मिल रहा है। खासकर पिछले दो दशकों के दौरान सर्दी, गर्मी और मानसून तीनों के ही पैटर्न में बदलाव देखने को मिल रहा है। जनवरी की बारिश ने 122 सालों का रिकार्ड तोड़ दिया तो इससे पहले 2021 में पिछले दो दशकों के दौरान यह तीसरी बार था, जब दिल्ली में मानसून की बारिश ने 1,000 मिमी का आंकड़ा पार किया। दिल्ली में 1,420.3 मिमी बारिश हुई। दिल्ली में 2010 के मानसून में 1,031.5 मिमी और 2003 में 1,050 मिमी बारिश दर्ज की गई थी।

पिछले सात सालों में तेजी से बढ़ी गर्मी

विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के छह सबसे गर्म साल 2015 के बाद ही दर्ज किए गए हैं। इनमे 2016, 2019 और 2020 सबसे गर्म साल रहे हैं। भारत में भी हम इसका असर देख पा रहे हैं। डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2015-19 तक के पांच वर्षों का औसतन तापमान और वर्ष 2010-19 तक के दस सालों का औसतन तापमान सबसे अधिक दर्ज किया गया है। मौसम विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक आरके जेनामनी कहते हैं, 'भारत में भी मौसम की चरम घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। जहां पहले किसी भी मौसम में अधिक तापमान के हालात दो से तीन दिन तक देखने को मिल रहे थे, वो अब बढ़कर सात से आठ हो गए हैं।

ग्रीन हाउस गैसों से बढ़ रहा तापमान

ग्लोबल वार्मिंग का सबसे मुख्य कारण ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को माना जाता है। वर्ष 2019 में कुल ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कार्बन डाइआक्साइड के 59.1 गीगा टन के बराबर था। इसी कारण वर्ष 2019, 2016 के बाद अब तक का दूसरा गर्म साल रहा है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि 21वीं सदी में जलवायु परिवर्तन का असर तेजी से बढ़ा है। कार्बन उत्सर्जन बढ़ने, विकास योजनाओं पर काम होने, हरित क्षेत्र कम होने और लोगों की आय बढ़ने से एसी व वाहन भी बढ़े हैं। इन सबसे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ी है जो जलवायु परिवर्तन के रूप में सामने आ रही है।

-महेश पलावत, उपाध्यक्ष (मौसम विज्ञान एवं जलवायु परिवर्तन), स्काईमेट वेदर

ग्लोबल वार्मिंग के कारण हवाओं का तापमान बढ़ जाता है और उसके बहाव की दिशा बदल जाती है। इसका असर मौसम की चरम घटनाओं के रूप में सामने आता है। उत्तरी ध्रुव क्षेत्र जो कि बेहद ठंडे होते हैं, वहा भी बढ़ते तापमान का असर दिखाई दे रहा है। वे क्षेत्र भी गर्म हो रहे हैं, जिसकी वजह से तूफान और बेमौसमी घटनाओं में इजाफा हो रहा है।

-रिचर्ड महापात्रा, पर्यावरणविद

अब जलवायु परिवर्तन का असर घातक होने लगा है। चिंताजनक यह है कि स्थानीय स्तर पर भी घट रही मारक घटनाओं को रोकने के लिए कोई ठोस नीति और कारगर उपाय अभी तक नहीं हैं।

-सुनीता नारायण, महानिदेशक, सीएसई


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