HC में केंद्र ने कहा, 'कौन ट्रांसजेंडर है? यह प्रमाणित करना राज्यों की जिम्मेदारी'
याची का दावा है कि 19 वर्ष की उम्र से वह महिला की तरह रह रही है। उसके कपड़े, आवाज व रहन-सहन महिला की तरह है।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। किसी व्यक्ति को प्रमाणित करना कि वह ट्रांसजेंडर है या नहीं, यह राज्य सरकार व केंद्र शासित प्रदेशों की जिम्मेदारी है। सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय ने हाई कोर्ट में यह जानकारी दी है।
न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा की पीठ राजधानी के दो ट्रांसजेंडरों (पुरुष से स्त्री) द्वारा सरकारी रिकार्ड में उनका नाम परिवर्तन करने की मांग संबंधी याचिका पर सुनवाई कर रही है।
मंत्रालय ने कहा कि ट्रांसजेंडर समुदाय को होने वाली परेशानियों को लेकर अक्टूबर 2013 में एक कमेटी का गठन किया गया था, जिसने गहराई से रिसर्च कर यह सिफारिश की है कि संबंधित राज्य सरकारें व केंद्र शासित प्रदेश ही ट्रांसजेंडर होने का प्रमाणपत्र जारी करें।
इससे पूर्व केंद्र सरकार की वकील मोनिका अरोड़ा ने अदालत को बताया था कि राइट्स ऑफ ट्रांसजेंडर बिल विगत 2 अगस्त को संसद में पेश कर दिया गया है, जिसमें दोनों याचिकाकर्ताओं के लिए समाधान है। ऐसे में याचिका रद की जाएं।
पेश मामले में याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि उसकी लैंगिक पहचान के चलते उसके साथ भेदभाव किया जा रहा है। अदालत मंत्रालय व नियंत्रक के अधिकारियों को अनुशासनत्मक कार्रवाई के आदेश दे। याची ने अदालत को बताया कि उसकी सेक्सुअल रीअसाइंगमेंट सर्जरी चल रही है।
याची का दावा है कि 19 वर्ष की उम्र से वह महिला की तरह रह रही है। उसके कपड़े, आवाज व रहन-सहन महिला की तरह है, लेकिन उसके पूर्व के सरकारी कागजों व अन्य पहचान पत्रों में उनकी पुरानी फोटो है। जिससे सोसायटी में उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है।
ऐसे में उन्होंने मंत्रालय व नियंत्रक कार्यालय से सरकारी कागजों में अपना नाम व लिंग परिवर्तन के लिए अर्जी दाखिल की। उन्हें अपनी सर्जरी किए जाने के सर्टिफिकेट भी दिए, लेकिन उन्होंने इससे मना कर दिया। ऐसे में अदालत कागजों में उसका नाम व लिंग बदलने का आदेश जारी करे।
याची ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए तर्क रखा है कि लिंग पहचान उनके व्यक्त्वि का अभिन्न अंग है, इसके लिए उन्हें किसी सर्जरी आदि चिकित्सा पद्धति करवाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।