'संग्राम लिख दो, सरोकार लिख दो, मैं डीयू हूं मेरा इतिहास लिख दो'
दिल्ली विश्वविद्यालय की शिक्षा जगत में देश-विदेश तक साख है और वर्ष 2022 में यह अपने स्वर्णिम 100 वर्ष पूरे करेगा।
नई दिल्ली (जेएनएन)। मई, 1922 देशभर में महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन जोर पकड़ चुका था और राजधानी की भूमि पर शिक्षा का एक बीज रोपा जा रहा था। इस बीज से पनपा पौधा स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष में जूझता और सामाजिक सरोकारों से जुड़ता हुआ आज छायादार वृक्ष बन चुका है।
दिल्ली विश्वविद्यालय की शिक्षा जगत में देश-विदेश तक साख है और वर्ष 2022 में यह अपने स्वर्णिम 100 वर्ष पूरे करेगा। डीयू प्रशासन इस खास मौके को यादगार बनाने में अभी से जुट गया है। इसकी तैयारियों में सबसे पहला कदम विवि के इतिहास लेखन के साथ बढ़ाया गया है।
स्वर्णिम इतिहास को सुनहरे शब्द देने के लिए कई प्रस्ताव आए हैं। डीयू ने इस बाबत पिछले दिनों विज्ञापन जारी किया था। इसमें रुचि दिखाते हुए इतिहासकारों व लेखकों ने सुझाव भेजे हैं। 15-20 प्रस्तावों पर विवि प्रशासन अलग-अलग दृष्टिकोण से विचार कर रहा है।
कुछ लोगों के सुझाव पर उन्हें इस प्रक्रिया का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित किया जाएगा। तैयारियों में जुटे एक अधिकारी ने बताया कि पूरी तरह शोधपरक इतिहास लिखने के लिए अभी से तैयारी शुरू की गई है।
क्रांतिकारियों का गढ़ रहा है विवि
आजादी की कहानी के बगैर डीयू का इतिहास अधूरा है। शहीद-ए-आजम भगत सिंह से लेकर आजाद तक के प्रसंग कहीं न कहीं कॉलेज से जुड़े हुए हैं। इसके हर कॉलेज की अपनी धन्य विरासत है। महात्मा गांधी के भी कई प्रसंगों में डीयू का उल्लेख है। आजादी के रणबांकुरों में यहां के कई पूर्व छात्र भी शामिल रहे थे।
कुछ कॉलेज पहले ही देख चुके हैं 100 बसंत
विवि के गौरवशाली इतिहास में रामजस कॉलेज, सेंट स्टीफंस कॉलेज और हिंदू कॉलेज का रुतबा अलग ही मुकाम रखता है। ये तीनों कॉलेज पहले ही 100 बसंत देख चुके हैं। ये तीनों कॉलेज बाद में डीयू के अभिन्न अंग बने। रामजस कॉलेज की गवर्निग बॉडी के सदस्य संविधान विशेषज्ञ डॉ. भीमराव अंबेडकर थे।