जल संकटः दिल्ली में आबादी बढ़ती गई, प्राकृतिक जल स्रोत नष्ट होते गए
उत्तरी व उत्तर-पश्चिमी जिले में छोटे बड़े तकरीबन 130 गांव हैं। इन गांवों में कभी एक से लेकर चार-चार तक जोहड़ हुआ करते थे।
नई दिल्ली (संजय सलिल)। उत्तरी और उत्तर-पश्चिमी जिले में ज्यों-ज्यों आबादी विस्तार पाती गई, त्यों-त्यों प्राकृतिक संसाधनों का दोहन बढ़ता गया। जिसके चलते जोहड़, तालाब, कुएं, बावली जैसे पानी के प्राकृतिक स्नोत सिमटते चले गए। मौजूदा हालात में दोनों जिले के गांवों में 50 फीसद जोहड़ों का वजूद पूरी तरह से मिट चुका है जबकि जो बचे हैं, उनकी उपयोगिता नहीं के बराबर है। इनमें कहीं कीचड़ भरे हैं तो कहीं गंदा पानी व गंदगी के अंबार लगे हैं।
उत्तरी व उत्तर-पश्चिमी जिले में छोटे बड़े तकरीबन 130 गांव हैं। इन गांवों में कभी एक से लेकर चार-चार तक जोहड़ हुआ करते थे। लेकिन, मौजूदा स्थिति में 50 फीसद जोहड़ों के अस्तित्व समाप्त हो गए हैं। कहीं इन पर स्टेडियम बन गए हैं तो कहीं समुदाय भवन का निर्माण हो चुका है तो बची खुची कसर इलाके के भूमाफिया ने कब्जे कर पूरी कर दी है। जिनका वजूद कायम है, वह भी सरकारी अधिकारियों की उदासीनता के भेंट चढ़ चुके हैं। नतीजतन, उनका वजूद तो कायम है, लेकिन अतिक्रमण, गंदगी आदि के कारण ग्रामीणों को इसका कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है।
गांवों के जोहड़ भूजल स्तर को गिरने से बचाने में अहम भूमिका निभाते रहे हैं, लेकिन जिस तरह से इन पर बड़ी तेजी से वैध व अवैध निर्माण कराए गए, इससे गांवों का भूजल स्तर भी काफी नीचे गिर गया है। फेडरेशन ऑफ नरेला सबसिटी के महासचिव सुंदर लाल खत्री कहते हैं कि प्राकृतिक जल संसाधनों की बदहाली के लिए सरकारी अधिकारी जिम्मेदार हैं।
बांकनेर, नरेला, भोरगढ़, शाहपुर गढ़ी, लामपुर, अलीपुर, नंगली पुना, बख्तावरपुर, बवाना आदि गांवों में आज जोहड़ों की हालत ऐसी है कि भौगोलिक रूप से उनकी पहचान कर पाना भी मुश्किल है। बवाना में जोहड़ हैं, लेकिन वह गंदगी व मिट्टी से करीब करीब भर चुका है तो बांकनेर गांव के एक जोहड़ पर स्टेडियम बन चुका है। गांव में जीर्णोद्धार की बाट जोह रहे एक जोहड़ में सालों से पानी नहीं है। एक जोहड़ को विकसित करने की योजना तीन सालों से अधूरी पड़ी है। बाकी बचे जोहड़ पर अवैध कब्जा है। वह कहते हैं कि कब्जे को हटाने के प्रति अधिकारियों के लचर रवैये को देखते हुए उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका लगानी पड़ी है।
गुरु हनुमान सोसायटी ऑफ इंडिया के महासचिव अतुल रंजीत कुमार कहते हैं कि समयपुर बादली में जोहड़ पर बैंक्वेट हॉल बना दिए गए हैं। वह बताते हैं कि उन्होंने क्षेत्र के जोहड़ों के बारे में आरटीआइ के माधयम से जानकारी मांगी तो उनमें पचास से साठ फीसद पर कब्जा बताया गया। हैरानी की बात यह है कि विभाग कब्जे की बात स्वीकार करता है, लेकिन उन्हें हटाने के प्रति गंभीरता नहीं दिखाता है।
फेडरेशन ऑफ नरेला के अध्यक्ष जो¨गदर दहिया कहते हैं कि एक दशक के अंदर इलाके में 40 फीसद जोहड़ अवैध कब्जे के भेंट चढ़ गए। लेकिन, उन्हें बचाने की जिम्मेदारी संभालने वाली सरकारी एजेंसियां कुछ नहीं कर सकीं। ऐसे में प्राकृतिक जल संसाधनों को बचाने के लिए सामाजिक स्तर पर पहल करने का समय आ गया है। ऐसा नहीं होने पर इसका खामियाजा हमें व आने वाली पीढ़ी को भीषण जल संकट के रूप में भुगतना होगा।