खतरे में दिल्ली समेत देश के 21 शहर के करोड़ों लोग, खत्म होने की कगार पर भूजल
विभिन्न शहरों में यदि भूजल दोहन का यही हाल रहा और जल संचयन नहीं बढ़ा तो वह दिन भी दूर नहीं जब प्यास बुझाने को भी पानी नसीब नहीं होगा।
नई दिल्ली, जेएनएन। ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते देश ही नहीं पूरी दुनिया संकट के दौर से गुजर रही है। इसके चलते बढ़ता प्रदूषण और जल संकट लगातार लोगों के लिए सबसे बड़ी समस्या बनता जा रहा है। जानकारों की मानें तो प्राकृतिक जल स्रोतों के नष्ट होने से दिल्ली एनसीआर में पेयजल संकट बढ़ता जा रहा है। नदियों में जरूरत के मुताबिक पानी उपलब्ध नहीं है और मांग बढ़ती जा रही है। आलम यह है कि दिल्ली में इन दिनों करीब 270 एमजीडी पानी की कमी है। दरअसल भूजल दोहन अधिक व रिचार्ज कम होने से यहां के ज्यादातर इलाकों में भूजल स्तर हर साल 0.5-2 मीटर नीचे गिर रहा है।
यदि भूजल दोहन का यही हाल रहा और जल संचयन नहीं बढ़ा तो वह दिन भी दूर नहीं जब प्यास बुझाने को भी पानी नसीब नहीं होगा। वैसे भी दिल्ली में भूजल की मौजूदा स्थिति भविष्य की डरावनी तस्वीर पेश कर रही है। भूजल दोहन अधिक होने से पानी की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है और दिल्ली के भूगर्भ में मौजूद पानी का 76 फीसद हिस्सा इस्तेमाल के लायक नहीं रहा। उसमें लवण की मात्रा अधिक होने के साथ-साथ कई तरह के रसायन भी मिले हैं। इसे पीने के बाद बीमार होने का खतरा भी है। सिर्फ 24 फीसद साफ पानी का स्टॉक है। इस बारे में केंद्रीय भूजल बोर्ड सरकार को पहले ही सूचित कर चुका है।
दिल्ली-एनसीआर में खत्म होने वाला भूजल
वहीं, दिल्ली-एनसीआर समेत देश के 21 शहरों में भू-जल पूरी तरह खत्म होने वाला है। यदि हम नहीं चेते तो पेट्रोल-डीजल की मानिंद पंपों से पानी भी खरीदना पड़ेगा। यह चिंता मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त ‘जल पुरुष’ राजेंद्र सिंह ने व्यक्त की है।
वहीं, जल पुरुष राजेंद्र सिंह ने डौला गांव स्थित अपने आवास पर शनिवार रात 10 बजे पत्रकार वार्ता में कहा कि हम भू-जल दोहन नहीं, बल्कि शोषण कर रहे हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट का हवाला देकर कहा कि भू-जल शोषण से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की मेट्रो सिटी मेरठ, दिल्ली, फरीदाबाद व गुरुग्राम में भू-जल ‘डे जीरो’ (पानी पूरी तरह खत्म होना) के कगार पर है।
बागपत प्रदेश में अकेला जिला है, जिसके सभी छह ब्लॉक डार्क जोन में हैं। गन्ना बोआई से चीनी बनने तक प्रति किलो चीनी पर 4400 लीटर पानी खर्च होता है। प्रति किलो धान पैदावार पर 2200 लीटर पानी खर्च होता है। गन्ना व धान की खेती बंद कर हमें फसल चक्र बदलकर उसे बारिश से जोड़ना होगा। कम सिंचाई वाली फसलों की खेती करनी चाहिए। हरियाणा सरकार ने धान की खेती न करने पर किसान को प्रति एकड़ दो हजार रुपये देने का अनुकरणीय कदम उठाया है। यूपी सरकार भी ऐसा ही कदम उठाए।
मिनरल एक्ट में हो कार्रवाई
सरकार मिनरल एक्ट पर अमल कर जमीन से पानी निकालने की सीमा तय करे, ताकि पानी की बर्बादी बंद हो। तालाब तथा अन्य जल स्नोत चिह्न्ति कर राजपत्रित घोषित कर अतिक्रमण हटवाए।
दो अगस्त से राजस्थान से ‘जल बचाओ’ अभियान
राजस्थान की साबी नदी तथा हिंडन, काली और कृष्णा समेत 18 नदियों का गंदा पानी यमुना में गिरता है। दो अगस्त को राजस्थान के नीमली से ‘जल बचाओ’ अभियान शुरू कर उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में सम्मेलन करेंगे। सात जून को डौला में सेमिनार होगी।
डे जीरो के कगार पर शहर
मेरठ, दिल्ली, फरीदाबाद, गुरुग्राम, कानपुर, जयपुर, अमरावती, शिमला, धनबाद, जमशेदपुर, आसनसोल, विशाखापत्तनम, विजयवाड़ा, चेन्नई, मदुरै, कोच्चि, बंगलुरु, कोयंबटूर, हैदराबाद, सोलापुर और मुंबई शहर में डे जीरो यानी भू-जल खत्म होने के कगार पर है।
जहरीला होता भूजल
मार्च में दिल्ली विधानसभा में पेश एक रिपोर्ट में भी कहा गया था कि भूजल दोहन बढ़ने से पानी की गुणवत्ता प्रभावित हुई है। दक्षिण पश्चिमी व उत्तर पश्चिमी दिल्ली के भूजल में लवणता बढ़ रही है। शाहदरा व कंझावला के आसपास के इलाकों के भूजल में प्रति लीटर एक हजार मिली ग्राम नाइट्रेट के अंश पाए गए हैं। इसके अलावा दिल्ली के विभिन्न इलाकों के भूजल में फ्लोराइड व रसायनिक तत्व निर्धारित मात्रा से अधिक पाए गए हैं।
भूजल का हर साल 105 एमसीएम ज्यादा दोहन
दिल्ली के भूगर्भ में 13,491 मिलियन क्यूसेक मीटर (एमसीएम) पानी मौजूद है। इसमें से 10,284 एमसीएम पानी लवण व रसायन युक्त है। सिर्फ 3207 एमसीएम पानी ही साफ है। दिल्ली में हर साल 392 एमसीएम भूजल का दोहन होता है। जबकि मात्र 287 एमसीएम पानी ही रिचार्ज किया जाता है। इस तरह भूजल के स्टॉक से हर साल 105 एमसीएम पानी अधिक दोहन हो रहा है।
जल बोर्ड भूजल स्तर को बरकरार रखने के लिए जल संचयन बढ़ाने का निर्देश दे चुका है। हाल ही में केंद्रीय भूजल बोर्ड ने एनजीटी में एक रिपोर्ट पेश किया, जिसके अनुसार वर्ष 2000 तक दिल्ली के करीब 27 फीसद इलाके में भूजल स्तर पांच मीटर तक था। जबकि 17 सालों में अब करीब 11 फीसद इलाका ही ऐसा बचा है जहां जमीन के अंदर पांच मीटर की गहराई तक पानी उपलब्ध है। यहां के एक बड़े इलाके में भूजल स्तर 40-80 मीटर तक चला गया है।
विभिन्न जिलों में भूजल में मौजूद रसायन व लवणता
फ्लोराइड: प्रति लीटर 1.5 मिलीग्राम से ज्यादा: पूर्वी दिल्ली, नई दिल्ली, उत्तरी पश्चिमी दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली, उत्तरी दिल्ली, दक्षिणी पश्चिमी व पश्चिमी दिल्ली।
नाइट्रेट: प्रति लीटर 45 मिलीग्राम से ज्यादा: पूर्वी दिल्ली, मध्य दिल्ली, नई दिल्ली, उत्तरी दिल्ली, उत्तरी पश्चिमी दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली, दक्षिणी पश्चिमी व पश्चिमी दिल्ली।
आर्सेनिक: प्रति लीटर एक मिलीग्राम से अधिक- पूर्वी व उत्तरी पूर्वी दिल्ली।
लवणता: नई दिल्ली, उत्तरी दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली, पूर्वी दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली, उत्तरी पश्चिमी व दक्षिणी पश्चिमी दिल्ली।
शीशा: नजफगढ़ ड्रेन के आसपास स्थित उत्तरी दिल्ली, पश्चिमी और दक्षिणी पश्चिमी दिल्ली।
कैडमियम: द. पश्चिमी दिल्ली।
क्रोमियम : नई दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली, उत्तरी व पूर्वी दिल्ली।
बूंद-बूंद पानी का मोल
पानी का मोल राजधानी में जल संकट बढ़ता जा रहा है। हर साल गर्मी के दिनों में स्थिति और भी भयावह हो जाती है। काफी जद्दोजहद के साथ हरियाणा व उप्र से कुछ पानी की आपूर्ति होती है, बाकि निर्भरता भूजल पर रहती है। तमाम औद्योगिक इकाइयों के प्रदूषण से जहां भूजल दूषित हो रहा है, वहीं निरंतर भूजल के दोहन और शहरी क्षेत्र में बारिश का पानी जमीन के अंदर नहीं जा पाने के कारण भूजल का स्तर भी गिरता जा रहा है।
दिल्ली के कई इलाकों में पानी का संकट इस कदर बढ़ गया है कि इसके कारण लोगों में झगड़े व मारपीट की नौबत आ गई है। ऐसा भी नहीं है इसके प्रति सरकार, प्रशासन व अन्य एजेंसियां गंभीर नहीं हैं, उनकी तरफ से तमाम नियम बनाए गए हैं, लेकिन उनका क्रियान्वयन ठीक से नहीं हो पा रहा है। यही कारण है कि बड़ी मात्रा में बारिश का पानी बहकर नालों में चला जाता है, उसे भूगर्भ में पुन: भेजने के उपाय नहीं किए जाते। कुछ ऐसे ही हालात एनसीआर के शहरों के भी हैं।
भूजल स्तर ऊपर लाने के लिए वर्षा जल संचयन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके लिए नियम हैं और जुर्माने का भी प्रावधान है, लेकिन सरकारी लापरवाही के कारण निजी इमारतों, प्रतिष्ठानों में इन नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जाती हैं, वहीं अनेक सरकारी इमारतें भी वर्षा जल संचयन में लापरवाही की बानगी प्रस्तुत करती हैं। मानसून करीब है और वर्षा जल संचयन के प्रति अभी से सचेत होने की आवश्यकता है, इसे ध्यान में रखते हुए इस बार का हमारा मुद्दा वर्षा जल संचयन पर आधारित है।
जल संरक्षण के खस्ताहाल, कर न दे हमारा जीना मुहाल
जिले में 1300 से ज्यादा तालाब हैं। उनमें से 60 फीसद पर अवैध कब्जा है। नगर निगम क्षेत्र में बहुत बुरा हाल है। यहां 149 तालाब में से 21 ही खाली बचे हैं। बाकी पर कहीं कॉलोनी बस चुकी है तो कहीं सरकारी विभागों ने निर्माण करा दिया है। सिहानी गांव में खाता नंबर 2829 खसरा संख्या 638 पर दर्ज तालाब की जमीन पर सामुदायिक केंद्र बन चुका है। इसी गांव में खाता नंबर 2829 खसरा संख्या 531 पर तालाब की जगह पर नगर निगम ने टंकी और पार्क बना रखा है। सिहानी गांव के खाता नंबर 2829 खसरा संख्या 1603 में जीडीए द्वारा कॉलोनी बसा दी गई है। गांव रईसपुर में तालाब की जगह मकान बन गए हैं। ये महज बानगी भर है। तालाबों पर कब्जे की फेहरिस्त काफी लंबी है।
भूजल स्तर को बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। गाजियाबाद विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को कहा कि वर्षा जल संचयन प्रणाली का ऊपरी निरीक्षण करके पूर्णता प्रमाण पत्र जारी न किया जाए। प्रणाली का गहन परीक्षण के बाद जारी किया जाए।
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