सीमा सुरक्षा बल के पहले 'महावीर' थे राम कृष्ण वाधवा, नाकाम कर दिए थे पाक फौज के मंसूबे
सीमा सुरक्षा बल की 31वीं बटालियन पश्चिमी सीमाओं के पंजाब प्रांत की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर दुश्मनों से लोहा ले रही थीं। राम कृष्ण वाधवा की तैनाती इसी बटालियन में थी।
नई दिल्ली, जेएनएन। मातृभूमि के लिए शहादत देने वाले जांबाज शहीदों की संख्या कम नहीं है। साहस सभी में होता है और दुश्मन के सामने हर जवान अदम्य साहस का परिचय देता है। 1971 में हुए युद्ध में पंजाब में 'राजा मोहतम' पोस्ट पर अपने प्राणों की आहुति देकर पाकिस्तानी फौज के मंसूबों को नाकाम करने वाले राम कृष्ण वाधवा सीमा सुरक्षा बल को पहला महावीर चक्र दिलाने वाले शहीद थे। मरणोपरांत उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
बीएसएफ के पीआरओ ने बताया कि दिसंबर 1971 में भारत-पाक युद्ध अपने चरम पर था और सीमाएं आग उगल रही थीं। सीमा सुरक्षा बल की 31वीं बटालियन पश्चिमी सीमाओं के पंजाब प्रांत की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर दुश्मनों से लोहा ले रही थीं। राम कृष्ण वाधवा की तैनाती इसी बटालियन में थी।
दिसंबर 1971 के पहले सप्ताह में सीमा सुरक्षा बल को 'राजा मोहतम' पोस्ट को कब्जे में लेने का आदेश मिला। इसके लिए सीमा सुरक्षा बल ने राम कृष्ण वाधवा को नियुक्त किया। 7 दिसंबर को राम कृष्ण वाधवा महज दो प्लाटूनों के जांबाजों के साथ दुश्मन की ओर बढ़े और राजा मोहतम पोस्ट पर धावा बोल दिया। यहां पाकिस्तान की 9 बलूच रेजिमेंट की कंपनी कब्जा जमाए बैठी थी।
वाधवा की कमान में बीएसएफ के जांबाज बहादुरी से लड़े और तीन घंटे की निर्णायक लड़ाई के बाद दुश्मनों को वहां से खदेड़ दिया। पाकिस्तान को भारी नुकसान हुआ और पोस्ट पर भारतीय फौज ने कब्जा कर लिया। इस युद्ध के दौरान राम कृष्ण वाधवा ने असाधारण शौर्य और उच्च कोटि की नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया।
पाक सैनिक पीछे तो हट गए, लेकिन वे अपनी हार को नहीं भूले। तीन दिन बाद पाकिस्तानी फौज की पूरी बटालियन (9 बलूच रेजिमेंट) ने राजा मोहतम पर फिर से हमला बोल दिया। उनकी तोपों ने पोस्ट पर गोले बरसाने शुरू किए और चौतरफा हमला बोल दिया। ऐसी विषम परिस्थिति में भी राम कृष्ण वाधवा ने न तो हौसला छोड़ा और न ही नेतृत्व छोड़ा।
'वीर खींचकर ही रहते हैं इतिहास में लीक' की तर्ज पर बहादुरी से लड़ते हुए वे एक मोर्चे से दूसरे मोर्चे तक जाते रहे। साथियों का हौसला बढ़ाने के साथ दुश्मन के नापाक कदमों को पोस्ट पर आने से रोक कर रखा। इरादों को परवान न चढ़ते देख दुश्मनों ने साजिश रची और 11 दिसंबर को कमांडर को लक्ष्य कर भारी बमबारी की। फिर भी यह महावीर डिगा नहीं और जान की परवाह किए बिना दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब देता रहा। पाकिस्तानी सेना को नुकसान पहुंचाता रहा। दुश्मनों की गोलीबारी में राम कृष्ण वाधवा गंभीर रूप से घायल हो गए। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और वे लहूलुहान हालत में आखिरी सांस तक दुश्मनों से लड़ते रहे। मातृभूमि की रक्षा में जीवन को होम करते हुए राजा मोहतम के 'राजा' राम कृष्ण वाधवा रणभूमि में ही वीरगति को प्राप्त हो गए।
31वीं बटालियन के निरीक्षक भागवत सिंह, उप निरीक्षक इकबाल सिंह और आरक्षक राम प्रकाश ने भी राजा मोहतम को कब्जे में रखने की निर्णायक लड़ाई में जीवन का सर्वोच्च बलिदान दिया। अपने प्राणों को मातृभमि के लिए न्योछावर करके उन्होंने दुश्मनों के इरादे को नाकाम किया और पाकिस्तानी सेना राजा मोहतम पर कब्जा करने में नाकाम रही।
सीमा सुरक्षा बल के सहायक कमांडेंट राम कृष्ण वाधवा के अदम्य शौर्य, अनुपम साहस और अनुकरणीय बलिदान के लिए केंद्र सरकार ने इन्हें मरणोपरांत 'महावीर चक्र' से सम्मानित किया। सीमा सुरक्षा बल के लिए यह पहला महावीर चक्र था। रणक्षेत्र में शहादत पाने वाले सीमा सुरक्षा बल के पहले अधिकारी होने का गौरव भी राम कृष्ण वाधवा को ही जाता है।
उप निरीक्षक इकबाल सिंह की वीरता का बखान करते हुए केंद्र सरकार ने इन्हें भी मरणोपरांत सेना पदक से सम्मानित किया। महावीर राम कृष्ण वाधवा 10 नवंबर 1940 को पंजाब के जालंधर में पैदा हुए राम कृष्ण वाधवा ने 2 फरवरी 1964 को सेना की आर्टिलरी रेजिमेंट में कमीशन प्राप्त किया। बतौर सहायक कमांडेंट वर्ष 1968 में वे सीमा सुरक्षा बल की सेवाओं से जुड़े थे।