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जानिये- इस वीर के बारे में जिसने घर में घुसकर मारा था पाकिस्तानियों को

1971 में पाकिस्तान के साथ हुई जंग में लेफ्टिनेंट कर्नल आशुतोष शर्मा भी शामिल हुए थे। उस समय उनका इरादा था कि जंग अगर कुछ दिन और चलती तो लाहौर में जाकर फिल्म देखते।

By Edited By: Published: Wed, 12 Dec 2018 10:15 PM (IST)Updated: Thu, 13 Dec 2018 08:19 AM (IST)
जानिये- इस वीर के बारे में जिसने घर में घुसकर मारा था पाकिस्तानियों को
जानिये- इस वीर के बारे में जिसने घर में घुसकर मारा था पाकिस्तानियों को

नई दिल्ली [लोकेश चौहान]। 1971 में पाकिस्तान के साथ हुई जंग में लेफ्टिनेंट कर्नल आशुतोष शर्मा भी शामिल हुए थे। उस समय उनका इरादा था कि जंग अगर कुछ दिन और चलती तो लाहौर में जाकर फिल्म देखते। उन्होंने पाकिस्तानियों को उनके घर में घुसकर मारा था।

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वे बताते हैं कि जब 1971 का युद्ध शुरू हुआ, उस समय वे कॉलेज ऑफ मिलिट्री इंजीनियरिंग पुणे से इंजीनियरिंग कर रहे थे। तीसरा पेपर खत्म हुआ था, उस समय कहा गया कि देश को आपकी जरूरत है और यूनिट में भेज रहे हैं। वहां से लखनऊ यूनिट में भेजा गया। वहां पता लगा कि रेजिमेंट आगे चली गई है। मिलिट्री पठानकोट यूनिट में थी। वहां ट्रांजिट कैंप पहुंचे तो पता लगा कि रेजिमेंट रवाना हो चुकी है। पठानकोट से सांभा पहुंचे। वहां एसेंबली एरिया था, लेकिन यूनिट वहां से भी जा चुकी थी। एक बॉक्स और बेडरोल साथ में था। शाम ढल रही थी। आर्मी की पानी की गाड़ी दिखाई दी, उसे रोका तो वहां से पानी की गाड़ी के जरिये सात किलोमीटर दूर यूनिट पहुंचे। वहां कमांडिंग ऑफिसर बीटी पंडित थे।

उन्होंने मुझे इंटेलिजेंस ऑफिसर बनाया। उन्होंने कहा कि नक्शों को दिमाग में रट लो, बाकी कुछ नहीं पूछूंगा। वहां से चलकर अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पहुंचे। वहां बीटी पंडित ने कहा कि ट्रैकर डोजर नहीं है, जीप लेकर चले जाओ। वहां से जीप लेकर सांभा गया और ट्रैकर डोजर लेकर वापस पहुंचा। आधी रात में हर-हर महादेव के नारे लगे और 3-4 दिसंबर की आधी रात को अंतरराष्ट्रीय सीमा पार करके भैरो मंदिर होते हुए हिंदुस्तानी फौज पाकिस्तान में घुस गई। वहां ठाकुरद्वारा गांव पूरी तरह से बारूदी सुरंग वाला इलाका था, जो पाकिस्तान में है।

वहां 6 दिसंबर को बारूदी सुरंग को निष्क्रिय कर आगे बढ़े और चक्रा में पहुंचे। वह क्षेत्र दो पाकिस्तानी कंपनियों के कब्जे में था। नीचे नदी बह रही थी और पाकिस्तानी ऊपर थे। फौज ऊपर भेजी गई, लेकिन टैंक ऊपर नहीं जा सके। उसी दौरान जोर का धमाका हुआ और लांस नायक अब्दुल अजीज हवा में उछल गए। जमीन पर सिर्फ टुकड़े दिखाई दिए। इसके बाद फौज नीचे लौटने लगी। तब हमारी यूनिट को लगाया गया। इसके बाद सभी अलार्म पोस्ट पर आ गए। पलटन लौटी और संगठित रूप से हमला किया गया।

11 दिसंबर की रात को ताबड़तोड़ गोलियों की आवाज, गोलों के फटने की आवाज के बीच जोश से भरे जांबाजों ने चक्रा पर कब्जा कर लिया गया। चक्रा के चारों तरफ बारूदी सुरंग लगी थी। आगे बढ़ने के लिए उन्हें साफ करना जरूरी था। तकनीकी रूप से काम करते तो 120 मीटर को साफ करने के लिए आठ घंटे चाहिए थे, लेकिन उस समय एक स्ट्रिप मिल गई तो अंदाजा लगाया कि 300 मीटर पर दूसरी सुरंग होगी।

इसके बाद दूसरी और तीसरी स्ट्रिप देखकर संगठित होकर आगे बढ़ते चले गए। इस दौरान सिर्फ गोलियों और गोलों की आवाज आ रही थी। चक्रा पर कब्जा करने के बाद बसंतर नदी को पार करके आगे बढ़ना था। उस समय बसंतर में चार-पांच फुट पानी था।

जरनल आरके सिंह ने कहा कि बारूदी सुरंग को हटाकर नदी को पार करना है। उसी समय हर दो गज के फासले पर पाकिस्तान की तरफ से गोले पड़ रहे थे। पाकिस्तान ने भारी गोलीबारी शुरू कर दी। ऐसे में मिट्टी खोदकर ट्रेंच बनाकर 15 दिसंबर को वहां बैठ गए। रात में बीटी पंडित वापस आए और पूछा क्या हाल है। मैंने कहा कि ऊपर मत बैठो, नीचे आ जाओ। वे नहीं माने तो मैंने उन्हें ट्रेंच में खींच लिया। मैं अपनी ट्रेंच में बैठा ही था कि जहां पहले पंडित बैठे थे, वहीं एक सेल आकर गिरा। उसके फटते ही वह बीटी पंडित के हेलमेट को काटकर निकल गया और बाकी सभी मिट्टी में दब गए।

इसके बाद भयंकर युद्ध शुरू हुआ। मद्रास बटालियन आगे चल रही थी। पैरा फ्लेयर हुआ तो पाकिस्तानी भारतीय सैनिकों को गुमराह करने के लिए हर-हर महादेव का नारा लगाकर हमारी तरफ बढ़ रहे थे। पैरा फ्लेयर की रोशनी फैली तो पता लगा कि वे खाकी कपड़ों में थे। हिंदुस्तानी की वर्दी हरी थी। ऐसे में वहां पाकिस्तानियों को ढेर कर डाला। इसके बाद पाकिस्तान में आगे बढ़ते हुए जरपाल, बड़ा पिंड और एक गांव पर कब्जा किया। रात ही रात में बसंतर नदी के पानी से होते हुए अपने टैंक पहुंचा दिए। उस समय इन्फ्रारेड डिवाइस नहीं थी। रात में ढाई बजे से सुबह 4 बजे अपनी पोजीशन में आ गए।

नदी और उसके किनारे व अंदर के क्षेत्र में 1500 मीटर की गहराई में माइंस थी। पाकिस्तान ने पीटू मार्क वन और पीटू मार्क-टू का प्रयोग किया था। इन बारूदी सुरंगों से बचते हुए 11 किलोमीटर तक पाकिस्तान में घुस चुके थे। टैंकों को आगे बढ़ाने के लिए पेट पर लालटेन बांधकर पीठ दुश्मन की तरफ की और लालटेन की रोशनी में टैंकों को आगे बढ़ाया।

अगले दिन सुबह पाकिस्तान को खबर मिली कि हिंदुस्तानी फौज अंदर आ चुकी है तो वहां पाकिस्तान ने टैंक से हमला किया। पाकिस्तान के अलग-अलग तीन टैंक आए। हमारे टैंक पहले से वहां थे। ऐसे में एक ही टैंक ने पाकिस्तान के तीनों टैंक को उड़ा दिया। वहां से युद्ध शुरू हुआ। दिन भर गोलीबारी होती रही। हिंदुस्तान के चार अधिकारी, तीन जेसीओ और काफी जाबाज शहीद हुए, लेकिन उस समय पाकिस्तान के 40 टैंक खत्म किए थे और सौ से अधिक पाकिस्तानियों की लाश मिली थी।


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