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धूमधाम से महिलाओं ने मनाया वट सावित्री, जानें कैसे पति की जान बचाने यम से लड़ गई थी सावित्री

वट सावित्री व्रत करने वाली महिलाओं ने अपने आस-पास के मंदिरों पार्को और गमले में लगाए गए वट वृक्ष की पूजा की। इस दौरान मंदिरों में काफी भीड़ दिखी।

By Edited By: Published: Mon, 03 Jun 2019 06:19 PM (IST)Updated: Mon, 03 Jun 2019 06:52 PM (IST)
धूमधाम से महिलाओं ने मनाया वट सावित्री, जानें कैसे पति की जान बचाने यम से लड़ गई थी सावित्री
धूमधाम से महिलाओं ने मनाया वट सावित्री, जानें कैसे पति की जान बचाने यम से लड़ गई थी सावित्री

गुरुग्राम, जागरण संवाददाता। वट सावित्री पूजा, सोमवती अमावस्या और शनि जयंती का पर्व शहर में श्रद्धा और उल्लास के माहौल में मना यह व्रत करने वाली महिलाओं ने अपने आस-पास के मंदिरों, पार्कों और गमले में लगाए गए वट वृक्ष की पूजा की। सुहागिनों ने बरगद के पेड़ की पूजा और परिक्रमा करके अखंड सौभाग्य का वरदान मांगा।

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इन मंदिरों में लगी भीड़
सिद्धेश्वर मंदिर, शीतला माता मंदिर, सिविल लाइंस बड़े हनुमान मंदिर, न्यू कॉलोनी स्थित, गीता भवन मंदिर, सेक्टर-चार स्थित श्रीराम मंदिर समेत उन सभी मंदिरों में जहां बरगद के पेड़ लगे हैं, वहां महिलाओं ने पूजा अर्चना की। इन मंदिरों में पूजा करने वालों की खासा भीड़ दिखी। सोमवती अमावस्या का व्रत रखने वाली महिलाओं ने पीपल के पेड़ की 108 परिक्रमा कर सुख और सौभाग्य की प्रार्थना की।

तीन त्‍योहार से बना दुर्लभ संयोग
शक्तिपीठ मंदिर स्थित शनि मंदिर, घंटेश्वर मंदिर स्थित शनि मंदिर, गीता भवन मंदिर समेत अन्य मंदिरों में शनिदेव की जयंती पर पूजा-अर्चना की गई। तीन त्योहारों का एक साथ मनाया जाना दुर्लभ संयोग होता है। साहित्यकार डॉ. कृष्णा जैमिनी बताती हैं कि सोमवती अमावस्या वर्ष में एक या दो बार आती है। यह एक बड़ा संयोग है कि बरगद और पीपल की पूजा एक साथ होगी।

पर्यावरण की हरियाली के लिए भी है संदेश
पीपल वृक्ष में श्रीहरि विष्णु और लक्ष्मी का वास माना जाता है। बरगद का वृक्ष शिव और ब्रह्मा का स्वरूप माना गया है। सोमवार यानी तीन जून को वट सावित्री अमावस्या, सोमवती अमावस्या और शनिदेव की जयंती ये तीनों पर्व एक साथ हैं। अपने देश में प्रकृति पूजा की परिपाटी रही है। आज के दौर में घटती हरियाली को देखें तो यह आज भी सामयिक है। वट सावित्री के व्रत में महिलाएं सोलह श्रृंगार कर वट वृक्ष की पूजा करती हैं। इसकी परिक्रमा करती हैं और चारों ओर कच्चा धागा लपेटती हैं। वट वृक्ष को जल से सींच कर तिलक लगाकर रोली, मोली, फल और पकवान से इसकी पूजा करती हैं।

इस के पीछे है सावित्री और सत्‍यवान की कहानी
सावित्री और सत्यवान की कथा सुनती हैं। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन सावित्री अपने पति को यमराज के फंदे से छुड़ाकर ले आई थीं। बरगद पूजन के बाद वे अपने घर की बुजुर्ग स्त्री के पांव छूती हैं और उन्हें उपहार देती हैं। सोमवती अमावस्या को महिलाएं पीपल के वृक्ष की पूजा कर इसकी 108 बार परिक्रमा करती हैं और मौली यानी कच्चा धागा बांधती हैं।

इस दिन शिव पूजन किया जाता है और पितरों के लिए दान किया जाता है। सेक्टर-नौ स्थित गौरी शंकर मंदिर के पुजारी कथा व्यास पंडित मनोज शर्मा ने बताया कि सोमवती अमावस्या और शनि जयंती पर अपने पितरों की शांति के लिए पंडितजी को बुलाकर भोजन कराना चाहिए और उन्हें यथासंभव दान देना चाहिए।

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