पाकिस्तान से ज्यादा भारत में मशहूर इस शख्स के 3 इश्क का आज चलेगा पता
पाकिस्तान से ज्यादा भारत में मशहूर शायर फैज अहमद फैज के जिंदगी की कशमकश, नाइंसाफी के खिलाफ बगावत समेत उनके कलाम ने इश्क की इबारत लिखी है। जश्न-ए-रेख्ता में गोपीचंद नारंग फैज के 3 इश्क बताएंगे।
नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। इख्तिताम नहीं होगा इस महफिल का अबद तक बांधे रखेगी ये समां। गजल, शायरी, दास्तानगोई, मुशायरा, कव्वाली, राम कहानी उर्दू वाली...बालीवुड में उर्दू के तड़के हर रीति-परंपरा-कला-साहित्य-संस्कृति-सभ्यता से महफिल सजी रहेगी। मुतालबा (आयोजन के प्रति इच्छा) ऐसी होती है रेख्ता के प्रति यहां हर उम्र वर्ग महफिल में दिखता है। युवा, महिलाएं और वृद्ध सभी यहां कुर्सियों से चिपके नजर आते हैं। वैसे भी सर्द ठंडक इस माहौल की रूमानियत को और बढ़ा देने वाली है। मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में तीन दिवसीय इस आयोजन में उर्दू जुबा की मशहूर शख्सियतों को देखना, सुनना एवं उनके भावों को जानना, समझना किसी दिलचस्प अनुभव से कम नहीं होगा।
खुसरो मॉडर्न वर्जन के साथ
सूफियाना कवि अमीर खुसरो की रचनाएं जश्न-ए-रेख्ता के कई सेशन में गूंजेगी। ट्रांस विद खुसरो युवाओं को जरूर पसंद आएगा। खुसरो की रचनाएं अब तक कव्वाली की महफिल में चार चांद लगाती थीं, लेकिन इस बार कनिष्क इसका मार्डन वर्जन पेश करेंगे। कनिष्क कहते हैं कि इसे नए अंदाज में पेश करने के लिए इसके साउंड पर काफी काम किया गया है जो दर्शकों को पसंद आएगा। इसी तरह 16 दिसंबर को सुबह 11 बजे होने वाले ‘अब के बहार चुनर मेरी रंग दे’ सेशन में दिल्ली घराने के खलीफा उस्ताद इकबाल अमीर खुसरो की रचना पर शास्त्रीय प्रस्तुति देंगे। उस्ताद इकबाल बताते हैं कि इस खास महफिल में अमीर खुसरो के क्लासिकल कंपोजिशन, राग, उनके सूफियाना कलाम प्रस्तुत करेंगे। इकबाल पहली बार जश्न-ए-रेख्ता के मंच पर प्रस्तुति दे रहे हैं। हालांकि गत वर्ष उनका एक टॉक शो हुआ था जिसमें दर्शकों का जो रिस्पांस था उसके आधार पर कहा जा सकता है कि यहां उर्दू के परिपक्व दर्शक सुनने और देखने आते हैं।
मुशायरों की महफिल
तीन दिवसीय रेख्ता की महफिल में इस बार तीन मुशायरे होंगे। जहां युवा भी होंगे आधी आबादी भी होगी और अनुभवी शायर भी। तीनों सेशन में, मसलन यदि आप नए शायरों को सुनना चाहते हैं तो खुली निशिष्त जरूर जाएं। यह ओपन सेशन हैं, जिसमें विभिन्न आयु वर्ग के लोग शामिल होंगे। दरअसल, रेख्ता ने फेसबुक पर लोगों को आमंत्रित किया था। अब तक 500 से ज्यादा लोगों ने आवेदन किया है, जिसमें अब 25 नए शायरों को अवसर मिलेगा। सबसे खास इसमें गृहणी, डॉक्टर, पेशेवर सब शामिल हैं। इसी तरह ग्रांड मुशायरे की महफिल में वसीम बरेलवी, फरहत एहसास, शकील आजमी, मदन मोहन दानिश के साथ महफिल सजेगी। जबकि बज्म-ए-शायरात में आधी आबादी कलाम सुनाएगी।
फैज के तीन इश्क
गोपीचंद नारंग शनिवार (15 दिसंबर) को जश्न-ए-रेख्ता में फैज के तीन इश्क बताएंगे। फैज के जिंदगी की कशमकश, नाइंसाफी के खिलाफ बगावत समेत उनके कलाम ने इश्क की इबारत लिखी है। ‘बोल कि लब आजाद हैं तेरे’ तो आज भी युवाओं का पसंदीदा है। यही नहीं पाकिस्तानी गायिका नूर जहां ने ‘मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न मांग’ को अपनी आवाज दी, तो गजल गायक जगजीत सिंह ने ‘चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले’ को अपने सुरों में पिरोकर अमर कर दिया। ये वो गजल थी जिसको फैज अहमद फैज ने 1954 में मांटगोमरी जेल में लिखी थी। खैर, बात यहां फैज के तीन इश्क की होगी। फैज की जिंदगी के अफसानों पर होगी।
कानाबाती का रोमांचक अनुभव
मोहम्मद फारुखी और दारेन की जोड़ी आपको सप्ताहांत किस्से सुनाएगी। ये किस्से, जो आपको गुदगुदाएंगे तो कभी भावुक कर देंगे। ये दरअसल, किस्सा-गो का ही परिमार्जित रूप है, लेकिन उससे थोड़ा भिन्न है। इसमें एक कहानी कही जाएगी वो भी शायराना अंदाज में। जिसमें कलाकार की प्रतिभा निखरकर सामने आती है। यानी, कहानी सुनने और सुनाने का अलग अंदाज। फारुखी कहते हैं कि इसमें सुर, लय, ताल का संगम होता है। यही वजह है कि दर्शक इसे पसंद करते हैं।
रोमासिंग उर्दू विद जावेद जाफरी
बालीवुड फिल्मों में ना केवल संवाद बल्कि गाने के बोल में उर्दू का प्रयोग होता है। उर्दू के अल्फाजों वाले कई गाने सुपरहिट हुए हैं। यह सेशन अपने नाम के अनुरूप ही बालीवुड में उर्दू के प्रयोग पर आधारित है। इसमें जावेद जाफरी अपने उर्दू प्रेम के साथ ही कई दिलचस्प किस्से सुनाएंगे।
देखें, एक घर के दो दरवाजे
भारत के महान मध्ययुगीन कवियों ने फारसी और संस्कृत को दो बहनें बताया है। भारत के धार्मिक महाकाव्य रामायण, जिसका एक दर्जन से अधिक फारसी में अनुवाद हो चुका है। यह करीब 250 फारसी शब्दों के लिए भी जाना जाता है। मध्यकालीन भारत में फारसी का इस्तेमाल अदालती भाषा के रूप में किया गया। लेकिन इसकी लोकप्रियता इसलिए भी है क्योंकि कि यह भारतीयों के दिल में लिखी है। यह भारत में लगभग 40 विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है। सत्यनारायण इन दोनों को एक ही घर के दो दरवाजे कहते हैं, क्योंकि दोनों के संबंधों एवं समानताओं की लंबी चौड़ी लिस्ट है। जिस पर इस कार्यक्रम में विस्तृत चर्चा होगी।
इन्हें सुनने को मिलेगा
जश्न का उद्घाटन 14 दिसंबर को प्रसिद्ध रामकथा वाचक, धर्मगुरु और उर्दू शायरी के महान प्रेमी मोरारी बापू द्वारा किया जाएगा, इसके बाद वडाली बंधुओं द्वारा संगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाएगा। उसके बाद दो दिन तक चलने वाली जश्न-ए-रेख्ता की महफिल में जावेद अख्तर, शबाना आजमी, विशाल भारद्वाज, गोपी चंद नारंग, गायत्री असोकन, सोनम कालरा, नूरां बहनें, वडाली बंधु, आसिफ शेख, शमसमुर्रहमान फारूकी, पुरषोत्तम अग्रवाल, इकबाल मजीद, महमूद फारुकी, उस्ताद इकबाल अहमद खान,जावेद जाफरी, श्रुति पाठक, कुमार विश्वास, अन्नू कपूर और मालिनी अवस्थी को सुनना सुखद अनुभव होगा। जश्न का समापन 16 दिसंबर को नूरां बहनों की संगीतमय प्रस्तुति से होगा।
जश्न-ए-रेख्ता का मकसद एक-दूसरे को करीब लाना
संजीव सराफ (संस्थापक, रेख्ता फाउंडेशन) का कहना है कि किसी भी समाज के विकास के लिए, अपनी भाषा में विचारों की अभिव्यक्ति बहुत महत्वपूर्ण है और यदि ऐसी कोई भाषा है, जिसका सार तत्व किसी के दिल की धड़कन पर दस्तक देता है तो वह उर्दू है। जश्न-ए-रेख्ता साहित्य, संगीत, फिल्म, कला, रंगमंच, नृत्य, मौखिक कहानी और कई अन्य विधाओं सहित उर्दू की विभिन्न शैलियों के लिए एक मंच प्रदान करता है। जश्न-ए-रेख्ता का उद्देश्य लोगों को भाषा द्वारा एकदूसरे के करीब लाना है।
भाई की याद मंच पर रहती है साथ
वडाली पूरणचंद वडाली के छोटे भाई प्यारे लाल वडाली का अमृतसर में निधन हो गया था। अलहदा गायकी से लोगों के दिलों पर राज करने वाले प्यारे लाल वडाली की यादों को सहेजे पूरणचंद वडाली जश्न-ए-रेख्ता के उद्घाटन समारोह में बेटे लखविंदर वडाली के साथ प्रस्तुति देंगे। कहते हैं, यह बहुत ही भावुक क्षण होगा। उर्दू के महोत्सव में भाई का साथ नहीं होना भावुक कर देता है। उनकी यादें जेहन में लेकर स्टेज पर प्रस्तुति देंगे। इन्होंने एक से बढ़कर एक गाने गाए हैं। तू माने या ना माने दिलदारा, असां तो तेनू रब मनया...’ हमेशा हिट रहा है। आज भी हिट है और हमेशा रहेगा।