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संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ने बढ़ाई चिंता, दिल्ली का यही रहा हाल तो 2028 में रहना होगा मुहाल

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार दस साल में दिल्ली विश्व की सबसे अधिक आबादी वाला शहर होगा।

By Edited By: Published: Thu, 17 May 2018 10:25 PM (IST)Updated: Fri, 18 May 2018 10:26 AM (IST)
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ने बढ़ाई चिंता, दिल्ली का यही रहा हाल तो 2028 में रहना होगा मुहाल
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ने बढ़ाई चिंता, दिल्ली का यही रहा हाल तो 2028 में रहना होगा मुहाल

नई दिल्ली (जेएनएन)। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार दस साल में दिल्ली विश्व की सबसे अधिक आबादी वाला शहर बन जाएगा। अभी यहां की आबादी करीब 1.7 करोड़ है, माना जा रहा है कि 2028 में यह आंकड़ा 3.7 करोड़ तक पहुंच जाएगा। ऐसे में चिंता का सबब यह है कि उस सूरत में दिल्ली का हाल क्या होगा।

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पीछे मुड़कर देखें तो राष्ट्रमंडल खेलों यानी 2010 के बाद दिल्ली का विकास नहीं के बराबर हुआ है। पिछले चार साल से तो विकास लगभग ठप है। देश की राजधानी होने के कारण यहां रोजगार की तलाश में आने वालों की संख्या साल दर साल बढ़ रही है, लेकिन उस अनुपात में बुनियादी सुविधाएं नहीं बढ़ रहीं हैं।

सुविधाओं के अभाव का ही नतीजा है कि पिछले करीब पांच माह से दिल्ली के कारोबारी सीलिंग की मार झेल रहे हैं। अनधिकृत कॉलोनियों का जाल फैलता जा रहा है। सड़कों पर जाम आम हो गया है तो परिवहन और पानी की समस्या विकराल होती जा रही है।

आवास

मास्टर प्लान 2021 के अनुसार वर्ष 2021 तक दिल्ली में 10 लाख नए आवास तैयार करने होंगे, जबकि इस समय भी दिल्ली में चार लाख आवास कम हैं। ऐसे में 2028 की कल्पना करने भर से भयावह स्थिति नजर आ रही है।

परिवहन

सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था लचर हो रही है, जबकि निजी वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। 556 रूटों पर 27 लाख यात्रियों के लिए बसें जहां सिर्फ 3944 रह गई हैं वहीं दिल्ली में मोटर वाहनों की संख्या में पिछले वर्ष की तुलना में 6.99 फीसद का इजाफा हुआ है। इस समय भी दिल्ली में आबादी के अनुपात में करीब 10 हजार बसें कम हैं। लास्ट माइल कनेक्टिविटी के नाम पर 45 हजार ई-रिक्शा के पंजीकरण एवं 86 हजार नए ऑटो रिक्शा के परमिट जारी करने का दावा किया गया है, लेकिन इस पहलू को सामने ही नहीं लाया गया कि इस वजह से दिल्ली में ट्रैफिक जाम विकराल हो रहा है।

हरित क्षेत्र

हरित क्षेत्र जिस अनुपात में बढ़ना चाहिए, उतना नहीं बढ़ रहा। दिल्ली में वृक्षाच्छादित क्षेत्र 2015 में 299.77 वर्ग किलोमीटर था कि जो 2017 में बढ़कर 305.41 वर्ग किलोमीटर ही हो पाया है। इसी तरह दिल्ली का हरित क्षेत्र जो 2015 में 20.2 फीसद था, 2017 में बढ़कर केवल 20.6 फीसद हो पाया है। विलायती कीकर से लगातार नुकसान हो रहा है।

पर्यावरण

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा हाल ही में जारी विश्व के सर्वाधिक 20 प्रदूषित शहरों की सूची भी दिल्ली के भविष्य की चिंता व्यक्त करती है। इस रिपोर्ट की रैंकिंग बताती है कि तमाम दावों से इतर दिल्ली सरकार प्रदूषण से जंग में बुरी तरह पराजित हुई है। दिल्ली इस सूची में जहां सातवें से छठे नंबर पर आ गई है, वहीं पीएम 2.5 का स्तर भी 123 से बढ़कर 143 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर हो गया है।

डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी पिछले छह वर्षों की रैंकिंग पर नजर डालें तो 2012 में विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की सूची में दिल्ली थी ही नहीं। 2013 व 2014 की सूची में दिल्ली को सातवां स्थान मिला। 2015 में विभिन्न वजहों से दिल्ली का रैंक चौथा रहा। आम आदमी पार्टी सरकार ने फरवरी 2015 में जब सत्ता संभाली तो दिल्ली की इस आबोहवा सुधारने के लिए तमाम दावे पेश किए, लेकिन इन दावों का परिणाम 2016 की सूची में ही सामने आ जाता है जिसमें दिल्ली को छठा स्थान हासिल हुआ है।

अगर एक 2015 का रैंक छोड़ दें तो आप सरकार के कार्यकाल में दिल्ली का प्रदूषण और ज्यादा बढ़ गया है। इसीलिए दिल्ली का रैंक भी सात की बजाए छह हो गया है। साल दर साल दिल्ली की हालत खस्ता होती जा रही है। ऐसे में 2028 की स्थिति भयभीत करने वाली दिखती है।


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