जानिए, सर्दी में सुरक्षित रेल सफर के लिए उत्तर रेलवे ने क्या उठाए कदम
मौसम में बदलाव का असर रेल पटरियों पर भी पड़ता है। ठंड में जहां पटरियां सिकुड़ती हैं और गर्मियों में फैलती हैं।
नई दिल्ली [ संतोष कुमार सिंह ] । सर्दी में सुरक्षित रेल परिचालन बड़ी चुनौती है। कोहरे की वजह से जहां दृश्यता कम हो जाती है वहीं, इस मौसम में रेल पटरियों के चटकने का भी खतरा बढ़ जाता है। इसलिए पटरियों की नियमित जांच जरूरी हो जाती है।
ट्रैक मैन द्वारा की जाने वाली जांच के साथ ही पटरी में पड़ी महीन दरार का पता लगाने के लिए अल्ट्रासोनिक फ्लोड टेस्टिंग मशीन (यूएसएफडी) का प्रयोग किया जाता है। इसकी क्षमता को बढ़ाने के लिए जल्द ही वाहन आधारित अल्ट्रासोनिक जांच शुरू करने की योजना है।
इससे कम समय में ज्यादा लंबी रेल पटरियों की जांच हो सकेगी। पहले चरण में दिल्ली से मुगलसराय और दिल्ली से रतलाम तक इसका उपयोग किया जाएगा। सर्दी के इस मौसम में ट्रेनों की सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित हो सके इसके लिए फिल्ड कर्मचारियों के साथ ही अधिकारियों को भी विशेष हिदायत जारी की गई है।
उत्तर रेलवे के अधिकांश हिस्से में कोहरा और ठंड ज्यादा पड़ती है, जिससे परेशानी और बढ़ जाती है। इसलिए रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्विनी लोहानी सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी रेलवे स्टेशनों और रेल पटरियों पर चल रहे निरीक्षण कार्य का जायजा ले रहे हैं, जिससे कि कहीं कोई कमी न रह जाए।
अधिकारियों का कहना है कि ट्रैक मैन पटरी के बाहरी हिस्से को हुए नुकसान को तो ढूंढ लेते हैं। लेकिन आंतरिक नुकसान का पता लगाने के लिए यूएसएफडी का प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक तीन महीने पर प्रत्येक सेक्शन पर इस मशीन से पटरियों की जांच कर खराबी को ठीक करने के लिए जरूरी कदम उठाए जाते हैं।
37 यूएसएफडी टीमें तैनात
उत्तर रेलवे में कुल 7301.3 किलोमीटर पटरी है। पटरी के प्वाइंट, क्रासिंग और वेल्डिंग वाले स्थान की जांच अल्ट्रा सोनिक तरीके से की जाती है। इसके लिए तीन तरह के यूएसएफडी जांच मशीन डिजिटल सिंगल रेल टेस्टर, डिजिटल डबल रेल टेस्टर और डिजिटल वेल्ड टेस्टर का प्रयोग किया जाता है।
इस समय उत्तर रेलवे में कुल 37 यूएसएफडी टीमें तैनात की गई हैं। फिलहाल फिल्ड कर्मचारी हाथ से चलने वाले ट्राली में लगाकर पटरियों की जांच करते हैं। इसे वाहन में लगाने के बाद इसकी क्षमता बढ़ जाएगी।
पटरियों पर मौसम के बदलाव का असर
मौसम में बदलाव का असर रेल पटरियों पर भी पड़ता है। ठंड में जहां पटरियां सिकुड़ती हैं और गर्मियों में फैलती हैं। इसलिए पटरियों को जोडऩे (लंबाई में) के लिए दो पटरियों के बीच 10 मिलीमीटर तक का गैप रखा जाता है ताकि गर्मी में पटरियां फैलने के लिए थोड़ा स्थान मिले।
पटरियों को वेल्डिंग और बोल्ट के जरिए जोड़ा जाता है। सर्दी के दिनों में यह गैप बढ़ जाता है जिससे पटरियों में दरार पडऩे या टूटने का खतरा होता है। यदि इस पर ध्यान नहीं दिया जाए तो दुर्घटना भी घट सकती है।