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सीरियल ब्लास्टः दिल्ली पुलिस को झटका, आरोप साबित करने में रही नाकाम

अभियोजन का आरोप था कि तारिक ने हवाला से 1401000 रुपये की रकम आतंकी वारदात को अंजाम देने के लिए ली थी, लेकिन इस बारे में उसके पास कोई सुबूत नहीं हैं।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 17 Feb 2017 08:03 AM (IST)Updated: Fri, 17 Feb 2017 08:12 AM (IST)
सीरियल ब्लास्टः दिल्ली पुलिस को झटका, आरोप साबित करने में रही नाकाम
सीरियल ब्लास्टः दिल्ली पुलिस को झटका, आरोप साबित करने में रही नाकाम

नई दिल्ली (अमित कसाना)। अक्टूबर 2005 में हुए दिल्ली सीरियल ब्लास्ट मामले में आरोपी मोहम्मद रफीक शाह और मोहम्मद हुसैन फाजिली को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया। वहीं कोर्ट ने तीसरे आरोपी अहमद डार को 10 साल की सजा सुनाई। हालांकि डार पहले ही 11 साल की सजा काट चुका है इसलिए कोर्ट ने उसकी सजा को पूरा मान लिया है। ऐसा सजा पर दिल्ली पुलिस पर सवाल उठना लाजमी है।

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वर्ष 2005 में सीरियल बम ब्लास्ट मामले में दिल्ली पुलिस ने आरोपी तारिक अहमद डार व दुबई में बैठे अबू अल कामा के बीच हुई जिस सैटेलाइट कॉल को आधार बनाया था, उसे पटियाला हाउस कोर्ट ने नकार दिया।

पुलिस का दावा था कि तारिक ने अबू से बातचीत में सीरियल ब्लास्ट को दिवाली तोहफा कहा था। उसने यह भी कहा था कि चारों लड़के वापस आ गए हैं। पुलिस का दावा था कि ये लड़के मो. हुसैन फजली, रफीक शाह व अन्य आरोपी थे।

न्यायाधीश रीतेश सिंह ने आदेश में कहा कि पुलिस फजली, शाह व डार तीनों को एक-दूसरे से नहीं जोड़ पाई। पुलिस ने 1 नवंबर 2015 व 4 नवंबर 2015 की जिन कॉल का हवाला सुबूतों में दिया है, वो दोनों ब्लास्ट के बाद की हैं और इससे आरोपियों का ब्लास्ट से कोई संबंध साबित नहीं होता है। कॉल में डार किसी को दिवाली तोहफे के बारे में बता रहा है।

पुलिस ऐसा मानती है कि यह तोहफा ब्लास्ट है, लेकिन यह ब्लास्ट से कुछ और भी हो सकता है। ऐसा कैसे मानें कि जब 29 अक्टूबर को ब्लास्ट हो चुका है और पूरी दुनिया को इस बारे में सूचना मिल गई और डार किसी को फोन पर इस बारे में जानकारी दे रहा है। अदालत ने कहा कि पुलिस के अनुसार डार ने 250 से अधिक कॉल की।

जांच में जो ईएमईआइ नंबर मिला वह डार के मोबाइल फोन का था, लेकिन कॉल डिटेल रिकार्ड में यह तथ्य मेल नहीं खाता। पुलिस ने डार को लश्कर-ए-तैयबा का आतंकी बताया, लेकिन 29 अक्टूबर 2005 को संगठन की तरफ से ग्रेटर कश्मीर नामक समाचार पत्र में बयान दिया गया था कि ब्लास्ट में उसका कोई हाथ नहीं और न ही उसके किसी सदस्य ने यह ब्लास्ट किया है।

अदालत ने कहा कि पुलिस के अनुसार डार 4 अक्टूबर 2005 में दिल्ली आया और त्रिभुवन होटल में रुका, लेकिन उसके होटल में रुकने व रजिस्ट्रर में एंट्री की लिखाई मिलाने के कोई सुबूत नहीं हैं। अभियोजन का आरोप था कि तारिक ने हवाला से 1401000 रुपये की रकम आतंकी वारदात को अंजाम देने के लिए ली थी, लेकिन इस बारे में उसके पास कोई सुबूत नहीं हैं।

पुलिस यह भी साबित नहीं कर पाई की गोविंदपुरी डीटीसी बस में हुए धमाके में विस्फोटक रफीक शाह ने रखा था। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष को संदेह से परे अपने आरोपों को सिद्ध करना चाहिए था, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकी


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