जानिए- हार्ट अटैक के बाद पीड़ित व्यक्ति के लिए कैसे 30 मिनट हैं सबसे अहम?
रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि हार्ट अटैक के सिर्फ 40 फीसद मरीजों को धमनियों में ब्लड क्लॉट दूर करने की दवाएं मिल पाती हैं। 60 फीसद मरीज इससे महरूम रह जाते हैं।
नई दिल्ली [रणविजय सिंह]। लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का अभाव कहें या चिकित्सा सुविधाओं की कमी, पर एक बात सच है कि स्वास्थ्य सुविधाएं लोगों की पहुंच से अब भी बहुत दूर हैं। इससे हार्ट अटैक (Heart Attack) होने पर ज्यादातर लोगों को जीवन बचाने के लिए समय से सही इलाज नहीं मिल पाता। डॉक्टरों के अनुसार, अटैक आने के बाद इलाज में जैसे-जैसे देर होती है हृदय की मांसपेशियां कमजोर होती जाती हैं।
इस बात की तस्दीक कार्डियोलॉजी सोसाइटी ऑफ इंडिया (सीएसआइ) के नेशनल इंटरवेंशनल काउंसिल (एनआइसी) के आंकड़े भी करते हैं। सीएसआइ-एनआइसी रजिस्ट्री की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि हार्ट अटैक के सिर्फ 40 फीसद मरीजों को धमनियों में ब्लड क्लॉट दूर करने की दवाएं मिल पाती हैं। 60 फीसद मरीज इससे महरूम रह जाते हैं।
...एक-एक पल कीमती
डॉक्टर कहते हैं कि हार्ट अटैक होने पर मरीजों की जान बचाने के लिए एक-एक मिनट महत्वपूर्ण होता है। हार्ट अटैक होने के आधे घंटे में अस्पताल पहुंचने वाले मरीज पूरी तरह ठीक हो जाते हैं। एक घंटे में इलाज मिलने पर हृदय 80 फीसद तक ठीक हो जाता है। इलाज में जैसे-जैसे देरी होती है, हृदय की मांसपेशियां कमजोर होती जाती हैं। इसलिए हार्ट अटैक होने पर मरीज को जल्द क्लॉट दूर करने वाली दवा देना जरूरी होता है। सीएसआइ-एनआइसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में 30 लाख लोग स्टेमी हार्ट अटैक से पीड़ित होते हैं। वर्ष 2018 में 12 लाख मरीजों को थ्रोंबोलाइज किया जा सका। यानी हार्ट अटैक होने पर धमनी का ब्लॉकेज दूर करने के लिए दवा दी गई।
बहुत कम मरीजों को मिल पाती है प्राइमरी एंजियोप्लास्टी की सुविधा
सीएसआइ-एनआइसी के चेयरमैन डॉ. ए श्रीनिवास कुमार ने कहा कि एंजियोप्लस्टी भी हार्ट अटैक का कारगर इलाज है, लेकिन वर्ष 2018 में सिर्फ 57,512 मरीजों की ही प्राइमरी एंजियोप्लास्टी हुई। स्पष्ट है कि हार्ट अटैक होने पर तीन घंटे के भीतर एंजियोप्लास्टी की सुविधा भी बहुत कम मरीजों को मिल पाती है। उन्होंने कहा कि हार्ट अटैक होने पर हर मरीज को बीमारी का सही पता नहीं चल पाता, इसलिए समय पर इलाज के लिए अस्पताल नहीं पहुंच पाते। इसके अलावा उत्तर भारत में बुनियादी ढांचे का अभाव भी इलाज में आड़े आता है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने कहा कि मरीजों की संख्या और इलाज में अंतर का बड़ा कारण यह है कि हार्ट अटैक होने पर लोगों को बीमारी का सही पता नहीं चल पाता। देर से अस्पताल पहुंचने के कारण थ्रोंबोलाइज की सुविधा नहीं मिल पाती, जबकि यह क्लॉट दूर करने का अच्छा माध्यम है। एमबीबीएस डॉक्टर भी यह दवाएं दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि हार्ट अटैक के इलाज में एंजियोप्लास्टी का इस्तेमाल बढ़ रहा है।
हार्ट अटैक मौत का बड़ा कारण
हृदय की बीमारियों से देश में सबसे अधिक मौतें होती हैं। एक अध्ययन के मुताबिक देश में हृदय वाहिकाओं की बीमारी से हर साल करीब 28.1 फीसद लोगों की मौत होती है। अकेले हार्ट अटैक से 17.8 फीसद लोगों की मौत होती है।
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