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आधार के बिना निराधार हुईं तीन मासूम जिंदगियां, कटघरे में केजरीवाल सरकार

मां और बड़ी बेटी का आधार कार्ड था। बाकी ने तीन बार आधार के लिए रुपये खर्च कर आवेदन किया, पर कार्ड नहीं बना। इसलिए सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिला।

By Amit SinghEdited By: Published: Fri, 27 Jul 2018 12:39 PM (IST)Updated: Fri, 27 Jul 2018 03:29 PM (IST)
आधार के बिना निराधार हुईं तीन मासूम जिंदगियां, कटघरे में केजरीवाल सरकार
आधार के बिना निराधार हुईं तीन मासूम जिंदगियां, कटघरे में केजरीवाल सरकार

नई दिल्ली (जेएनएन/शुजाउद्दीन)। मंडावली दिल्ली में भूख से तड़प-तड़प कर मरने वाली तीन बच्चियों की मौत के बाद लगातार चौंकाने वाली सरकारी अव्यवस्थाएं सामने आ रही हैं। अब पता चला है कि इस बेहद गरीब परिवार में केवल बच्चियों की मां वीणा देवी और बड़ी बेटी मानसी का ए-81 साकेत ब्लॉक मंडावली फाजलपुर के पते पर आधार कार्ड बना है। परिवार के बाकी सदस्यों का आधार कार्ड भी नहीं है। मंगल ने इसके लिए रुपये खर्च कर तीन बार आवेदन किया। तीनों बार इनका आवेदन रद्द हो गया। गरीबी में दाने-दाने के लिए मोहताज परिवार आधार कार्ड बनवाने के लिए और रुपये खर्च करने की स्थिति में नहीं था। इसलिए परिवार को किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल रहा था। यही वजह है कि दिल्ली के सरकारी बाबुओं ने इस परिवार का राशन कार्ड बनाने से भी मना कर दिया था।

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2015 के बाद से किसी का राशन कार्ड नहीं बना

देश की राजधानी दिल्ली में सरकारी अव्यवस्थाओं का आलम ये है कि खिचड़ीपुर स्थित खाद्य एवं आपूर्ति विभाग कार्यालय ने वर्ष 2015 के बाद से किसी का राशन कार्ड ही नहीं बनाया है। जिलाधिकारी के. महेश के अनुसार जांच कराई जा रही है कि किस वजह से मृत बच्चियों के परिवार का राशन कार्ड नहीं बना था। वहीं इन बच्चियों के पड़ोस में रहने वाले लोगों का कहना है कि अगर परिवार का राशन कार्ड बना होता तो उन्हें सरकारी अनाज मिलता और शायद मासूमों की जान बच जाती।

राशन कार्ड के लिए दलाल और सरकारी दफ्तर सबने लूटा

सरकारी भ्रष्टाचार और कुव्यवस्थाओं का शिकार केवल इन्हीं बच्चियों का परिवार नहीं है। ये परिवार जिस बिल्डिंग में रहता है, उसी बिल्डिंग में रह रहे 20 अन्य गरीब परिवारों के पास भी राशन कार्ड नहीं है। ये लोग दिल्ली में 15-20 साल से रह रहे हैं। इन लोगों का आरोप है कि वे पहचान पत्र दफ्तर और राशन कार्ड दफ्तर के चक्कर लगाकर थक चुके हैं। दलाल भी इन गरीबों से रुपये ऐंठ चुके हैं। बावजूद इनका राशन कार्ड नहीं बना। हर बार कोई न कोई बहाना बनाकर इन्हें टरका दिया जाता है।

सोनिका बताती हैं कि वह 12 साल से दिल्ली में रह रही हैं। जब भी राशन कार्ड बनवाने का प्रयास किया, राशन दफ्तर के अधिकारियों ने भगा दिया। माया बताती हैं कि वह दिल्ली में परिवार के साथ आठ साल से हैं। उन्होंने भी राशन कार्ड बनवाने के लिए कई बार प्रयास किया, लेकिन नाकाम रहीं। अधिकारी दिल्ली में रहने का सरकारी प्रमाण पत्र, सरकारी पहचान पत्र, आधार कार्ड या बिजली का बिल मांगते हैं। जब गरीबों के पास सिर छिपाने के लिए स्थाई ठिकाना नहीं है तो वह कहां से निवास प्रमाण पत्र और पहचान पत्र लाएंगे।

यहां रह रहे रूप सिंह बताते हैं कि वह भी राशन कार्ड बनवाने के लिए काफी समय से प्रयास कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अभी तक सफलता नहीं मिली है। मोहम्मद राशिद कहते हैं कि वर्ष 1984 में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से दिल्ली आए थे, लेकिन अभी तक उनका राशन कार्ड नहीं बना। इसके लिए फॉर्म भी जमा कर चुके हैं। लोगों ने बताया कि इस बिल्डिगं में रहने वाले बहुत से लोग दलालों तक को राशन कार्ड बनवाने के लिए रुपये दे चुके हैं। बावजूद न तो राशन कार्ड बना और न ही रुपये वापस मिले।

मौत से एक दिन पहले बच्चियों ने खाया था मिड डे मिल

भूख से तीन बच्चियों की मौत..। जिसने यह वाकया सुना, गमगीन हो गया और खासकर वे लोग ज्यादा, जिनके सामने कभी ये बच्चियां चहलकदमी किया करती थीं। तीनों बहनों में सबसे बड़ी आठ वर्षीय मानसी मंडावली-फाजलपुर रोड स्थित निगम के स्कूल में तीसरी कक्षा में पढ़ती थी।

मानसी व उसकी बहनों की भूख से मौत की खबर सुनकर शिक्षक भी दुखी हैं। दैनिक जागरण से बातचीत में उन्होंने बताया कि मानसी ने स्कूल में 23 जुलाई को मिड-डे मील खाया था। तब कोई परेशानी नहीं दिख रही थी। 24 जुलाई को अचानक तीनों बहनों मानसी, शिखा और पारुल की भूख से मौत की खबर सुनी तो दिल दहल गया। स्कूल में मानसी की सहेलियां भी गमगीन दिखीं। शिक्षकों का कहना था कि मानसी जुलाई में सिर्फ दो दिन ही स्कूल आई थी, लेकिन पढ़ाई में अच्छी थी। कक्षा में सबसे आगे बैठती थीं और खेलकूद में भी जरूर हिस्सा लेती थी।

छह-सात घंटे ही पेट में रहता है खाना

दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अजय लेखी ने बताया कि पेट में छह से सात घंटे तक ही खाना रहता है। अगर किसी को पेट से संबंधित बीमारी है तो यह समय घट या बढ़ सकता है। भूख से तीन बच्चियों की मौत का मामला भी कुछ ऐसा ही है। अगर बच्चियों ने 24 जुलाई की रात को भी खाना खाया होता और अगली सुबह मौत हो गई तो भी पोस्टमार्टम में पेट में अन्न का दाना नहीं मिलेगा।

बच्चियों की मां को इहबास में कराया भर्ती

मानसिक रूप से कमजोर बच्चियों की मां वीणा देवी को पूर्वी दिल्ली जिला प्रशासन ने दिलशाद गार्डन स्थित मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान (इहबास) में गुरुवार दोपहर बाद चार बजे भर्ती करवाया। यहां देर शाम मेडिकल टेस्ट किए गए। उन्हें जब तक छुट्टी नहीं मिलेगी, तब तक प्रशासन के अधिकारी अस्पताल जाकर उनका हालचाल लेते रहेंगे।

जांच के दौरान डॉक्टर यह पता करने की कोशिश करेंगे कि वीणा देवी की मानसिक स्थिति कितनी खराब है। तीनों बच्चियों की मौत के बाद उन्हें गहरा सदमा पहुंचा है। हालत यह हो गई है कि बच्चियों की चर्चा उठने के बाद भी आंखों से एक बूंद आंसू नहीं निकलता है। वह बैठने के बाद खुद से उठ नहीं पाती हैं। अस्पताल में भर्ती कराने से पहले प्रीत विहार के एसडीएम अरुण गुप्ता की टीम वीणा देवी को जिलाधिकारी के. महेश के कार्यालय लेकर आई। यहां उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी पहुंचे। महिला की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है और पति मंगल का कुछ पता नहीं है। इसलिए महिला की मौजूदगी में मंगल के दोस्त नारायण को 25 हजार रुपये का मुआवजा दिया गया। जिलाधिकारी के. महेश बांग्ला जानते हैं और महिला भी पश्चिम बंगाल की है। इसलिए उन्होंने कार्यालय में महिला से बांग्ला में बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया। बच्चियों की तस्वीर भी नहीं पहचान सकीं।

इसी तरह घर से गायब रहते थे बच्चियों के पिता

काम की तलाश में निकले बच्चियों के पिता मंगल अब तक नहीं लौटे हैं, लेकिन अब तक गुमशुदगी का मामला भी दर्ज नहीं कराया गया है। हालांकि, पुलिस उनकी तलाश कर रही है। वह नशे के आदी हैं, इसलिए शराब के ठेकों के आसपास लगे सीसीटीवी की फुटेज भी खंगाली जा रही है। पड़ोसियों ने बताया कि मंगल इसी तरह अक्सर कई दिनों तक घर से गायब रहते थे।


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