डकैती, लूटपाट और अपहरण जैसे संगीन अपराध करने के आरोपितों को अब नहीं मिलेगी अंतरिम जमानत या पैरोल, जानिए कारण
दस साल या आजीवन कारावास सजा के मामले में न्यायाधीश के विवेक पर निर्भर करता है कि वह आरोपित को जमानत पर रिहा करे या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2020 में कोरोना महामारी के कारण जेलों की भीड़ को कम करने के लिए उच्चाधिकार समिति का गठन किया था।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। कोरोना महामारी के आधार पर डकैती, लूटपाट और अपहरण जैसे संगीन अपराध करने के आरोपितों को अब अंतरिम जमानत या पैरोल नहीं दिया जाएगा। दिल्ली हाई कोर्ट की उच्चाधिकारी समिति (एचपीसी) ने यह फैसला एकल पीठ द्वारा मांगे गए स्पष्टीकरण पर दिया। एकल पीठ ने समिति से स्पष्ट करने को कहा था कि क्या हत्या को छोड़ लूटपाट, डकैती और अपहरण जैसे अन्य संगीन मामलों में अंतरिम जमानत दी जा सकती है। यह स्पष्ट करने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि संगीन अपराध के एक मामले में एक एकल पीठ ने आरोपित को जमानत दे दी, जबकि दूसरी एकल पीठ ने जमानत पर रिहा करने से इन्कार कर दिया था।
न्यायमूर्ति विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली समिति ने आठ सितंबर को हुई बैठक में कहा कि दस साल या आजीवन कारावास सजा के मामले में न्यायाधीश के विवेक पर निर्भर करता है कि वह आरोपित को जमानत पर रिहा करे या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2020 में कोरोना महामारी के कारण जेलों के अंदर की भीड़ को कम करने के लिए उच्चाधिकार समिति का गठन किया था।
उधर दिल्ली दंगा से जुड़े एक मामले में निचली अदालत द्वारा दिल्ली पुलिस पर 25 हजार रुपये जुर्माना लगाने के फैसले पर लगाई रोक की समयसीमा दिल्ली हाई कोर्ट ने बढ़ा दी है। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ को एडिशनल सालिसिटर जनरल एसवी राजू ने सूचित किया कि शिकायतकर्ता मोहम्मद नासिर का जवाब नहीं मिला है। हालांकि, नासिर की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता जतिन भट ने कहा कि सोमवार को जवाब दाखिल कर दिया है। पीठ ने कहा कि जवाब को एक सपताह के अंदर रिकार्ड पर लाया जाए।
पीठ ने कहा कि मामले में अगली सुनवाई 15 नवंबर को होगी और तब तक जुर्माना पर लगी रोक का आदेश जारी रहेगा। दिल्ली दंगा में एक गोली लगने के कारण शिकायतकर्ता मोहम्मद नासिर की एक आंख की रोशनी चली गई। मजिस्ट्रेट अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली दिल्ली पुलिस की याचिका पर कड़कड़डूमा कोर्ट ने 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए 14 जुलाई को कहा था कि जांच बहुत ही लापरवाही ढंग से की गई है और पुलिस डायरी लिखने में नियमों का पालन नहीं किया गया है। इस मामले में एक अलग से रिपोर्ट दर्ज की जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। निचली अदालत के फैसले को पुलिस ने चुनौती दी है।