मुगलकालीन हयात बख्श बाग के बहुरेंगे दिन, पुरानी लुक में लौटाने की तैयारी
Hayat Bakhsh Bagh of Lal Qila इसे जीवनदायिनी बाग भी कहा जाता था। यह बाग शाही महल के बिल्कुल नजदीक है। इसी के पास दीवान-ए-आम है। जहां बादशाह अपने खास लोगों के साथ बैठक करते थे। इसी के पास हमाम और मोती मस्जिद है।
नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। Hayat Bakhsh Bagh of Lal Qila: दिल्ली स्थित लालकिला के हयात बख्श बाग में फिर से फव्वारे चलेंगे। बाग में मुगलकालीन माहौल दिखाई देगा। यह बाग मुगल काल में जैसा रहा होगा, इसे उसी तरह का लुक दिया जा रहा है। दरअसल, मुगल सम्राट शाहजहां ने 1638 में लालकिला बनवाया शुरू किया था और दस साल में इसका कार्य पूरा किया था। आखिरकार 1648 में यह पूरा हो गया था। इन किले में दो बाग बनवाए थे, जिसमें एक का नाम हयात बख्श बाग था। इसे जीवनदायिनी बाग भी कहा जाता था। यह बाग शाही महल के बिल्कुल नजदीक है। इसी के पास दीवान-ए-आम है। जहां बादशाह अपने खास लोगों के साथ बैठक करते थे। इसी के पास हमाम और मोती मस्जिद है। इसी बाग के पूर्वी किराने पर दो मंडप थे। जिन्हें मोती महल और हीरा महल के नाम से जाना जाता था। जिसमें से माेती महल को विद्राेह के दौरान तोड़ दिया गया था। हीरा महल अभी भी मौजूद है।
इस बाग में हिंदू पंचांग की दो ऋतुओं के नाम पर सावन और भादों दो मंडप बनवाए गए थे ये दोनों मंडप बाग के दोनों छोर पर हैं। दोनों मंडप संगमरमर के हैं। इनकी खूबसूरती अभी भी देखते बनती है। पत्थर पर चित्रकारी की गई है, जिसमें फूल पौधे बनाए गए हैं जो साढ़े तीन सौ साल बाद भी देखने में ऐसे लगते हैं मानों आज कल में बनाए गए हैं। इन्हीं दोनों मंडप के बीच वाटर चैनल है। दोनाें मंडप में आले बने हैं। जिनमें रोशनी की जाती थी। मंडप के ऊपर बने वाटर चैनल से जब पानी नीचे गिरता हुआ आगे निकल जाता था तो पानी का रंग भी बदलता था और यह नजारा बहुत ही दिलकश होता थ। वाटर चैनल में उस समय जगह जगह फव्वारे लगे होते थे। ठीक उसी तरह अब फिर से फव्वारे लगाए जा रहे हैं। यहां पर पानी लाने के लिए पाइपलाइन डाली जा रही है। फव्वारों को प्रतिदिन चलाए जाने की योजना है, ताकि इस बाग की सुंदरता बढ़ाई जा सके।
वाटर चैनल के दाेनों ओर रंग बिरंगे फूलों वाले पौधे लगाए गए हैं। खिल रहे फूल बाग की सुंदरता बढ़ा रहे हैँ। एएसआइ की योजना इस बाग में सुगंध देने वाले फूल वाले पौधे लगाने की भी है। जिससे इस बाग को और भी खूबसूरत बनाया जा सके। इसके लिए एएसआइ अध्ययन करा रहा है कि जिस समय बाग को तैयार किया गया था तो उस समय किस किस किस्म के पौधे लगाए गए थे। उसी आधार पर यहां पौधे लगाए जाने की योजना है।
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