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निरीक्षण कमेटी को मुस्तैदी से काम करना होगा, तभी बनेगी बात

सबसे जरूरी चीज इसके लिए गुणवत्ता निरीक्षण करने की मजबूत कमेटी होनी चाहिए जो स्वतंत्र हो निष्पक्ष हो। इसमें शिक्षक, महिलाएं, डॉक्टर आदि को शामिल करना चाहिए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 19 Jul 2018 04:28 PM (IST)Updated: Thu, 19 Jul 2018 04:28 PM (IST)
निरीक्षण कमेटी को मुस्तैदी से काम करना होगा, तभी बनेगी बात
निरीक्षण कमेटी को मुस्तैदी से काम करना होगा, तभी बनेगी बात

[सत्यप्रकाश]। पूरे भारत में मिड-डे मील का जिस तरह से क्रियान्वयन हो रहा है, उसे देखने के बाद यही कहा जा सकता है कि खाने के नाम पर खानापूरी की जा रही है। योजना को लागू करने वाले सोचते हैं कि यह महज एक काम है जिसका किसी तरह निपटारन कर देना है। असल में अभी भी इस योजना पर काफी काम किए जाने की जरूरत है।

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बच्चों को पौष्टिक आहार मिले, इसकी जिम्मेदारी के लिए एक स्वतंत्र निरीक्षण कमेटी का गठन किया जाना चाहिए। जो यह सुनिश्चित कर सके कि मिड डे मील की गुणवत्ता बरकरार रहे। सरकार को स्वयं सहायता समूहों को आगे लाना चाहिए। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के समूह को यह दायित्व सौंपा जाना चाहिए। इससे महिलाओं को तो रोजगार मिलेगा ही बच्चों के आहार में गुणवत्ता आएगी। स्कूलों से अधिक आंगनबाड़ी केंद्रों में मिड-डे मील के तहत बच्चों को भोजन दिया जाता है।

यहां भोजन की व्यवस्था प्रदान करने की जिम्मेदारी आंगनबाड़ी सहायिकाओं को होती है। मिड-डे मील को केवल पेट भरने के रूप में नहीं देखना चाहिए, इसमें सबसे बड़ी समस्या स्वास्थ्य की है। इसलिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भोजन में कैलोरी और पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व हैं या नहीं। सरकार ने कह दिया कि मिड डे मील को लागू करें, लेकिन इसको आपूर्ति करने की जिम्मेदारी किसकी होगी? जो लोग सही मायनों में काम करने वाले हैं, उनको सभी आवश्यक सुविधाएं मुहैया करवाई जानी चाहिए।

रूढ़िवादी सोच बदलने की जरूरत

हमारे देश में आमतौर पर लोगों का मानना है कि बच्चों को खिचड़ी, दलिया, अंडा आदि से ही पोषक तत्व मिलते हैं, लेकिन इसके अलावा भी काफी कुछ है, जिसे पौष्टिक आहार के रूप में बच्चों को दिया जा सकता है। ज्वार, चना और तिलहन को पीसकर ऐसा पाउडर तैयार हो सकता है, जिसे हलवा व सूप इत्यादि के तौर पर बच्चों को दिया जा सकता है। इस तरह के भोजन का खर्च भी कम आता है और बच्चों को सभी पोषक तत्व आसानी से मिल जाते हैं।

मिड-डे मील से जुड़ी घटनाएं अगस्त 2017

बंकापुर गांव के प्राथमिक विद्यालय में बच्चों के लिए परोसे गए मिड-डे मील में मेंढक निकलने से हड़कंप मच गया। हालांकि, स्कूल प्रशासन ने तब इस घटना को झूठा बताया था। जब छात्रछात्राओं को मिड-डे मील का खाना परोसा जा रहा था तो भगोने में नीचे से मेंढक निकला। भगोने में मरा हुआ मेंढक देखकर बच्चे खाना छोड़कर भाग खड़े हुए थे।

अगस्त 2017

गांव डुढेरा स्थित प्राथमिक विद्यालय में खाने में मरी हुई गिलहरी मिली थी। इस विद्यालय के लिए एक निजी संस्था खाना तैयार करती है। उस दिन शिक्षकों ने बिना जांच किए खाना बंटवा दिया था। उसी दौरान किसी ने भगोने में आलू सोयाबीन की सब्जी में मरी गिलहरी देखी। जब शिक्षकों को इसकी जानकारी मिली तो हड़कंप मच गया।

स्वतंत्र निरीक्षण कमेटी का गठन

सबसे जरूरी चीज इसके लिए गुणवत्ता निरीक्षण करने की मजबूत कमेटी होनी चाहिए जो स्वतंत्र हो निष्पक्ष हो। इसमें शिक्षक, महिलाएं, डॉक्टर आदि को शामिल करना चाहिए। यह कमेटी इस बात को सुनिश्चित करेगी कि कच्चे सामान से लेकर पका हुए खाना तक साफ-सुथरा व पौष्टिक है। कमेटी समय-समय पर स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्रों में जाकर खाने की गुणवत्ता पर नजर रखे। मुस्तैदी से काम करे। उसके बाद इसकी रिपोर्ट बनाकर प्राथमिक शिक्षा अधिकारी और जिलाधिकारी को सौंपी जाए। इससे सकारात्मक बदलाव आएगा।

जिले में 12 संस्थाएं मिड-डे मील का भोजन तैयार करती हैं। समय-समय पर इनके साथ बैठक की जाती है। फूड इंस्पेक्टर और हमारी टीम खाने और रसोई का निरीक्षण करती है। इससे इन संस्थाओं पर अच्छा खाना बनाने के लिए चौतरफा दबाव बना रहता है। गुणवत्ता में कमी दिखने पर तुरंत कार्रवाई की जाती है। इसके अलावा सभी संस्थाओं के रसोई में सीसीटीवी लगाए गए हैं। संस्थाओं से कहा गया है कि खाना बनाने वाले कर्मचारियों का पूरा लेखा-जोखा अपने पास रखें। तीन साल के लिए दिए जाने वाले ठेके में पूरी पारदर्शिता बरती जाती है।

बाल मुकुंद प्रसाद, प्राथमिक शिक्षा अधिकारी, गौतमबुद्ध नगर 


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