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UP Chunav 2022: गाजियाबाद में भाजपा के सामने अपना गढ़ बचाने की चुनौती, जानिए किस पार्टी की क्या है ताकत व कमजोरी

UP Vidhan Sabha Chunav 2022 वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी लहर पर सवार होकर जिले की सभी सीटें जीतने वाली भाजपा पर गढ़ बचाने की चुनौती है वहीं विपक्षी दल महंगाई बेरोजगारी और कृषि कानून विरोधी आंदोलन की यादें ताजा कर माहौल बनाने में लगे हैं।

By Mangal YadavEdited By: Published: Wed, 19 Jan 2022 03:24 PM (IST)Updated: Wed, 19 Jan 2022 03:24 PM (IST)
UP Chunav 2022: गाजियाबाद में भाजपा के सामने अपना गढ़ बचाने की चुनौती, जानिए किस पार्टी की क्या है ताकत व कमजोरी
गाजियाबाद में भाजपा के सामने अपना गढ़ बचाने की चुनौती, जानिए किस पार्टी की क्या है ताकत व कमजोरी

गाजियाबाद [आशुतोष अग्निहोत्री]। एनएच-नौ के रास्ते दिल्ली से उत्तर प्रदेश में प्रवेश करते ही साहिबाबाद विधानसभा क्षेत्र की शुरुआत होती है। मतदाताओं के लिहाज से देश के सबसे बड़े विधानसभा क्षेत्र में 10.12 लाख मतदाता हैं। भाजपा ने वर्तमान विधायक सुनील शर्मा को प्रत्याशी बनाया है। सपा- रालोद गठबंधन से पूर्व विधायक अमरपाल शर्मा और आम आदमी पार्टी से छवि यादव मैदान में हैं। बसपा और कांग्रेस ने फिलहाल साहिबाबाद में अपने पत्ते नहीं खोले हैं। सोसायटियों और हाइराइज इमारतों से घिरे इस विधानसभा क्षेत्र में सरकारी अस्पताल और कूड़ा निस्तारण बड़ा मुद्दा है।

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एनएच-नौ के रास्ते दिल्ली से उत्तर प्रदेश में प्रवेश करते ही साहिबाबाद विधानसभा क्षेत्र की शुरुआत होती है। मतदाताओं के लिहाज से देश के सबसे बड़े विधानसभा क्षेत्र में 10.12 लाख मतदाता हैं। भाजपा ने वर्तमान विधायक सुनील शर्मा को प्रत्याशी बनाया है। सपा- रालोद गठबंधन से पूर्व विधायक अमरपाल शर्मा और आम आदमी पार्टी से छवि यादव मैदान में हैं। बसपा और कांग्रेस ने फिलहाल साहिबाबाद में अपने पत्ते नहीं खोले हैं। सोसायटियों और हाइराइज इमारतों से घिरे इस विधानसभा क्षेत्र में सरकारी अस्पताल और कूड़ा निस्तारण बड़ा मुद्दा है।

दिल्ली बार्डर से सटा लोनी विधानसभा क्षेत्र मिश्रित आबादी वाला इलाका है। संवेदनशील श्रेणी में शामिल लोनी विधानसभा क्षेत्र हर साल सर्दियों में गैस का चेंबर बन जाता हैं। सरकारें आईं और गईं लेकिन अपराध यहां कम नहीं हुआ। 5.10 लाख मतदाता वाले इस विधानसभा क्षेत्र से वर्तमान में भाजपा के नंद किशोर गुर्जर विधायक हैं। सपा ने रालोद कोटे से पूर्व विधायक मदन भइया, कांग्रेस ने यामीन मलिक, बसपा ने हाजी आकिल और आम आदमी पार्टी ने सचिन शर्मा पर दांव लगाया है।

गाजियाबाद विधानसभा क्षेत्र शहर का सबसे पुराना विधानसभा क्षेत्र है, यहां पर 4.69 लाख मतदाता हैं। प्रदेश के स्वास्थ्य राज्यमंत्री अतुल गर्ग इस सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं। अतुल विकास मॉडल के नाम पर वोट मांग रहे हैं वहीं विपक्षी दल उनके व्यवहार और कोरोना काल के दौरान कार्यशैली को लेकर उन्हें निशाने पर ले रहे हैं। शहर सीट से सपा- रालोद गठबंधन से नये चेहरे के रूप में विशाल वर्मा और कांग्रेस से पूर्व सांसद सुरेंद्र गोयल के पुत्र सुशांत गोयल और बसपा ने भाजपा के बागी केके शुक्ला पर दांव लगाया है।

विधानसभा क्षेत्र में ग्रामीण और शहरी दोनों मतदाताओं की संख्या मिलीजुली है। 4.53 लाख मतदाताओं वाले इस विधानसभा क्षेत्र में मेरठ रोड पर लगने वाला जाम, कूड़ा निस्तारण की व्यवस्था दुरुस्त न होना बड़ी समस्या है। मुआवजे की मांग को लेकर मधुबन बापूधाम आवास योजना से प्रभावित कई गांव के किसानों का जीडीए से विवाद चल रहा है। भाजपा के अजितपाल त्यागी यहां विधायक हैं। भाजपा ने फिर उन्हीं पर भरोसा जताया है। सपा- रालोद गठबंधन से सुरेंद्र कुमार मुन्नी, कांग्रेस से विजेंद्र यादव और बसपा से अय्यूब इदरीसी मैदान में हैं।

मोदीनगर विस सीट मेरठ से लगी है, यहां पर ग्रामीण मतदाता अधिक है, इसलिए गन्ना किसानों से जुड़े मुद्दे हावी रहते हैं। डा. मंजू शिवाच यहां भाजपा से विधायक हैं। मोदी नगर में 3.30 लाख मतदाता हैं। सपा- रालोद गठबंधन ने पूर्व विधायक सुदेश शर्मा को फिर से टिकट दिया है। बसपा से पूनम गर्ग और आम आदमी पार्टी से हरेंद्र शर्मा चुनाव लड़ रहे हैं। अभी कांग्रेस का प्रत्याशी घोषित नहीं है।

भाजपा

ताकत : जिले में संगठन सबसे अधिक मजबूत, केंद्र व प्रदेश सरकार की योजनाओं की उपलब्धियां

कमजोरी : कृषि कानून विरोधी आंदोलन का असर, स्थानीय स्तर पर संगठन में विरोध के सुर

सपा- रालोद गठबंधन

ताकत : जाट, गुर्जर, व मुस्लिम वोटबैंक, कृषि कानून विरोधी आंदोलन के बाद बदला माहौल

कमजोरी : गठबंधन के बावजूद अभी तक दोनों दलों के कार्यकर्ताओं में आपसी सामंजस्य की कमी

बसपा

ताकत : दलित वोटबैंक का एकतरफा पार्टी की तरफ झुकाव

कमजोरी : सांगठनिक रूप से कमजोर, अभी तक सभी प्रत्याशी तक तय नहीं

कांग्रेस

ताकत : प्रियंका वाड्रा के आने के बाद कार्यकर्ता सक्रिय हुए हैं

कमजोरी : जिले में कोई बड़ा चेहरा नहीं, पुराने नेताओं की अनदेखी ।


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