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घड़ी देखकर काम करता है इम्यून सिस्टम, शरीर में लगातार चलती रहती है कोशिकाओं की पैट्रोलिंग

हमारी दिनचर्या के सुचारु तरीके से चलने में बॉडी क्लॉक यानी जैविक घड़ी की बड़ी भूमिका होती है। इम्यून कोशिकाओं समेत शरीर की सभी कोशिकाएं यह बता सकती हैं कि दिन का कौन सा समय चल रहा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 08 Jun 2021 09:09 AM (IST)Updated: Tue, 08 Jun 2021 09:09 AM (IST)
घड़ी देखकर काम करता है इम्यून सिस्टम, शरीर में लगातार चलती रहती है कोशिकाओं की पैट्रोलिंग
हर कोशिका में कुछ प्रोटीन होते हैं, जिनके स्तर से समय का पता लग सकता है।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। किसी भी वायरस या बैक्टीरिया से सामना होने पर हमारे शरीर की रक्षा की जिम्मेदारी हमारे इम्यून सिस्टम (प्रतिरक्षा प्रणाली) की होती है। इम्यून सिस्टम इन्हें पहचानने और इनकी वजह से हुए नुकसान को सही करने के लिए पूरी तरह प्रशिक्षित होता है। यह एंटीबॉडी तैयार करता है, जिससे शरीर बीमारी से लड़ने में सक्षम हो पाता है। अब इसके काम करने के तरीके और इसकी सक्रियता पर चौंकाने वाली बात सामने आई है। लंबे समय तक हुए विभिन्न शोध के मुताबिक, दिन के अलग-अलग समय हमारा इम्यून सिस्टम अलग-अलग तरीके से काम करता है। दिन के कुछ हिस्से में इम्यून कोशिकाओं की सक्रियता ज्यादा रहती है, तो कुछ समय कम। किसी वायरस का संक्रमण कितना गंभीर असर डाल सकता है, यह भी इस पर निर्भर करता है कि आप उस वायरस की चपेट में कब आए।

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बॉडी क्लॉक तय करती है इम्यून सेल का काम: हमारी दिनचर्या के सुचारु तरीके से चलने में बॉडी क्लॉक यानी जैविक घड़ी की बड़ी भूमिका होती है। इम्यून कोशिकाओं समेत शरीर की सभी कोशिकाएं यह बता सकती हैं कि दिन का कौन सा समय चल रहा है। हर कोशिका में कुछ प्रोटीन होते हैं, जिनके स्तर से समय का पता लग सकता है। दिन के समय के हिसाब से हमारा शरीर खुद को काम करने के लिए तैयार करता है। उदाहरण के तौर पर यदि आप किसी तय समय पर खाना खाते हैं, तो हर दिन ठीक उसी समय आपको भूख महसूस होने लगती है। हमारी बॉडी क्लॉक तय करती है कि रात के वक्त मेलाटोनिन का स्राव हो, जिससे आप थकान का अनुभव करें। यह इस बात का संकेत होता है कि सोने का समय हो गया है।

क्या है अध्ययन की अहमियत?: जानकारों का कहना है कि अभी कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए जो टीके विकसित किए गए हैं, उनकी एफिकेसी यानी दक्षता बहुत ज्यादा है। इतनी दक्षता वाले टीकों के मामले में समय से बहुत असर पड़ने का अनुमान कम है। साथ ही, महामारी के हालात में जब भी संभव हो टीकाकरण करते हुए ज्यादा से ज्यादा लोगों को सुरक्षित करने की जरूरत है। लेकिन, भविष्य में कम दक्षता वाले टीकों के मामले में यह रणनीति कारगर साबित हो सकती है। बुजुर्ग लोग, जिनके शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता कम होती है, उनके टीकाकरण के मामले में भी भविष्य में समय आधारित ऐसी रणनीति अपनाई जा सकती है, जिससे टीके का अधिकतम असर हो सके।

शरीर में लगातार चलती रहती है कोशिकाओं की पैट्रोलिंग: इम्यून सिस्टम में कई अलग-अलग तरह की इम्यून कोशिकाएं होती हैं, जो शरीर में किसी भी तरह के संक्रमण या उससे हुए नुकसान का पता लगाती हैं। बॉडी क्लॉक से ही यह तय होता है कि किस समय ये कोशिकाएं कहां होंगी। मोटे तौर पर ऐसे समङिाए कि दिन में इम्यून कोशिकाएं टिश्यू में रहती हैं और रात के समय शरीर में चक्कर लगाती हैं। संभवत: ऐसा इसलिए है, क्योंकि बॉडी क्लॉक ने इम्यून कोशिकाओं को उस समय टिश्यू में रहने का निर्देश दिया है, जब किसी संक्रमण की चपेट में आने का खतरा ज्यादा रहता है। वहीं, रात में इम्यून कोशिकाएं शरीर में घूमती हैं और लिंफ नोड्स में आकर ठहर जाती हैं। यहां वे दिनभर सामने आए वायरस, बैक्टीरिया आदि से जुड़ी यादें नोट करती हैं, जिससे भविष्य में उस खतरे से बेहतर तरीके से निपटा जा सके।

वैक्सीन पर भी पड़ता है प्रभाव: कुछ अध्ययनों में ऐसे प्रमाण भी मिले हैं कि वैक्सीन लगवाने के समय के आधार पर उसका असर बदल सकता है। 2016 में एक ट्रायल में पाया गया था कि इंफ्लूएंजा का टीका सुबह नौ से 11 बजे के बीच लगाने पर शाम तीन से पांच बजे की तुलना में ज्यादा असर करता है। इसी तरह, 20 से 30 साल की उम्र के जिन लोगों को बीसीजी का टीका सुबह आठ से नौ के बीच लगा था, उनमें दोपहर एक बजे के आसपास टीका लगवाने वालों की तुलना में ज्यादा असर देखा गया। वहीं, हेपेटाइटिस ए के टीके के मामले में देखा गया है कि टीकाकरण के बाद पर्याप्त नींद लेने से असर बढ़ जाता है।

बदल जाता है दवा का असर: दवाओं का असर भी इस बात से प्रभावित होता है कि आपने किस समय दवा ली। उदाहरण के तौर पर, शरीर में सोते समय कोलेस्ट्रॉल बनता है। ऐसे में शॉर्ट-एक्टिंग स्टेटिन यानी कोलेस्ट्रॉल को कम करने वाली दवा सोने से ठीक पहले लेने पर सबसे ज्यादा असर करती है।


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