सदस्यों के नाम को लेकर अटकी है सूची, टकराव से शिक्षकों व छात्रों को होगी परेशानी
कुलपति ने एक समिति बनाकर समस्या के समाधान की तरफ कदम बढ़ाया, लेकिन पांच सदस्यीय समिति ने भी सदस्यों के नामों में बिना बड़े फेरबदल किए उसे आगे बढ़ा दिया।
नई दिल्ली [अभिनव उपाध्याय]। दिल्ली सरकार की पूर्व की चेतावनी को डीयू ने गंभीरता से नहीं लिया, जिसके बाद 31 जुलाई को डीयू कॉलेजों की वित्तीय सहायता रोक दी गई। सूत्रों के अनुसार कॉलेजों की गवर्निंग बॉडी के सदस्यों की सूची से कुछ नामों पर आपत्ति है और उनकी जगह दूसरे नामों को जोड़ना है।
डीयू के समक्ष यह दुविधा है कि वह किस आधार पर ये नाम सूची से निकाले, क्योंकि जिन नामों पर दिल्ली सरकार ने मुहर लगा दी है उन्हें यदि डीयू हटाता है तो सरकार इसका लिखित कारण पूछेगी। देरी की वजह भी यही है। हालांकि इन विषयों पर डीयू का कोई अधिकारी खुलकर बोलने को तैयार नहीं है। इस सूची में जेएनयू के विवादित प्रोफेसर सहित कई ऐसे नाम हैं, जिन पर डीयू के शिक्षक नेता ही नहीं कार्यकारी समिति के सदस्यों को भी आपत्ति है।
दिल्ली सरकार द्वारा 100 फीसद वित्त पोषित कॉलेजों के प्रिंसिपल इस पूरे मामले में खुद को बचाते नजर आ रहे हैं। मामले की पृष्ठभूमि में जाकर देखे तो पता चलता है कि डीयू के कार्यकारी समिति की बैठक में कॉलेजों की गवर्निंग बॉडी के सदस्यों के नामों को लेकर आपत्ति और नियमों का हवाला देते हुए सदस्यों ने सवाल उठाए थे। इसके बाद कुलपति ने एक समिति बनाकर समस्या के समाधान की तरफ कदम बढ़ाया, लेकिन पांच सदस्यीय समिति ने भी सदस्यों के नामों में बिना बड़े फेरबदल किए उसे आगे बढ़ा दिया।
सूत्रों के अनुसार कार्यकारी समिति की बैठक में सदस्यों को दो तरह की आपत्ति थी। पहली यह कि जो नाम कॉलेजों की गवर्निंग बॉडी के लिए भेजे गए थे, वे कार्यकारी समिति के सदस्यों के समक्ष नहीं रखे गए थे। दूसरा यह कि कॉलेजों की गवर्निंग बॉडी के सदस्यों का प्रारूप डीयू के नियमों की अवहेलना करके बनाया गया। प्रारूप में एकरूपता नहीं होनी चाहिए।
कई कॉलेजों की गवर्निंग बॉडी के सदस्यों में विविधता का अभाव है। जैसे कि किसी कॉलेज की गवर्निंग बॉडी में अधिकांश शिक्षाविद थे तो कहीं सामाजिक कार्यकर्ता अधिक थे। हालांकि पूरे मामले में प्रभावी शिक्षक संगठनों के दखल की बात भी कही जा रही है।
डीयू के डीन ऑफ कॉलेजेज प्रो.देवेश सिन्हा का कहना है कि जब हमें सरकार की तरफ से जानकारी मिली तो डीयू द्वारा एक पत्र दिल्ली सरकार के उच्च शिक्षा सचिव को भेजा गया। उनसे कहा गया कि जल्द से जल्द नामों की सूची भेज दी जाएगी। सूची भेजने में देरी का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि ये नाम कार्यकारी समिति के समक्ष रखे गए तो सदस्यों को कुछ आपत्ति थी, जिसके बाद एक सप्ताह में उन्होंने रिपोर्ट भेजी। यह जल्द ही दिल्ली सरकार के समक्ष भेज दी जाएगी।
दो बिंदुओं पर थी आपत्ति
डीयू में कार्यकारी समिति के सदस्य और गवर्निंग बॉडी के सदस्यों के मामले में बनी समिति के सदस्य एके भागी का कहना है कि हमें दो बिंदुओं पर आपत्ति थी। समिति ने डीयू को यह बताया कि किस-किस कॉलेज में गवर्निंग बॉडी के सदस्यों में एकरूपता है और कहां-कहां इसमें बदलाव किया जा सकता है।
यह रिपोर्ट एक सप्ताह पहले भेजी जा चुकी है। यह देरी समिति की तरफ से नहीं हुई है। कार्यकारी समिति के सदस्य राजेश झा का कहना है कि सरकारों के लिए शिक्षण संस्थान साफ्ट टारगेट होते हैं। डीयू और सरकार के टकराव से शिक्षकों व छात्रों को परेशानी होगी।
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