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डीयू के पाठ्यक्रम में आतंकवाद को शामिल करने की तैयारी, उठने लगे विरोध के सुर

पाठ्यक्रम में हिंसा को उचित ठहराने वाले विवादित सऊदी सलाफी विद्वान इबैन तैयमियाह को भी स्थान दिया गया है।

By JP YadavEdited By: Published: Wed, 11 Jul 2018 05:28 AM (IST)Updated: Wed, 11 Jul 2018 09:03 AM (IST)
डीयू के पाठ्यक्रम में आतंकवाद को शामिल करने की तैयारी, उठने लगे विरोध के सुर
डीयू के पाठ्यक्रम में आतंकवाद को शामिल करने की तैयारी, उठने लगे विरोध के सुर

नई दिल्ली (मनोज भट्ट)। देश के नामी संस्थानों में शुमार दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में छात्रों को अब अंतराष्ट्रीय आतंकवाद का पाठ पढ़ाने की तैयारी कर रहा है। पाठ्यक्रम में अलकायदा आइएस के गठन की वजह, वहाबी संप्रदाय के प्रचार -प्रसार, और पेट्रो- डॉलर इस्लाम को शामिल किया गया है। जबकि हिंसा को उचित ठहराने वाले विवादित सऊदी सलाफी विद्वान इबैन तैयमियाह को भी स्थान दिया गया है। इस्लाम व अंतरराष्ट्रीय संबंध के नाम से शुरू हो रहे पाठ्यक्रम के सार्वजनिक होने के बाद से इसका विरोध भी शुरू हो गया है।

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बता दें कि जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में बीते दिनों इस्लामिक आतंकवाद पर पाठ्यक्रम शुरू करने की कोशिश की थी, जिसका काफी विरोध हुआ था। इसी बीच डीयू ने इस्लाम के अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद संबंधों पर व्याख्या करते हुए इस्लाम व अंतरराष्ट्रीय संबंध को लेकर पाठ्यक्रम शुरू करने की कवायद तेज कर दी है। जो परास्नातक में राजनीतिक विज्ञान के छात्रों को पढ़ाया जाएगा।

वहीं, 100 नंबर के इस पाठ्यक्रम को चार यूनिटों में बांटा गया है, जिसमें अमेरिका में 9 सितंबर को हुए आतंकी हमले के बाद के परिप्रेक्ष्य में इस्लाम, इराक युद्ध, आइएस का गठन, अफगानिस्तान युद्ध, अल-कायदा का गठन, वहाबी संप्रदाय, पेट्रो-डॉलर इस्लाम और अंतरराष्ट्रीय जिहाद के वैश्वीकरण जैसे पाठकों को शामिल किया गया है।

इस पाठ्यक्रम को शुरू करने को लेकर डीयू राजनीतिक विज्ञान की विभागाध्यक्ष डॉ. नवनीत बेहरा का कहना है कि दुनिया में एंग्लो अमेरिकन अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अलावा भी अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अलग- अलग नजरिए हैं। जिन्हें समझने के लिए यह पाठ्यक्रम प्रस्तावित किया गया है। यह पाठ्यक्रम अन्य 80 वैकल्पिक पाठ्यक्रमों में से एक है। इसका चयन करने के उपरांत ही छात्र इसे पढ़ पाएंगे।

उन्होंने कहा कि अभी इस पाठ्यक्रम को अंतिम मंजूरी नहीं मिली है। इस पाठ्यक्रम को तैयार करने वाले प्रोफेसर संजीव कुमार एचएम पेट्रो-डॉलर इस्लाम व वहाबी संप्रदाय को लेकर कहते हैं कि 80 के दशक में अफगानिस्तान युद्ध के दौरान मुजाहिद्दीन को अमेरिका ने जो वित्तीय मदद उपलब्ध कराई थी, उसे पेट्रो-डॉलर इस्लाम कहा जा सकता है। जो कि पाठ्यक्रम का हिस्सा है।

प्रोफेसर संजीव भारतीय संदर्भ में पेट्रो-डॉलर इस्लाम (पेट्रोल के पैसों से धर्मातरण) के बारे में पूछे गए सवाल पर कहते हैं कि इसे फिलहाल पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं बनाया गया है। पाठ्यक्रम में शामिल वहाबी संप्रदाय को लेकर प्रोफेसर संजीव कहते हैं कि यह संप्रदाय इस्लाम के शुद्धतावादी वर्जन पर आधारित है, जिनका अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर प्रभाव है, लेकिन विवादित सऊदी सलाफी विद्वान इबैन तैयमियाह, इबन अलवहाह के हिंसा को जायज ठहराने वाले सवाल पर उनका कहना है कि सलाफी विद्वानों के विचार उस दौरान तो सही थे, लेकिन इस समय उनके विचारों को आधार बनाकर जिहाद का जो अर्थ बताया जा रहा है, वह गलत है। इस पाठ्यक्रम के सार्वजनिक हो जाने के बाद से ही इसका दबी जुबान में विरोध होना भी शुरू हो गया है।


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