दिल्ली में स्वाइन फ्लू के 1000 सामने आए सामने, जानिए- क्यों हो रहा है मरीजों में इजाफा
एक सप्ताह पहले दिल्ली में स्वाइन फ्लू के करीब 532 मामलों की पुष्टि हुई थी। तब आरएमएल में नौ, सफदरजंग अस्पताल में तीन और पश्चिमी दिल्ली में एक मरीज की मौत होने की बात सामने आई थी।
नई दिल्ली, जेएनएन। स्वाइन फ्लू का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है। अब तक दिल्ली में ही इसके एक हजार से अधिक मामले सामने आ चुके हैं। दो मरीजों की मौत तक हो चुकी है। इस तरह यहां के अस्पतालों में स्वाइन फ्लू से अब तक 14 मरीजों की मौत हो चुकी है। हालांकि, दिल्ली के स्वास्थ्य सेवाएं महानिदेशालय स्वाइन फ्लू के कारण किसी मरीज की मौत होने से इन्कार कर रहा है।
एक सप्ताह पहले दिल्ली में स्वाइन फ्लू के करीब 532 मामलों की पुष्टि हुई थी। तब आरएमएल में नौ, सफदरजंग अस्पताल में तीन और पश्चिमी दिल्ली स्थित निजी अस्पताल में एक मरीज की मौत होने की बात सामने आई थी। वहीं चार फरवरी तक यहां स्वाइन फ्लू के 1011 मामलों की पुष्टि हो चुकी है। इसके अलावा आरएमएल अस्पताल व एम्स में एक-एक मरीज की मौत हुई है।
एम्स, सफदरजंग और गंगाराम अस्पताल के डॉक्टरों ने संभावना जताई है कि इस बीमारी के फैलने के पीछे प्रदूषण और कम तापमान हो सकता है।
वायरस में बदलाव भी बड़ी वजह
स्वाइन फ्लू का वायरस खुद में बदलाव (म्यूटेशन) कर लेता है। वायरस में बदलाव आमतौर पर उन्हें दवा प्रतिरोधी बनाकर और खतरनाक बना देते हैं। उन्होंने कहा कि पहले हर तीन साल बाद स्वाइन फ्लू के मामले अचानक बढ़ जाते थे, लेकिन वायरस ने इस तरह बदलाव किया है कि अब यह हर दूसरे साल बाद खतरनाक होकर उभरता है।
ऐसे फैलता है यह मर्ज
स्वाइन फ्लू का संक्रमण व्यक्ति को स्वाइन फ्लू के रोगी के संपर्क में आने पर होता है। इस रोग से प्रभावित व्यक्ति को स्पर्श करने (जैसे हाथ मिलाना), उसके छींकने, खांसने या पीड़ित व्यक्ति की वस्तुओं के संपर्क में आने से स्वाइन फ्लू से कोई व्यक्ति ग्रस्त होता है। खांसने, छींकने या आमने-सामने निकट से बातचीत करते समय रोगी से स्वाइन फ्लू के वायरस दूसरे व्यक्ति के श्वसन तंत्र (नाक, कान, मुंह, सांस मार्ग, फेफड़े) में प्रवेश कर जाते हैं। अनेक लोगों में यह संक्रमण बीमारी का रूप नहीं ले पाता या कई बार सर्दी, जुकाम और गले में खराश तक ही सीमित रहता है।
इन्हें है ज्यादा खतरा
- ऐसे लोग जिनका प्रतिरक्षा तंत्र (इम्यून सिस्टम) कमजोर होता है। जैसे बच्चे,वृद्ध, डायबिटीज या एच.आई.वी से ग्रस्त व्यक्ति।
- दमा और ब्रॉन्काइटिस के मरीज।
- नशा करने वाले व्यक्ति।
- कुपोषण, एनीमिया या अन्य क्रोनिक बीमारियों से प्रभावित लोग।
- गर्भवती महिलाएं इस संक्रमण की चपेट में जल्दी आती हैं। गर्भवती महिलाओं में संक्रमण के कारण मृत्यु दर तुलनात्मक रूप से अधिक होती है। ऐसी महिलाओं को अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत अन्य लोगों की तुलना में ज्यादा हो सकती है।
जटिलताएं
स्वाइन फ्लू के सामान्य लक्षणों के जटिल होने से रोगी को लोअर रेस्पाइरेटरी ट्रैक्ट इंफेक्शन, डीहाइड्रेशन और निमोनिया हो सकता है। ऐसी स्थितियों में रोगी की जान खतरे में पड़ सकती है। गले का खराब होना और कभी-कभी छाती में तकलीफ आदि जटिलताएं संभव हैं। इसके अलावा पुरानी गंभीर बीमारी का बिगड़ना जैसे अपर रेस्पाइरेटरी ट्रैक्ट की बीमारियां (साइनोसाइटिस आदि) और लोअर रेस्पाइरेटरी ट्रैक्ट की बीमारियां (निमोनिया, ब्रॉन्काइटिस और दमा) होने की आशंकाएं ज्यादा होती हैं। इसी तरह हृदय संबंधी कुछ बीमारियों के होने का जोखिम भी बढ़ जाता है। वहीं स्वाइन फ्लू की गंभीर स्थिति में न्यूरोलॉजिकल डिस्ऑर्डर भी उत्पन्न हो सकते हैं।
तब हो जाएं सचेत
जब पीड़ित व्यक्ति में स्वाइन फ्लू के लक्षण हों और उसे बुखार रहे। इंफ्लूजा ए के उप प्रकार एच1 और एन 3 के लिए की जाने वाली जांच पॉजिटिव हो। इंफ्लूजा ए के लिए रैपिड टेस्ट पॉजिटिव पाया जाए।
ऐसे लगेगा बीमारी का पता
- किसी मरीज को स्वाइन फ्लू होने की पुष्टि तब मानी जा सकती है, जब नेजोफेरेनजियल स्वाब निम्न तीन में से किसी एक के लिए पॉजिटिव हो...
- विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला से पीड़ित की जांच में इंफ्लूजा ए एच1 एन1 एंटीबॉडीज की संख्या चार गुना अधिक पाई जाए।
- रियल टाइम पी.सी.आर. जांच पॉजिटिव हो।
- वायरल कल्चर की जांच पॉजिटिव हो।
इलाज के बारे में
स्वाइन फ्लू का इलाज डॉक्टर की सलाह पर रोगी के लक्षणों के आधार पर किया जाता है। इलाज की इस प्रक्रिया में बुखार के लिए पैरासीटामोल, खांसी के लिए कफ सीरप, सर्दी-जुकाम व छींकों के लिए एंटी एलर्जिक दवाएं दी जाती हैं। इसी तरह वायरस रोधी दवाएं भी दी जाती हैं। ए एच1 एन1 के नियंत्रण में वायरस रोधी दवा ओसेल्टामिवीर फॉस्फेट खांसी में कारगर है। इसके अलावा जेनामिवीर नामक वायरस रोधी दवा भी स्वाइन फ्लू के इलाज में प्रयुक्त हो रही है।
लक्षण
- तेज बुखार होना।
- खांसी आना।
- गले में तकलीफ होना।
- शरीर में दर्द होना।
- सिर दर्द और कंपकंपी महसूस होना।
- कमजोरी का अहसास।
- कुछ लोगों में दस्त और उल्टी की भी समस्या हो सकती है।
स्वाइन फ्लू का उपचार
- स्वाइन फ्लू का उपचार सामान्य फ्लू के जैसे ही किया जाता और ठंड, कफ, बुखार से बचने के लिए पैरासिटामाल या एंटीरेट्रोवायरल जैसी विषाणुरोधक दवाएं भी दी जाती हैं।
- युवाओं में बुखार और ठंड से बचने के लिए पैरासिटामाल दिया जाता है।
- बच्चों को कभी कभी अतिरिक्त उपचार की आवश्यकता होती है ।
- 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को एस्पिरिन जैसी दवाएं नहीं देनी चाहिए।
- स्वाइन फ्लू से बचने के लिए सुरक्षा के उपाय अपनायें। ऐसी जगह जहां संक्रमण होने की सम्भावना है वहां मास्क लगाना ना भूलें। ऐसे क्षेत्रो का दौरा करने से बचें जहां स्वाइन फ्लू फैला हो।