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कभी धागों में गुंथकर पौराणिक ग्रंथ तो कहीं गांधी का आत्मचित्र रंग तस्वीरों में करते है बयां

रंगों के स्वर खामोशी से कानों में उतरे हौले हौले कदमों से दिल में प्रवेश करते हैं और आत्मिक सुकून के सफर पर निकल जाते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 07 Feb 2020 01:11 PM (IST)Updated: Fri, 07 Feb 2020 01:14 PM (IST)
कभी धागों में गुंथकर पौराणिक ग्रंथ तो कहीं गांधी का आत्मचित्र रंग तस्वीरों में करते है बयां
कभी धागों में गुंथकर पौराणिक ग्रंथ तो कहीं गांधी का आत्मचित्र रंग तस्वीरों में करते है बयां

नई दिल्‍ली, संजीव कुमार मिश्र। कैनवस की भाषा, आप समझते हैं? बहुत सरल और सहज होती है। स्वर संतति में प्रवेश करते ही भावों की अभिव्यक्ति का ज्वार सा फूटता है। हर ओर दीवारों पर टंकी शांति... अंहिसा...देश...एकता की कहानी कहते कैनवस। अलग-अलग विधाओं से प्रस्तुत की गई कला आकर्षित करती है। प्रवेश द्वार पर तो मानों गांधी और नेहरु साथ मिलकर प्रदर्शनी में आने वालों का मुस्कराते हुए स्वागत कर रहे हैं, आगे बढ़ एक अलग ही कलात्मक दुनिया में प्रवेश करने को प्रेरित कर रहे हैं।

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यहां हर कला हर रूप में अद्भुत है। गांधी के अलावे यहां सिल्क की साड़ियों पर उकेरी गईं राजा रवि वर्मा की कलाकृतियां भी प्रदर्शनी का शृंगार करती हैं। राजा रवि वर्मा, जो राजा तो नहीं थे लेकिन उनकी कलाकृतियां जरूर दर्शकों के दिलों पर राज करती थीं। जिन्होंने देवी देवताओं, पौराणिक कथाओं पर आधारित कलाकृतियां बनाईं। प्रदर्शनी की क्यूरेटर लवीना बलदोता कहती हैं कि यह प्रदर्शनी कला के विविध आयामों से दर्शकों को रूबरू कराती है।

प्रतिभागी कलाकार विजुअल और परफॉर्मिंग आर्ट, डिजाइन और साहित्यकार हैं। कहती हैं कि स्वर संतति, मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से आत्मनिरीक्षण का एक असीम कैनवस बन गया है और गांधीवादी प्रभाव से प्राप्त लोकाचारों के धागों से बुनी आत्म-खोज मेरी आंतरिक भावनाओं, विशेष रूप से मेरी जड़ों, मेरे देश, इसके नेताओं के लिए प्यार और गर्व के साथ प्रदान किया गया है कलाकारों, कारीगरों, इसके सौंदर्यशास्त्र और इसकी समृद्ध विरासत से जोड़ता है। दर्शकों की निगाह से देखें तो प्रदर्शनी मुख्यतया चार भागों में बंटी है।

 

अद्भुत हो तुम, देश की लाठी हो तुम...हर स्वरूप देश को समर्पित रहा आपका...शायद यह दर्शक भी महात्मा गांधी के विभिन्न रूपों को निहारकर उनके गुणों को आत्मसात करने का प्रयास कर रहे है।

हॉल में प्रवेश करते ही सबसे पहले गांधी जी पर आधारित कलाकृतियां दर्शकों के कदम रोकती हैं। यहां गांधी के अलावा पंडित जवाहर लाल नेहरु को सत्यनारायण भगवान के सामने माला लेकर खड़े, अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को एक साथ दिखाया गया है। यह कोलॉज के जरिए बनाई गई कलाकृतियां है। बकौल लवीना स्वर संतति इस मायने में अनूठा है कि इसमें गांधी से जुड़ी चीजों के अलावा उनकी सोच को भी प्रदर्शित किया गया है।

यूं लिखीं थीं गांधी ने पातियां : दूसरा हिस्सा किशोर झुनझुनवाला द्वारा जुटाई गईं कलाकृतियां, तस्वीरों समेत विभिन्न पत्रों पर आधारित है। यहां गांधी जी की तस्वीर, उनके हाथों से लिखे पत्र, उनके द्वारा प्रयोग की गई सामग्री, बापू को श्रद्धांजलि देती कविताएं आदि हैं। यहां एक ऐसी ही कविता की पंक्तियां कुछ इस तरह हैं ‘इन आंखों से आंसू बहते हैं, जब याद तुम्हारी आती है।’ यहां प्रदर्शित हर चीज गांधी की याद को दर्शाती है। गांधी की तस्वीरों वाले औजार बॉक्स, टिफिन, पेन, केतली, गिलास समेत ताले भी प्रदर्शित हैं। यही नहीं पुरानी लालटेन, चिराग...गांधी के पत्र सभी जगह उनकी भावनाओं की अभिव्यक्ति व्यक्त होती है।

सन् 1943 में हरिबख्श को लिखे एक पत्र में महात्मा गांधी असहयोग आंदोलन के बारे में लिखते हैं कि ‘असहयोग एक बहुत बड़ा हथियार है। हमारा असहयोग काम करने के तरीकों से है। हमारा असहयोग, अंग्रेजों से नहीं है। मेरा अनुभव यही सिखाता है कि हमारा विकास त्याग के बिना नहीं।’ जबकि एक अन्य पत्र में वो लिखते हैं कि ‘सेठों को गरीबों की सेवा करनी चाहिए। उन्हें याद रखना चाहिए कि वो मनुष्य पहले हैं और सेठ बाद में।’ यह पत्र भी 1943 में देवचंद को लिखा गया है। वहीं एक अन्य पत्र दर्शकों को भावुक करता है।

गांधी जी लिखते हैं कि अहिंसा की नीति के अलावा मेरी कोई नीति नहीं है। मैं अपने देश या धर्म के लिए सत्य और अहिंसा की बलि नहीं दे सकता। सत्य और अहिंसा को छोड़कर देश और धर्म का भी भला नहीं हो सकता। इन पत्रों को बड़े कैनवस पर देखना दर्शकों को सुखद अनुभूति कराता है। हॉल में दर्शक उस वक्त और भी भावुक हो जाते हैं जब गांधी जी की अंतिम यात्रा और अस्थियों से संबंधित तस्वीरों के करीब पहुंचते हैं। यहां पंडित जवाहर लाल नेहरु की बिरला हाउस के गेट पर चढ़कर गांधी के मौत की खबर सुनाते की फोटो है, इसमें दिल्ली की भीड़ है। गांधी का आखिरी बार चेहरा देखने के लिए उमड़ा सैलाब है।

सिल्क की साड़ियों पर राजा रवि वर्मा की कलाकृतियां: मोलीवुड की अभिनेत्रियों शोभना, लिसी लक्ष्मी, ऐश्वर्या राजेश, और नादिया मोइदु सहित बारह हस्तियां हाल ही में एक कैलेंडर पर नजर आईं जिसकी खूब चर्चा हो रही है। यह कैलेंडर इसलिए भी खूब सुर्खियां बटोर रहा है क्योंकि यह राजा रवि वर्मा की कलाकृतियों पर आधारित है। फोटोग्राफर जीवेंकेट राम ने राजा रवि वर्मा के कुछ लोकप्रिय चित्रों को फिर से बनाने की कोशिश की है। यहां भी राजा रवि वर्मा की कलाकृतियां जीवंत दिखती हैं। इन कलाकृतियों को बड़ी संजीदगी और खूबसूरती से गौरांग शाह ने खादी और सिल्क की साड़ी पर उकेरा है। एक साड़ी को बनाने और उस पर कलाकृति बनाने में करीब दो साल का समय लगा है।

खुद लवीना भी कहती हैं कि इस पूरी प्रदर्शनी को अमलीजामा पहनाने में चार साल का समय लगा। यहां हॉल के एक सिरे से देखना शुरू करें तो पहली कलाकृति प्रियदर्शिका की है। जबकि दूसरी अंबिका की है। जिसे बड़े करीने से साड़ी पर उकेरा गया है। अंबिका दरअसल राजा रवि वर्मा की अनूठी कृति है। यह शरद ऋतु और फसलों की देवी है। जो सबको आशीर्वाद देती हैं। लाल साड़ी, सिर पर छत्र वाली यह कलाकृति दर्शकों को पसंद आती है। इसके अलावा महानंदा की कलाकृति बेमिसाल है। इसमें मलयाली महिला, वाद्य यंत्र के साथ बैठी है। एक अन्य कलाकृति वसंतसेना लाजवाब है, इसमें एक महिला दिखती है। साड़ी पहनने के तरीके से यह मराठा प्रतीत होती है। फर्श पर बैठक की व्यवस्था से उसके गायिका होने की पुष्टि होती है। वसंतिका का पीला रंग दर्शकों के कदमों को ठहरने पर मजबूर भी करता है।

वसंत मौसम है जबकि वसंतिका देवी हैं। कलाकृति में चारों तरफ फूल बिखरे हैं, मौसम का स्वागत कुछ ऐसा है कि दिल में उतर जाता है। इस कड़ी में सीता वनवास कलाकृति में सीता पेड़ के पास, पत्थर पर बैठी हैं। शांत बैठी सीता कुछ सोचती दिख रही हैं। इसके निहितार्थ कुछ यूं है कि सीता चौदह साल के वनवास के बाद महल तो जाती हैं लेकिन बहुत जल्द अग्निपरीक्षा के बावजूद उनकी जिंदगी की परीक्षाएं खत्म होने का नाम नहीं लेती। राजा रवि वर्मा की एक अन्य कृति शारदा को गौरांग ने साड़ी पर बखूबी उतारा है। इस कृति में शारदा हाथ में वाद्य यंत्र लिए हुए है।

हर कलाकृति कहानियों से भरपूर है। इसी तरह मोहिनी पौराणिक कहानी सुनाती है। मोहिनी, भगवान विष्णु का अवतार है। यह कलाकृति समुद्र मंथन से अमृत निकलने के बाद की है जहां मोहिनी झूला झूलते दिखती हैं। जबकि राधा कृष्ण कलाकृति के मजमून कुछ यूं है कि राधा खुश नहीं है। उन्हें कृष्ण की निष्ठा पर शक है कि ये बाद में पलट जाएंगे। इसलिए वो कृष्ण से बात तक नहीं करती हैं। ऐसे में कृष्ण और राधा के बीच बातचीत का मार्ग प्रशस्त करती हैं, एक दोस्त। इसके अलावा यहां विष्णु गरुड़ वाहन, विश्वरूप दर्शनम, मतस्य अवतार, ध्रुव नारायण, यशोदा और कृष्ण, शंकर गणेश पार्वती की कलाकृतियां दर्शकों को पौराणिक कहानियां सुनाती हैं।

प्रदर्शनी की खासियत

  • प्रदर्शनी के बीच-बीच में नवकीरत सोढ़ी द्वारा लिखी कविताएं दर्शकों के दिलों के तार छेड़ती हैं।
  • गौरव गुप्ता जो कि क्यूरेटर भी हैं। इन्होंने स्त्रोत स्थापित किया है जो महात्मा गांधी की धड़कन से प्रेरित है।
  • प्रदर्शनी में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की आर्काइव सेशन द्वारा प्रदत्त महात्मा गांधी के अंतिम संस्कार की कई फोटोे हैं। ये फोटो डीआरडी वाडिया, सुनील, शंभू साहा, हेनरी कर्टियर-ब्रीसन आदि की है।

रंगों के स्वर, खामोशी से कानों में उतरे, हौले हौले कदमों से दिल में प्रवेश करते हैं और आत्मिक सुकून के सफर पर निकल जाते हैं। एक अलग ही दुनिया होती है रंगों की, जो बेजुबान भी बातुनी से लगते हैं। कहानियां भी बेहिसाब सुनाते हैं, कभी धागों में गुंथकर पौराणिक ग्रंथ तो कहीं गांधी का आत्मचित्र रंग और तस्वीरों में बयां करते हैं। अद्भुत है इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में लगी स्वर संतति प्रदर्शनी।


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