सुप्रीम कोर्ट ने पलटा इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला, कहा- यमुना अथारिटी का भू-आवंटियों से अधिक रकम लेना उचित, जानें पूरा मामला
Yamuma Authority News जस्टिस एल. नागेश्वर राव और बीआर गवई की खंडपीठ ने गुरुवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले को दरकिनार कर दिया जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार के वर्ष 2014 के आधिकारिक फैसले को बेतुका अतार्किक और मनमाना करार दिया गया था।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। सुप्रीम कोर्ट ने यमुना एक्सप्रेस-वे इंडस्टि्रयल डेवलेपमेंट अथारिटी (येडा) की भूमि आवंटियों से आंदोलनकारी किसानों को बढ़ा हुआ मुआवजा देने के लिए अतिरिक्त रकम मांगने को सही ठहराया है। सर्वोच्च अदालत ने प्राधिकरण के फैसले के समर्थन में कहा कि नीतिगत फैसलों में घिसे-पिटे कानूनों को आड़े नहीं लाना चाहिए।
जस्टिस एल. नागेश्वर राव और बीआर गवई की खंडपीठ ने गुरुवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले को दरकिनार कर दिया, जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार के वर्ष 2014 के आधिकारिक फैसले को बेतुका, अतार्किक और मनमाना करार दिया गया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सरकार के इस फैसले को ट्रांसफर आफ प्रापर्टी एक्ट के प्रविधानों का उल्लंघन बताया था।
जस्टिस गवई ने अपने 66 पन्ने के फैसले में कहा कि एक घिसे-पिटे कानून के आधार पर नीतिगत फैसलों में दखलअंदाजी तब तक नहीं करनी चाहिए जब तक कि नीतिगत फैसले पूरी तरह से अतार्किक, गलत इरादे वाले और वैधानिक प्रविधानों का सीधा उल्लंघन न हों। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि व्यापक जनहित में लिए गए राज्य सरकार के नीतिगत फैसले में दखलअंदाजी करके हाई कोर्ट भी सही फैसला नहीं कर रहा था।
भूमि आवंटियों ने गौतमबुद्ध नगर जिले में येडा के पर स्क्वायर मीटर 600 रुपये अतिरिक्त मांगे जाने पर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। याचिका में किसानों के बढ़े मुआवजे के लिए अतिरिक्त रकम वसूलने के नीतिगत फैसले का विरोध किया गया था।
नोएडा और ग्रेटर नोएडा में आंदोलनरत किसान बढ़ा हुआ मुआवजा मांग रहे थे, इसकी भरपाई करने के लिए राज्य सरकार ने एक कमेटी गठित की थी जिसने मुआवजा बढ़ाकर दिए जाने की सिफारिश की थी। इसके बाद राज्य सरकार ने अतिरिक्त वित्तीय बोझ को निजी भू-आवंटियों पर डालते हुए उनसे अतिरिक्त रकम मांगते हुए नोटिस भेजा था।
अब सर्वोच्च अदालत ने हाई कोर्ट के फैसले को बदलते हुए इसे उत्तर प्रदेश सरकार के उचित नीतिगत फैसले में बेजा दखलअंदाजी बताया है। सर्वोच्च अदालत ने फैसले में कहा, 'अतिरिक्त रकम के नोटिस का फैसला नहीं लिया जाता तो किसानों के आंदोलन के चलते विकास का पूरा प्रोजेक्ट ठप पड़ सकता था।'
इसीलिए हाई कोर्ट ने अतार्किक आधार पर उत्तर प्रदेश सरकार के इस फैसले को बेतुका, अतार्किक और मनमाना करार दिया था। जबकि राज्य सरकार ने चौधरी समिति पर गौर करते हुए अपने नीतिगत फैसले में भू-आवंटियों, किसानों और येडा तीनों के ही हितों का ध्यान रखा था।
यह था पूरा मामला
यमुना प्राधिकरण के किसानों ने सपा सरकार में नोएडा, ग्रेटर नोएडा की तर्ज पर 64.7 प्रतिशत अतिरिक्त मुआवजा की मांग की थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कैबिनेट मंत्री राजेंद्र चौधरी की अध्यक्षता में समिति गठित कर इस पर रिपोर्ट मांगी थी। समिति ने सितंबर 2013 में अपनी रिपोर्ट देते हुए किसानों को शर्त के साथ 64.7 प्रतिशत मुआवजा देने की सिफारिश की थी। सरकार ने 2014 में शासनादेश जारी किया और अतिरिक्त मुआवजे की राशि आवंटियों से वसूलने का आदेश दिया।