नाराज SC ने कहा- दिल्ली में इमरजेंसी जैसे हालात, एलजी हाउस पर क्यों नहीं फेंकते कूड़ा?
दिल्ली में कचरा प्रबंधन नीति से असंतुष्ट सुप्रीम कोर्ट ने उपराज्यपाल को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि कचरे के पहाड़ से दिल्ली आपात स्थिति का सामना कर रही है।
नई दिल्ली (जेएनएन) दिल्ली में कचरा प्रबंधन नीति से असंतुष्ट सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के उपराज्यपाल को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि कचरे के पहाड़ के कारण दिल्ली आपात स्थिति का सामना कर रही है, लेकिन इससे निपटने में उस तरह की तत्परता नहीं दिखाई जा रही। कोर्ट ने दक्षिणी निगम को कचरा प्रबंधन पर 14 अगस्त तक पायलट प्रोजेक्ट योजना पेश करने का निर्देश देते हुए मामले की सुनवाई 17 अगस्त तक टाल दी।
ये तल्ख टिप्पणियां और निर्देश जस्टिस मदन बी. लोकुर व जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने दिल्ली में कचरा प्रबंधन मामले में सुनवाई के दौरान दिए। कोर्ट ने घरों से अलग-अलग छांट कर कूड़ा एकत्र करने के बारे में चल रहे पायलट प्रोजेक्ट पर रिपोर्ट मांगी है।
मामले पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार की ओर से पेश वकील से कहा कि सिर्फ दक्षिणी दिल्ली से प्रतिदिन 1800 टन कूड़ा एकत्र होता है। आपका कहना है कि कचरा प्रबंधन प्लांट दिसंबर तक शुरू होंगे। आपको अंदाजा है कि तब तक कितना कचरा इकट्ठा हो जाएगा। सात लाख टन से भी ज्यादा। दिल्ली में आपात स्थिति है, लेकिन उससे निपटने की तत्परता वैसी नहीं है। आपको उसका भान तक नहीं है।
राज निवास मार्ग पर क्यों नहीं फेंकते कचरा
अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएसजी) ने जब कहा कि सोनिया विहार के लोग लैंडफिल का विरोध कर रहे हैं, तो नाराज कोर्ट ने कहा कि आप एक घर से कचरा उठा कर दूसरे के घर के सामने कैसे फेंक सकते हैं? आपको विकल्प तलाशना होगा। सोनिया विहार के लोगों का विरोध जायज है। वे लोग वंचित और कमजोर हैं तो आप उनके घर के पास कूड़े का पहाड़ खड़ा करना चाहते हैं। राज निवास मार्ग पर कूड़ा क्यों नहीं फेंक देते? लोगों को यह कहने का अधिकार है कि उनके घर के सामने कूड़ा न डाला जाए।
आधी आबादी कर रही फेफड़े के कैंसर के खतरे का सामना
कोर्ट ने कहा कि गंगाराम अस्पताल की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली की आधी आबादी फेफड़े के कैंसर के खतरे की चपेट में है, जबकि धूमपान नहीं करती। नीति आयोग कहता है कि 2019 तक दिल्ली में पानी की कमी हो जाएगी। ऐसी स्थिति में दिल्ली में कौन जिंदा रह पाएगा। एलजी की ओर से दलील दी गई कि प्लांट लगाने में समय लगेगा। रातोंरात प्लांट नहीं लगाया जा सकता। कचरा प्रबंधन भी किया जा रहा है।
कोर्ट ने दिए सुझाव
पीठ ने कहा कि घरों से निकलने वाले कूड़े को अलग-अलग किया जाए। मसलन, कौन सा कूड़ा जैविक है और कौन सा नहीं। इसके बाद पूछा कि कचरे को छांटने की क्या योजना है? लोगों को कैसे बताएंगे कि कौन सा कचरा रिसाइकिल हो सकता है और कौन सा नहीं? लोगों के घरों से कूड़े को अलग-अलग लेने की क्या योजना है? जुर्माने का प्रावधान भी होना चाहिए। कोई निर्माण कार्य कर उसका कचरा फेंकता है तो भुगतान भी उसे ही करना चाहिए। कोई मरम्मत का काम करता है तो उस कूड़े के लिए उससे ही पैसे वसूले जाने चाहिए।
राजघाट मंदिर की तरह, किया जा रहा है बुरा बर्ताव: हाई कोर्ट
महात्मा गांधी का समाधि स्थल राजघाट एक मंदिर की तरह है, लेकिन उसके साथ बुरा बर्ताव किया जा रहा है। यह टिप्पणी सोमवार को हाई कोर्ट की मुख्य पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान की। कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर की पीठ ने कहा कि हमें राष्ट्रपिता के लिए कुछ करना चाहिए। अफसोस होता है कि गणमान्य व्यक्तियों ने जो पौधे राजघाट पर लगाए थे, वे बर्बाद हो चुके हैं। पीठ ने केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) को आदेश दिया कि वह 19 सितंबर तक प्रगति रिपोर्ट देकर बताए कि राजघाट के कायाकल्प के लिए क्या-क्या किया गया है?
राजघाट की दुर्दशा को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट की मुख्य पीठ ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के समाधि स्थल के रखरखाव में लापरवाही पर चिंता व्यक्त की। कहा कि कई बार निर्देश देने के बावजूद भी अधिकारी उदासीन हैं। बता दें कि राजघाट पर शौचालय, पीने के पानी, साफ-सफाई आदि की व्यवस्था सही नहीं होने को लेकर श्याम नारायण चौबे ने जनहित याचिका दायर की है। इस पर सुनवाई करते हुए पूर्व में भी हाई कोर्ट ने राजघाट समाधि कमेटी व सीपीडब्ल्यूडी समेत अन्य एजेंसियों को जमकर फटकार लगाई थी। कहा था कि सीपीडब्ल्यूडी व समाधि कमेटी अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रहीं हैं।