शुगर के मरीज जरूर पढ़ें ये खबर, यह काम करने से नही होगी किडनी खराब
चिकित्सा क्षेत्र में हो रहे बदलाव और किडनी प्रत्यारोपण की बुनियादी सुविधाओं पर डॉ. संदीप गुलेरिया से हमारे वरिष्ठ संवाददाता रणविजय सिंह ने बातचीत की।
नई दिल्ली, [रणविजय सिंह]। केंद्र सरकार ने दिल्ली के जाने-माने किडनी प्रत्यारोपण सर्जन डॉ. संदीप गुलेरिया को पद्मश्री सम्मान देने की घोषणा की है। उन्होंने अब तक करीब पांच हजार किडनी प्रत्यारोपित की हैं। मौजूदा समय में वह अपोलो अस्पताल में सेवाएं दे रहे हैं। इससे पहले वह एम्स में भी रह चुके हैं। डॉ. संदीप गुलेरिया की अब तक की उपलब्धियों, चिकित्सा क्षेत्र में हो रहे बदलाव और किडनी प्रत्यारोपण की बुनियादी सुविधाओं पर उनसे हमारे वरिष्ठ संवाददाता रणविजय सिंह ने बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश-
1. डॉक्टर के रूप में आपकी अब तक की जो सेवा रही है, उसे किस रूप में देखते हैं?
किडनी प्रत्यारोपण पर मैंने ज्यादा फोकस किया। वर्ष 1994 तक देश में लाइव डोनर किडनी प्रत्यारोपण ही होता था। वर्ष 1994 में ब्रेन डेड व्यक्तियों के अंगदान का प्रावधान हुआ। इसके बाद से यह कोशिश रही कि लोगों को अंगदान का महत्व बताया जाए। वर्ष 2003-04 में देश में पहली बार मैंने किडनी और पैंक्रियाज का प्रत्यारोपण शुरू किया। इसका मतलब यह कि मरीज को किडनी के साथ-साथ पैंक्रियाज प्रत्यारोपण भी किया गया था। किडनी खराब होने का सबसे बड़ा कारण मधुमेह व हाइपरटेंशन है। यदि मधुमेह की बीमारी को पैंक्रियाज प्रत्यारोपण से व किडनी खराब होने की बीमारी को किडनी प्रत्यारोपण से ठीक कर दें तो मरीज को बिल्कुल नया जीवन मिल जाता है। यह काम इस दृष्टि से ही था कि लोगों को यह समझ में आए कि मरने के बाद अंगदान करने से कई लोगों को जिंदगी मिल सकती है। तब से लेकर अब तक अंगदान के मामले में देश में काफी तरक्की हुई है। फिर भी अंगदान अभी बहुत बढ़ाने की जरूरत है।
2. पिछले एक दशक में चिकित्सा क्षेत्र में क्या बदलाव हुआ है?
मुख्य रूप से बदलाव यह हुआ है कि लोग यह मानने लगे हैं कि यदि किडनी खराब है तो प्रत्यारोपण उसका बेहतर इलाज है। लोग इस बात पर भी सहमत हो गए हैं कि भारत में किडनी प्रत्यारोपण की विश्वस्तरीय सुविधा मौजूद है और परिणाम भी बहुत अच्छे हैं। काफी लोग अंगदान के लिए भी प्रेरित हुए हैं।
3. लोगों को सस्ती चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए क्या करने की जरूरत है?
कुछ साल पहले अंग प्रत्यारोपण कराने वाले मरीजों को प्रत्यारोपण के बाद दी जाने वाली दवाएं विदेशों से आती थीं। वे दवाएं महंगी थीं। इसलिए इलाज का खर्च अधिक था। अब देश में ही जेनरिक दवाएं बनने लगी हैं। इसलिए दवाएं एक चौथाई खर्चे पर मिल जाती हैं। इससे काफी हद तक प्रत्यारोपण का खर्च कम हो गया है। इसके अलावा लोगों को अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होना जरूरी है। लोग अक्सर मधुमेह, हाइपरटेंशन जैसी बीमारियों को नजर अंदाज करते हैं, जो बाद में गंभीर बीमारियों का कारण बनती हैं। इस वजह से शारीरिक परेशानी तो होती ही हैं, साथ में खर्च होने पर आर्थिक नुकसान भी होता है। इसलिए मधुमेह व हाइपरटेंशन जैसी बीमारियों को नजरअंदाज करने की आदत छोड़नी होगी।
4. वैसे भी कहावत है कि इलाज से सावधानी बेहतर।
’निजी अस्पतालों पर बेवजह की जांच व सर्जरी करने के आरोप लगते रहते हैं, इसे नियंत्रित करने के लिए क्या करना चाहिए? जब हम डॉक्टर बनते हैं तो हमारा फर्ज बनता है कि हम इलाज में पारदर्शिता बरतें। मरीजों और उनके तीमारदारों को बीमारी के बारे में स्पष्ट जानकारी दी जानी चाहिए।
5. निजी अस्पतालों के बुनियादी ढांचे का फायदा आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को भी मिले, इसके लिए क्या किया जाना चाहिए?
सभी निजी अस्पतालों में ईडब्ल्यूएस के बेड निर्धारित व आरक्षित हैं। केंद्र सरकार ने इसके लिए नियम तय किए हैं। इसके अनुसार मरीजों का इलाज भी किया जाता है, पर यह समझना होगा कि अस्पताल में अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधा भी उपलब्ध कराने के साथ-साथ कर्मचारियों को वेतन भी देना होता है और भी कई तरह के खर्चें होते हैं, इसलिए दोनों चीजें साथ-साथ करना मुश्किल है। फिर भी प्रावधानों का पूरा पालन किया जाता है। वहीं केंद्र सरकार आयुष्मान भारत योजना के तहत गरीब लोगों को स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध करा रही है। यह एक अच्छा कदम है। ऐसी योजनाएं मरीजों की मददगार हो सकती हैं।
6. आप एम्स में भी प्रोफेसर रहे हैं। अब कई नए एम्स बन गए, फिर भी दिल्ली एम्स में भीड़ कम नहीं हो पा रही है, आपके अनुसार भीड़ कम करने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
नए एम्स जो बने हैं, उन्हें थोड़ा समय देना पड़ेगा। क्योंकि हर स्थान को स्थापित होने और नाम कमाने में समय लगता है। वक्त के साथ-साथ परिस्थितियां बदलेंगी और आने वाले समय में नए एम्स में बेहतर इलाज उपलब्ध होने से दिल्ली एम्स में भीड़ कम होगी।
7. सरकारी अस्पतालों में अंग प्रत्यारोपण कम होने का क्या कारण मानते हैं?
सरकारी अस्पतालों में मरीजों का दबाव ज्यादा है। इसके अलावा सरकारी क्षेत्र के चिकित्सा संस्थानों का दायित्व सिर्फ मरीजों का इलाज नहीं है, बल्कि छात्रों को मेडिकल पढ़ाने व शोध की जिम्मेदारी भी उन पर ही है। निजी अस्पतालों को सिर्फ मरीजों का इलाज करना है, मेडिकल प्रशिक्षण का काम न के बराबर है। एक ही संस्थान से तीन तरह के काम लेंगे तो हर चीज में थोड़ी कमी तो आएगी ही। सरकारी क्षेत्र के गैर शैक्षणिक अस्पतालों में चिकित्सा सुविधा बढ़ाकर किडनी प्रत्यारोपण को बढ़ावा दिया जा सकता है। यह तभी संभव है जब कार्डियोलॉजी के डॉक्टरों की टीम भी मौजूद हो।
8. कहा जाता है कि हर साल दो लाख लोगों को किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत होती है। इस लिहाज से क्या बुनियादी ढांचा उपलब्ध है?
कुछ साल पहले तक हर साल करीब तीन हजार किडनी प्रत्यारोपण होते थे। अब हर साल सात हजार से आठ हजार मरीजों को किडनी प्रत्यारोपण हो रहा है। अब छोटे शहरों में भी किडनी प्रत्यारोपण होने लगा है। आने वाले दिनों में प्रत्यारोपण और बढ़ेगा।
9. आने वाले दिनों में चिकित्सा क्षेत्र में किस तरह के बदलाव की उम्मीद है?
इलाज में तकनीक का इस्तेमाल बढ़ रहा है। आने वाले दिनों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल से चिकित्सा में भी बड़े बदलाव की उम्मीद है।