अध्ययन में सामने आई बात, म्यूकोरमाइकोसिस से पीड़ित 87 फीसद मरीजों ने ली थी स्टेरायड
अध्ययन में पाया गया है कि स्टेरायड का जमकर गलत इस्तेमाल हुआ। हल्के संक्रमण वाले मरीजों ने भी स्टेरायड दवा का इस्तेमाल किया जबकि ऐसे मरीजों को इस दवा की जरूरत नहीं होती। वहीं फंगल संक्रमण से पीड़ित 78 फीसद मरीजों को मधुमेह की बीमारी थी।
नई दिल्ली [रणविजय सिंह]। दिल्ली सहित देशभर के 104 अस्पतालों द्वारा किए गए अध्ययन में पता चला है कि म्यूकोरमाइकोसिस से पीड़ित 87 फीसद मरीजों ने स्टेरायड ली थी। इस फंगल संक्रमण से पीड़ित होकर अस्पतालों में इलाज के लिए पहुंचने वाले मरीजों ने कोरोना होने पर स्टेरायड दवा ली थी। अध्ययन में पाया गया है कि स्टेरायड का जमकर गलत इस्तेमाल हुआ। हल्के संक्रमण वाले मरीजों ने भी स्टेरायड दवा का इस्तेमाल किया, जबकि ऐसे मरीजों को इस दवा की जरूरत नहीं होती। वहीं फंगल संक्रमण से पीड़ित 78 फीसद मरीजों को मधुमेह की बीमारी थी। यह अध्ययन इंडियन जर्नल आफ आप्थेलमोलाजी में प्रकाशित हुआ है।
म्यूकोरमाइकोसिस से पीड़ित 2,826 मरीजों पर यह अध्ययन किया गया है। इनमें 735 मरीज कोरोना होने पर होम आइसोलेशन में थे। फिर भी होम आइसोलेशन में रहने वाले म्यूकोरमाइकोसिस के 73 फीसद मरीजों ने स्टेरायड का इस्तेमाल किया था। स्टेरायड दवा का इस्तेमाल करने वाले 42 फीसद मरीजों ने टेबलेट के रूप में यह दवा ली थी। वहीं करीब 67 फीसद मरीजों को नसों के माध्यम से स्टेरायड का इंजेक्शन दिया गया था। 21 फीसद मरीजों ने 10 दिन से अधिक समय तक यह दवा ली थी।
म्यूकरमाइकोसिस से पीड़ित 57 फीसद मरीजों को कोरोना से संक्रमित होने के दौरान ऑक्सीजन सपोर्ट दिया गया था, लेकिन अध्ययन में ऑक्सीजन के कारण फंगल संक्रमण होने की बात सामने नहीं आई। ज्यादातर मरीजों को कोरोना होने के 10 से 15 दिन के बीच यह संक्रमण हुआ। कई मरीजों में कोरोना से ठीक होने के तीन माह बाद तक म्यूकोरमाइकोसिस के संक्रमण का खतरा रहता है, इसलिए अध्ययन में कहा गया है कि तीन माह तक मरीज की फालोअप जांच जरूरी है।
अध्ययन में शामिल दिल्ली स्थित सेंटर फार साइट के चेयरमैन डॉ. महिपाल सचदेवा ने कहा कि कोरोना के इलाज में स्टेरायड का अधिक इस्तेमाल फंगल संक्रमण का एक बड़ा कारण हो सकता है। प्रमुख अध्ययनकर्ता डा. संतोष हनोवर ने कहा कि यह पाया गया कि स्टेरायड के इस्तेमाल व अनियंत्रित मधुमेह होने पर म्यूकोरमाइकोसिस होने का खतरा अधिक रहता है। बीमारी की पहचान देर से होने पर आंख की रोशनी भी जा सकती है और जान भी जा सकती है।
उन्होंने कहा कि भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के दिशानिर्देश के अनुसार मध्यम से गंभीर संक्रमण वाले मरीजों को ही स्टेरायड देना चाहिए, लेकिन यह पाया गया कि होम आइसोलेशन वाले मरीज भी खुद ही स्टेरायड ले रहे थे। यह सही है कि कोरोना मरीजों की जान बचाने के लिए स्टेरायड जरूरी है, लेकिन आइसीएमआर द्वारा तय दिशा निर्देश के अनुसार ही दवा देनी चाहिए। उन्होंने बताया कि मात्र 47 मरीज ऐसे मिले जो जिन्होंने स्टेरायड का इस्तेमाल नहीं किया था। उन्हें मधुमेह की बीमारी भी नहीं थी। फिर भी उन्हें गंभीर फंगल संक्रमण होने का एक कारण यह हो सकता है कि नाक में म्यूकोसा की एक परत होती है, जो फंगल संक्रमण से बचाती है। कोरोना का संक्रमण से म्यूकोसा को नुकसान पहुंचता है। इस वजह से नाक के हिस्से में प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। म्यूकोरमाइकोसिस का संक्रमण नाक के जरिये ही होता है।