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Air Pollution: नहीं रुका प्रदूषण तो पोरबंदर से पानीपत तक बनेगी ग्रीन वाल ऑफ इंडिया

वायु मंडल में आक्सीजन की मात्रा 21 फीसद होनी चाहिए लेकिन अब वो लगभग आधी रह गई है। यूएन के कार्यक्रम में सुझाव भी दिया था कि जिस तरह अफ्रीका में धूल को रोकने के लिए ग्रेट वाल बनाई गई उसी तरह भारत में भी ग्रीन वाल ऑफ इंडिया बने।

By Prateek KumarEdited By: Published: Wed, 07 Oct 2020 05:27 PM (IST)Updated: Wed, 07 Oct 2020 07:33 PM (IST)
Air Pollution: नहीं रुका प्रदूषण तो पोरबंदर से पानीपत तक बनेगी ग्रीन वाल ऑफ इंडिया
दिल्ली-एनसीआर में सभी जगह साल दर साल लगातार हाट स्पाट की संख्या में इजाफा हो रहा है।

नई दिल्‍ली, जागरण संवाददाता। कोरोना महामारी के कारण हाल में हुए लॉकडाउन के दौरान हमें कई अद्भुत चीजें देखने और सुनने को मिलीं। प्रकृति अपने मूल स्‍वरूप में लौटने लगी थी। सुबह चिड़ियों की चहचहाहट से नींद का खुलना। सड़कों पर से धूल का छू मंतर हो जाना। प्रदूषण जैसी चीजें का हमारी शब्दकोश से गायब हो जाना। कई सौ किलोमीटर से ही हिमालय की खूबसूरत चोटी का नजारा दिखना। सालों से जिस नदी को कचरे के साथ बहते हुए देखा उसके पानी का अचानक से नीला हो जाना। कुछ ऐसी चीजें थी जो हमारे जेहन से गायब हो चुकी थी मगर वह सब दिखींं। प्रदूषण के साथ हमने जीना सीख लिया था, मगर ऐसा बिल्‍कुल नहीं। हमारे प्रयास से फिर से प्रदूषण खत्‍म हो सकता है नहीं तो फिर पृथ्‍वी के महाप्रलय के देखने के लिए तैयार रहना होगा।

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दिल्‍ली सरकार को लिखा पत्र

बता दें कि दिल्‍ली में पराली और हॉट स्‍पाट के कारण लगातार प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है। हाल में ही पराली जलाने की कई घटनाएं प्रशासन के नजर में आई हैं। दिल्‍ली-एनसीआर में प्रदूषण कम करने के मद्देनजर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दिल्‍ली सरकार को एक खत लिखकर ध्‍यान दिलाया है। ठंड में स्‍थिति गंभीर ना हो इसलिए अभी से एहतियातन कदम उठाए जा रहे हैं। इसी क्रम में पत्र में सरकार को अभी से ही एक्‍शन में आने के लिए कहा गया है। कई बिंदु पर एक्‍शन लेने के लिए कहा गया है जैसे निर्माण क्षेत्र में मॉनिटरिंग, खुले में कचरे के डालने से रोकना और किसी ढांचे को तोड़ने के लिए लेने वाले एहतियात कदम की ओर इशारा किया गया है।

स्माग गन की स्थापना से समाप्त होगा हाट स्पाट

हाट स्पाट वह क्षेत्र, जहां पीएम 2.5 एवं पीएम-10 की मात्रा मानकों से काफी अधिक होती है। इन्हें नियंत्रित रखने के लिए बेहद जरूरी है कि ग्रीन कवर बढ़ाया जाए। क्षेत्र में पानी का छिड़काव हो, मैकेनाइज्ड स्वीपिंग मशीन और स्माग गन की स्थापना से हाट स्पाट को समाप्त किया जा सकता है। दिल्ली-एनसीआर में सभी जगह साल दर साल लगातार हाट स्पाट की संख्या में इजाफा हो रहा है। वर्ष 2015 से पहले गाजियाबाद में हाट स्पाट नहीं थे, लेकिन 2019 में इनकी संख्या करीब डेढ़ दर्जन हो गई।

इस कारण से बढ़ रही है हाट स्‍पाट की संख्‍या

पश्चिमी हवाओं के दबाव के साथ आने वाली धूल वायु की गुणवत्ता को खराब करती है, जिन जगहों पर अधिक खराब स्थिति होती है उसे हाट स्पाट घोषित किया जाता है। एनसीआर क्षेत्रों में दिल्ली की ओर से आने वाली हवा अधिक प्रभावित करती है। गाजियाबाद में मेट्रो, रैपिड रेल, एक्सप्रेस-वे, रेलवे आदि के बड़े प्रोजेक्ट के साथ रियल स्टेट की बहुत सी टाउनशिप निर्माणाधीन हैं। इस कारण यहां हाट स्पाट की संख्या बढ़ती जा रही है। औद्योगिक क्षेत्रों में देखें तो साइट-4, मेरठ रोड, बुलंदशहर रोड, साउथ साइड जीटी रोड, कविनगर, ट्रोनिका सिटी, मसूरी-गुलावटी रोड, मोहननगर समेत अन्य औद्योगिक क्षेत्रों की इकाइयां पुरानी तकनीक से स्थापित होने के कारण यहां की वायु की गुणवत्ता लगातार बेहद खराब होती जा रही है। हालात गैस चैंबर में तब्दील होने के बन जाते हैं। यहां प्रदूषण का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में गाजियाबाद की गिनती होती है।

आबादी और वाहन हैं बड़ी समस्या

प्रतिवर्ष करीब डेढ़ से दो लाख की आबादी रोजगार के लिए गाजियाबाद आती है। प्राकृतिक संसाधन कम होने के कारण कम आबादी के हिसाब से नगर की संरचना हुई थी। अब आबादी और उसके साथ वाहनों में हो रहे इजाफे से हाट स्पाट बढ़ते जा रहे हैं। सुबह और शाम के समय सड़कों पर वाहनों का रेला, ग्रीन बेल्ट को उजाड़कर बनाए गए कच्ची सड़क से उड़ते धूल के गुबार के कारण लोगों का सांस लेना मुश्किल हो रहा है।

ठंड में गहराती है समस्‍या

ठंड के मौसम में समस्या गंभीर हो जाती है, क्योंकि नमी के कारण हवा में घुलने वाले कण एकत्रित होते रहते हैं, जो वायु प्रदूषण व हाट स्पाट बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रकृति को न करें नजरअंदाज

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कोविड-19 प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का ही नतीजा है। प्रकृति ने हमें सचेत किया है कि मानव सुधर जाए नहीं तो महाविनाश शीघ्र संभावी है। लाकडाउन ने एक उदाहरण भी पेश किया है कि वाहनों, कल-कारखानों, कंस्ट्रक्शन आदि को बंद कर देने से किस तरह प्रकृति अपने मूल स्वरूप में वापस लौट आई थी। नदियां साफ हो गईं, आसमान नीला हो गया, पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देने लगी, कई सौ किलोमीटर दूर से हिमालय भी दिखाई देने लगा था। अगर हम उसी साफ और स्वच्छ वातावरण में फिर से सांस लेना चाहते हैं तो हमें प्रकृति का भी ध्यान रखना होगा। अगर हम अब भी नहीं चेते तो वह दिन भी दूर नहीं, जब अगली पीढ़ी किताब के बस्ते की तरह आक्सीजन सिलेंडर लेकर चलेगी।

वायु मंडल में आक्सीजन की मात्रा 21 फीसद होनी चाहिए लेकिन अब वो लगभग आधी रह गई है। समस्या का समाधान करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के काप-14 कार्यक्रम में सुझाव भी दिया था कि जिस तरह अफ्रीका में धूल को रोकने के लिए ग्रेट वाल बनाई गई उसी तरह भारत में भी पर्यावरण आपातकाल से मुक्ति के लिए ग्रीन वाल आफ इंडिया बनाई जाए। जो पश्चिमी विक्षोभ के साथ आने वाली धूल भरी हवाओं के दबाव को रोकने के लिए अवरोधक का काम करेगी। यूएन के अंतरराष्ट्रीय मंच ने इसे स्वीकार किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में इस प्रस्ताव को पोरबंदर से पानीपत तक बनाने के लिए सहमति भी मिली।

(पर्यावरणविद विजयपाल बघेल की संवाददाता आशुतोष गुप्ता से बातचीत पर आधारित)

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