DU के आवंटन के आधार पर सात छात्रों को दाखिला दे सेंट स्टीफेंस: दिल्ली HC
Delhi High Court एडमिशन को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय और सेंट स्टीफेंस कॉलेज के बीच विवाद चल रहा है। इन सबके बीच दिल्ली हाईकोर्ट ने छात्रों के हित में फैसला सुनाया है। बता दें सेंट स्टीफंस कॉलेज ने दिल्ली विश्वविद्यालय के सिंगल गर्ल चाइल्ड कोटा को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। कॉलेज का तर्क था कि यह कोटा कानून के समक्ष समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दाखिले को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय व सेंट स्टीफेंस कालेज के बीच चल रहे विवाद के बीच दिल्ली हाई कोर्ट ने छात्रों के पक्ष में निर्णय सुनाया है। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने सात छात्रों को राहत देते हुए सेंट स्टीफेंस को डीयू द्वारा सीटों के आवंटन के आधार पर छात्रों को प्रवेश देने का निर्देश दिया है।
सात छात्रों की दो अलग-अलग याचिकाओं पर निर्णय सुनाते हुए पीठ ने कहा कि क्योंकि डीयू की सीटों की गणना को रद नहीं किया गया है। ऐसे में सेंट स्टीफेंस को निर्देश दिया जाता है कि वह याचिकाकर्ता छात्रों को पिछले शैक्षणिक वर्ष में ही कालेज द्वारा अपनाई गई आवंटन नीति के तहत प्रवेश दे ताकि जरूरी औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद वे अपनी कक्षाओं में भाग ले सकें।
सात छात्रों ने कालेज को उन पाठ्यक्रमों के लिए सीटें उपलब्ध कराने का निर्देश देने की मांग को लेकर याचिका दायर की थी, जिनके लिए डीयू ने सीट आवंटित की थी। याचिकाकर्ता छात्रों ने प्रस्तुत किया कि डीयू द्वारा कालेज में बीए अर्थशास्त्र (आनर्स) और बीए प्रोग्राम पाठ्यक्रमों के लिए सीटें आवंटित किए जाने के बावजूद, उनके प्रवेश निर्धारित समय के भीतर पूरे नहीं हुए।
एक तरफ जहां डीयू ने याचिकाओं का समर्थन किया था। वहीं, सेंट स्टीफेंस ने इसका विरोध किया है। सेंट स्टीफेंस ने डीयू के इस रुख का विरोध किया कि वह विश्वविद्यालय की सामान्य सीट आवंटन प्रणाली के माध्यम से आवंटित सीटों वाले सभी उम्मीदवारों को प्रवेश देने के लिए बाध्य है। स्टीफेंस ने कहा था कि वह स्वीकृत सीमा के भीतर ही छात्रों को प्रवेश दे सकता है।
एकल पीठ ने पूर्व में स्टीफेंस को छह छात्रों को अस्थायी प्रवेश देने का निर्देश देते हुए कहा था कि सीयूईटी परीक्षा पास करने वाले इन छात्रों की कोई गलती नहीं थी। इस निर्णय के विरुद्ध स्टीफेंस ने अपील दायर की थी और दो सदस्यीय पीठ ने मुख्य याचिका के लंबित रहने तक कक्षाओं में भाग लेने से रोक दिया था। इसके बाद एक अन्य छात्र ने याचिका दायर की थी।