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दिल्ली: वितरक के संघर्ष की गजब कहानी, अपने बेटे को बना दिया अमेरिका में वैज्ञानिक

यदि आपके पास जीवन के संघर्षों से जूझने का माद्दा है, तो फिर सपने आपके कदम चूमते हैं।

By JP YadavEdited By: Published: Tue, 06 Mar 2018 08:39 AM (IST)Updated: Tue, 06 Mar 2018 11:40 AM (IST)
दिल्ली: वितरक के संघर्ष की गजब कहानी, अपने बेटे को बना दिया अमेरिका में वैज्ञानिक
दिल्ली: वितरक के संघर्ष की गजब कहानी, अपने बेटे को बना दिया अमेरिका में वैज्ञानिक

नई दिल्ली (नेमिष हेमंत)। यदि आपके पास जीवन के संघर्षों से जूझने का माद्दा है, तो फिर सपने आपके कदम चूमते हैं। ऐसी उपलब्धियां दूसरों को भी सपने देखने और उसे साकार करने की प्रेरणा देती हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है आरएस पांडे की। इन्होंने अपने कड़े संघर्ष से बेटे को अमेरिका में वैज्ञानिक के मुकाम तक पहुंचाया।

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57 साल के आरएस पांडे की दिनचर्या रोजाना सूर्योदय से पहले ही शुरू हो जाती है। मंडावली ऊंचे पर स्थित अपने घर से वे अंधेरे में ही साइकिल से लक्ष्मीनगर पहुंचते हैं। वहां से अखबार का बंडल उठाकर शकरपुर की गलियों में इसे बांटने में लग जाते हैं। पिछले साढ़े तीन दशकों में न जाने कितने मौसम गुजरे, बारिश हो या हांड़ कंपाने वाली ठंड, 36 साल से उनका यह सफर अनवरत जारी है। अखबार बांटने के बाद वे घर आकर कश्मीरी गेट स्थित अपनी बेयरिंग की छोटी-सी दुकान पर जाने की हड़बड़ी में होते हैं। हालाकि, उनके चेहरे पर मुस्कान हमेशा बनी रहती है।

वितरक का बेटा बना अमेरिका में वैज्ञानिक

यह उनका कठिन परिश्रम ही रहा है, जिसने उनके बेटे को वैज्ञानिक के रूप में खुद को स्थापित करने में मदद की। उनके पुत्र अरविंद पांडे अमेरिका में वैज्ञानिक हैं। वे 2013 से ही अमेरिका में शोध कर रहे हैं। पहले लुसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी से बायोलॉजिकल साइंस में पीएचडी की। अब हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में डिपार्टमेंट ऑफ मेडिसिन में डॉक्टरेट कर रहे हैं। अरविंद बचपन से ही पढ़ने में तेज थे। अपने करियर और सपनों को लेकर शुरू से ही सजग रहे। पिता आरएस पांडे बताते हैं कि बेटे की उच्च शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय और मदुरै कामराज विश्वविद्यालय से पूरी करवाई।

बेटी को भी पढ़ाया

आरएस पांडे ने न सिर्फ अपने बेटे को, बल्कि बेटी को भी खूब पढ़ाया। उनकी बेटी मंजू रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन में अधिकारी रह चुकी हैं। फिलहाल बच्चे की परवरिश के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी है। वहीं, महज पांचवीं तक पढ़ीं उनकी पत्नी उर्मिला भी शुरू से ही बच्चों की पढ़ाई की अहमियत समझती थीं।

आरएस पांडे बताते हैं कि पिछले साल ही अरविंद की शादी घरवालों की पसंद से करवाई। बहू भी जामिया से एमएससी कर रही है। वे आगे कहते हैं कि ईश्वर की कृपा से अब अखबार बांटने का काम छोड़ सकता हूं, लेकिन, इसे छोड़ने की इच्छा ही नहीं होती। बेटा बार-बार कहता है कि वह कमाने लगा है। इसी जनवरी में अरविंद घर आए थे तब भी कहा कि अब काम करने की जरूरत नहीं है। लेकिन, मेरा मन नहीं मानता, क्योंकि जब दिल्ली आया था तो सबसे पहले इसी अखबार के काम ने रोटी दी, इसलिए अब इस काम से लगाव-सा हो गया है। यह दिनचर्या में शामिल हो गया है। वे दैनिक जागरण समेत विभिन्न अखबारों की करीब 250 प्रतियां बेचते हैं।

खुद के संघर्ष से बच्चों के लिए बनाए मुकाम

आरएस पांडे 1982 में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ से दिल्ली आए थे। उनके चाचा पहले से यहां थे और अखबार बांटने का काम करते थे। उन्होंने भी यही काम शुरू कर दिया। साथ ही दोपहर में कश्मीरी गेट के ऑटो पार्ट्स के मार्केट में नौकरी भी करने लगे। वे बताते हैं कि तब अखबार बांटकर साइकिल से ही खोड़ा से करीब 25 किमी का सफर तय कर कश्मीरी गेट जाना होता था। हर हाल में पैसे बचाने थे, क्योंकि पीछे गांव में दो बहन और पांच भाइयों की जिम्मेदारी थी। भाई-बहनों को भी पढ़ाया-लिखाया और शादी करवाई। साल 2000 में कुछ पैसे जुटे तो नौकरी छोड़ कश्मीरी गेट में ही किराये पर एक दुकान ले ली। अब उसी में बेयरिंग बेचते हैं। 


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