नई दिल्ली, [सोनू राणा]। उधार की सुख सुविधाओं से कृषि कानून विरोधी प्रदर्शनकारियों का मोहभंग हो गया है। किसी समय में आंदोलन का केंद्र बिंदू रहा सिंघु बार्डर अब मायूसी के आगोश में खो गया है। सिंघु बार्डर पर पसरा सन्नाटा देखकर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है कि आंदोलन अब अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है।
अगर आंदोलन की शुरुआत से देखें तो सिंघु बार्डर पर प्रदर्शनकारियों व उनके ट्रैक्टरों की संख्या लगातार घट रही है। सिंघु बार्डर पर अब 50 ट्रैक्टर और 500 प्रदर्शनकारी भी नहीं बचे हैं। बुधवार को बार्डर पर दिल्ली की सीमा में 46 ट्रैक्टर ट्राली, 4 टेंपो, 5 ट्रक, 2 बस, 10 जीप व पांच कार ही खड़ी दिखाई दी।
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बाकी के ट्रैक्टर अब सिंघु बार्डर को अलविदा कहकर पंजाब लौट गए हैं। नेताओं के लाख रोकने के बावजूद लोग सिंघु बार्डर छोड़कर पंजाब भागने लगे हैं। धरना स्थल पर भी आधे से कम लोग दिखाई देते हैं। उनके चेहरों पर भी घर न जा पाने की चिंता साफ दिखाई देती है। मंच पूर्व की ओर चल रहा होता है तो धरने पर बैठे लोग पश्चिम की ओर मुंह करके बैठे रहते हैं।
गौरतलब है कि दिल्ली की सीमा में किसान मजदूर संघर्ष कमेटी (पंजाब) की ओर से धरना दिया जा रहा है। बीते कई दिनों से कमेटी का कोई बड़ा नेता मंच पर नहीं पहुंच रहा है। इस कारण गिने चुने दस-15 लोग ही रोज मंच पर पहुंच रहे हैं।
खाली होने लगा सिंघु बार्डर
सिंघु बार्डर पर प्रदर्शनकारियों की संख्या काफी तेजी से घट रही है। 132 दिन से जारी प्रदर्शन के दौरान बुधवार को सिंघु बार्डर पर सबसे कम लोग दिखाई दिए। नरेला रोड भी अब यूपी बार्डर की तरह खाली नजर आ रहा है। खानापूर्ति के लिए तंबू गाड़े हुए हैं। नरेला रोड पर प्रदर्शनकारियों से ज्यादा तो ई रिक्शा चालक नजर आ रहे थे।
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खाली पड़े हैं टेंट
सिंघु बार्डर व नरेला रोड पर प्रदर्शनकारियों ने टेंट तो बना लिए हैं, लेकिन इनमें से काफी टेंट खाली पड़े हैं। इनमें कोई नहीं रह रहा है। प्रदर्शनकारियों ने ये टेंट इसलिए बनाए हैं ताकि किसी को पता न लगे कि यहां पर लोगों की संख्या घट गई है।
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