शीला दीक्षित के प्रदेश अध्यक्ष बनने से कई नेता नाखुश, यमुनापार को साधने में होगी मुश्किल
शीला के बेटे संदीप दीक्षित से नाराजगी रखने वाले नेताओं का यह दर्द उभरकर बाहर आ गया कि संदीप दीक्षित फिर से संसदीय क्षेत्र से मजबूत दावेदार होंगे।
नई दिल्ली [सुधीर कुमार]। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में शीला दीक्षित और तीन कार्यकारी अध्यक्षों ने बेशक कार्यभार संभाल लिया है, लेकिन उनके सामने चुनौती कम नहीं है। शीला की ताजपोशी के मौके पर यमुनापार के कई नेता पहुंचे, लेकिन उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कद्दावर नेता भीष्म शर्मा ने दूरी बनाए रखी। हालांकि कार्यक्रम में पहुंचने वाले नेताओं में भी यह चर्चा रही कि 40 लाख की आबादी वाले यमुनापार को प्रतिनिधित्व से वंचित रखा गया है। इसके साथ शीला के बेटे संदीप दीक्षित से नाराजगी रखने वाले नेताओं का यह दर्द उभरकर बाहर आ गया कि संदीप दीक्षित फिर से संसदीय क्षेत्र से मजबूत दावेदार होंगे।
इसके अलावा उत्तर-पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र में स्थानीय बनाम बाहरी उम्मीदवार को लेकर कई नेताओं ने पहले से ही ताल ठोक रखी है। ऐसे में यमुनापार को साधना दीक्षित के लिए मुश्किल होगा। नई दिल्ली में हुए ताजपोशी कार्यक्रम में पूर्वी दिल्ली के दिग्गज कांग्रेसी नेता डॉ. एके वालिया, अमरिंदर सिंह लवली और डॉ. नरेंद्र नाथ से लेकर पूर्व विधायक मतीन अहमद, विपिन शर्मा, वीर सिंह ¨धगान सहित कई वर्तमान व पूर्व पार्षद मौजूद रहे। लेकिन पूर्व विधायक भीष्म शर्मा ने इस कार्यक्रम से दूरी बनाए रखी।
भीष्म शर्मा पहले से ही शीला दीक्षित को अध्यक्ष बनाए जाने के विरोधी रहे हैं। उन्होंने राहुल गांधी को लिखे पत्र में भी कहा था कि जब स्वास्थ्य कारणों से अजय माकन अध्यक्ष पद छोड़ रहे हैं तो किसी स्वस्थ व्यक्ति को ही अध्यक्ष बनाना चाहिए। उत्तर पूर्वी दिल्ली में शर्मा की अच्छी राजनीतिक पकड़ है। शीला के विरोधी रहे पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल ताजपोशी की घोषणा होते ही करीब आ गए थे, लेकिन शर्मा मिलने तक नहीं गए। अग्रवाल चाहते हैं कि उनके बेटे मुदित अग्रवाल को संसदीय क्षेत्र से टिकट मिले। लेकिन यहां के कई पूर्व विधायकों की मांग है कि किसी स्थानीय को ही टिकट दिया जाए, चाहे वह कोई भी हो।
पूर्व विधायक विपिन शर्मा कहते हैं कि यहां से हर बार बाहरी को ही टिकट दिया जाता है। इस क्षेत्र के विकास के लिए जरूरी है कि किसी स्थानीय को टिकट दिया जाए। यहां के तिमारपुर व बुराड़ी विधानसभा क्षेत्र में भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नेतृत्व से नाराजगी रही है। पूर्वी दिल्ली में भी स्थिति बेहतर नहीं है। यहां से शीला के बेटे संदीप दीक्षित सांसद रहे हैं, लेकिन पिछले पांच वर्षो के दौरान वह इलाके से लगभग नदारद ही रहे। इसके अलावा संदीप दीक्षित की कई नेताओं से जबरदस्त अनबन है। अगर संदीप को टिकट मिलता है तो स्थिति यहां बिगड़ सकती है।
इसके अलावा अजय माकन के कार्यकाल में कई जिलों में पदाधिकारियों के चयन को लेकर सवाल उठे थे। कई को प्रदेश नेतृत्व में लेने का भरोसा दिया गया था, लेकिन प्रदेश कार्यकारिणी ही नहीं बनी। जिस वजह से कई पूर्व जिलाध्यक्षों में भारी नाराजगी है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अमरिंदर सिंह लबली की दोनों संसदीय क्षेत्र में अच्छी पकड़ है। ऐसे में शीला दीक्षित को लवली का साथ लेना होगा। हालांकि ये दोनों भी एक-दूसरे के विरोधी माने जाते रहे हैं, लेकिन अब करीब आ रहे हैं।
प्रदेश कांग्रेस ने पूर्वी दिल्ली को हमेशा सम्मान दिया है। शीला मंत्रिमंडल में हमेशा दो मंत्री यहां के रहे हैं, इसके अलावा यहां से तीन प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी दो नेता नसीब सिंह व अनिल चौधरी शामिल हैं। अभी जो प्रदेश नेतृत्व बना है, उसमें बेहतर सामंजस्य रखा गया। कांग्रेस मजबूती से आने वाले चुनाव में उतरेगी- अमरिंदर सिंह लवली, पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष
मैडम सुलझी हुई राजनीतिज्ञ हैं। उन्होंने दिल्ली में पहला चुनाव पूर्वी दिल्ली से ही लड़ा था। यहां के लोगों से उनका पुराना जुड़ाव रहा है, जिससे कोई समस्या नहीं आएगी। उनके अध्यक्ष बनने से सभी नेता साथ आ गए हैं। जो नाराज हैं, उनकी नाराजगी भी दूर हो जाएगी। कांग्रेस आगामी चुनाव मजबूती से लड़ेगी। दिल्ली की जनता दोनों ही पार्टियों से नाराज है और उन्हें बेहतर विकल्प मिल गया है- डॉ. एके वालिया, पूर्व मंत्री।