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अब एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में बोलीं शीला दीक्षित- मैं नहीं AAP से गठबंधन के खिलाफ

दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी (DPCC) की अध्यक्ष शीला दीक्षित का कहना है कि तीन-चार दिनों में गठबंधन को लेकर सारी स्थितियां स्पष्ट और सार्वजनिक हो जाएंगी।

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 08 Apr 2019 09:36 AM (IST)Updated: Mon, 08 Apr 2019 01:14 PM (IST)
अब एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में बोलीं शीला दीक्षित- मैं नहीं AAP से गठबंधन के खिलाफ
अब एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में बोलीं शीला दीक्षित- मैं नहीं AAP से गठबंधन के खिलाफ

नई दिल्ली। दिल्ली की सियासत में आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस का संभावित गठबंधन एक अबूझ पहेली बना हुआ है। इस पहेली को सुलझाने में दोनों दलों के नेता-कार्यकर्ता तो उलझे ही हैं, भाजपा भी कम गफलत में नहीं है। हालांकि अब यह गठबंधन करीब-करीब तय बताया जा रहा है और जल्द ही इसकी औपचारिक घोषणा भी हो जाने के आसार हैं। ऐसे में अहम सवाल यह है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, जो इस गठबंधन का लगातार विरोध कर रही थीं, अब इसके समर्थन में कैसे आ गईं। अगर गठबंधन चार और तीन के फॉर्मूले पर होता है तो कांग्रेस अपने उम्मीदवारों के चयन में क्या पैमाना रखेगी और क्या कांग्रेस पूर्ण राज्य के मुद्दे पर AAP का समर्थन करेगी? ऐसे ही कुछ प्रमुख सवालों को लेकर दैनिक जागरण के मुख्य संवाददाता संजीव गुप्ता ने शीला दीक्षित से उनके आवास पर विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के मुख्य अंश :

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1. लोकसभा चुनाव के लिए प्रदेश कांग्रेस की तैयारी कैसी है? यह ठप या धीमी नहीं लग रही?

- दिल्ली में मतदान 12 मई को है। अभी काफी समय है। पार्टी उम्मीदवारों का चयन कर रही है। एक बार उम्मीदवार घोषित हो गए तो प्रचार अभियान और अन्य तैयारियां भी जोर पकड़ लेंगी। हालांकि प्रदेश स्तर पर जिला स्तरीय बूथ सम्मेलनों के साथ-साथ हर वर्ग की बैठकें आए दिन हो रही हैं। कार्यकर्ताओं से मिलना-जुलना भी जारी है। जिस क्षेत्र से सभाओं की मांग हो रही है, वहां सभाएं भी की जा रही हैं।

2. उम्मीदवार घोषित करने में इतनी देर क्यों हो रही है? अभी और कितना समय लगेगा?

- देरी जैसी कोई बात नहीं है। अभी तक तो भाजपा ने भी अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है। जहां तक कांग्रेस के उम्मीदवारों का सवाल है तो अधिक से अधिक चार-पांच दिनों में उनकी घोषणा कर दी जाएगी।

3.क्या कांग्रेस भी भाजपा को टक्कर देने के लिए कुछ हाईप्रोफाइल हस्तियों को टिकट दे सकती है?

- प्राथमिकता उन्हीं उम्मीदवारों को दी जाएगी जो अपने क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं और पार्टी से भी लंबे समय से जुड़े रहे हैं। लेकिन यह भी सच है कि अंतिम निर्णय पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति और हाईकमान को करना है। किसी भी उम्मीदवार के चयन में उसके जीतने की संभावना तो प्राथमिकता होती ही है।

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4. चर्चा है कि दिल्ली में आप और कांग्रेस के बीच गठबंधन तय हो गया है और दोनों पार्टियां चार-तीन के फॉर्मूले पर लड़ेंगी?

- देखिए, जब तक गठबंधन की घोषणा नहीं हो जाता, कुछ भी ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता। जहां तक चार और तीन सीटों के फॉर्मूले की बात है तो ऐसा अभी कुछ तय नहीं हुआ है। मुझे उसकी जानकारी भी नहीं है। हां, मैं इतना जरूर कह सकती हूं कि तीन-चार दिनों में गठबंधन को लेकर सारी स्थितियां स्पष्ट और सार्वजनिक हो जाएंगी।

5. गठबंधन होने और न होने की स्थिति में प्रदेश कांग्रेस का एजेंडा क्या रहेगा? पार्टी किन मुद्दों पर चुनाव लड़ेगी?

- पिछले सप्ताह ही पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने घोषणा पत्र जारी किया है। इसमें देशभर के मुद्दों को समेटा गया है और इस घोषणा पत्र को काफी सराहना भी मिल रही है। बाकी गठबंधन और उम्मीदवारों की स्थिति स्पष्ट हो जाने के बाद जरूरत के मुताबिक निर्णय लिया जाएगा। वैसे तो हर उम्मीदवार भी अपने लोकसभा क्षेत्र के लिए एजेंडा तय करता ही है।

6.  आम आदमी पार्टी पूर्ण राज्य के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है। गठबंधन की सूरत में वह कांग्रेस से भी इसपर समर्थन देने की मांग कर रही है। आपका स्टैंड क्या रहेगा?

- दिल्ली में लगातार 15 साल कांग्रेस की सरकार रही है। हमने भी अपने हर कार्यकाल में पूर्ण राज्य की मांग की। अगर पूर्ण राज्य मिल जाता है तो पुलिस सहित बहुत सी व्यवस्थाएं दिल्ली सरकार के अधीन आ जाएंगी। लेकिन सच यह भी है कि ऐसा निर्णय सिर्फ केंद्र सरकार ले सकती है, संसद ले सकती है। इसके लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास होना जरूरी है, उसी के अनुरूप फिर संवैधानिक प्रावधानों में बदलाव किया जा सकेगा। हालांकि दूसरी तरफ मेरा यह भी कहना है कि दिल्ली देश की राजधानी है। यहां केंद्र सरकार, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, तमाम देशों के राजदूत सहित और भी केंद्रीय और राष्ट्रीय स्तर के कार्यालय हैं। राजधानी कभी भी किसी राज्य को नहीं बनाया जा सकता। जहां तक गठबंधन होने की सूरत में आप को इस मुद्दे पर समर्थन देने का सवाल है तो उस विषय में पार्टी विचार करेगी और उसके बाद ही कोई निर्णय लेगी।

7. AAP गठबंधन के खिलाफ रही हैं। यहां तक कि राहुल गांधी के साथ हुई सभी बैठकों में भी आपका यही मत रहा है। क्या वजह है कि अब आपका रुख बदल गया है?

- देखिए, समय और परिस्थितयों के साथ-साथ बहुत कुछ बदलता रहता है। सोच-विचार में भी इसी के अनुरूप बदलाव होता है। पार्टी की रणनीति और जरूरत पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है। राजनीति में तो खासतौर पर यह सब चलता रहता है। मेरे लिए भी पार्टी हाईकमान का निर्णय सर्वोपरि है।

8. कहा जा रहा है कि गठबंधन को लेकर आपका रुख नरम भले हो गया हो, लेकिन आपकी नाराजगी कायम है?

- ऐसा कुछ नहीं है। ना मैं गठबंधन के खिलाफ हूं और ना ही किसी से नाराज हूं। हम कांग्रेस से जुड़े हैं। पार्टी के हित में आलाकमान का जो भी निर्णय होगा, हम उसके साथ हैं।

9. क्या उम्मीदवारों के चयन में देरी से कांग्रेस के उम्मीदवार पिछड़ नहीं जाएंगे?

- मुझे ऐसा नहीं लगता। हर उम्मीदवार की अपनी रणनीति होती है, अपना एजेंडा होता है। सभी संभावित उम्मीदवार अपने-अपने क्षेत्र में काम कर भी रहे होते हैं, इसलिए ऐसी कोई समस्या नहीं होने वाली है।

10. दिल्ली में यमुना की मरणासन्न स्थिति और वायु प्रदूषण भी बहुत बड़ा मुद्दा है। क्या यह एजेंडा नहीं होना चाहिए?

- इसमें शक नहीं कि ये दोनों ही बड़े मुद्दे हैं और इनपर काम भी होना चाहिए। कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में हमने इनपर बहुत कुछ किया भी है। यमुना पर बने पुलों पर लंबी-लंबी जालियां सिर्फ इसीलिए लगवाईं ताकि लोग उसमें पूजा सामग्री सहित अन्य चीजें न डालें। डीटीसी बसों को डीजल से सीएनजी में बदला। गैस आधारित बवाना और प्रगति पावर प्लांट शुरू किए। दिल्ली का हरित क्षेत्र बढ़ाया। यहां तक कि धूल न उड़े, इसके मद्देनजर सड़कों की भी समय-समय पर मरम्मत होती रहती थी।

11. क्या आपको लगता है कि दिल्ली में कुछ अन्य मुद्दे भी अहम हो सकते हैं?

- निश्चित तौर पर। बिजली और प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए तो हमने काफी काम किया ही था, पानी और शिक्षा के क्षेत्र में भी अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। पिछले करीब पांच साल में दिल्ली की प्यास तो बढ़ी है, लेकिन जलापूर्ति आज भी मेरी सरकार के समय जितनी ही है। न तो इसमें थोड़ी सी भी वृद्धि हो पाई है और न ही जल वितरण बेहतर हो पाया है। लीकेज की समस्या पर भी काबू नहीं पाया जा सका है। इसी तरह दिल्ली में स्कूलों की काफी कमी है। नए स्कूल बनाए जाने की जरूरत है। और भी अनेक मुद्दे हैं जो जनता से सीधे जुड़े हैं और उनपर गंभीरता से काम होना चाहिए। 

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