जानें- मानसून के दगा देने के बाद राजस्थान ने कैसे बढ़ाई NCR के करोड़ों लोगों की परेशानी
मौसम विज्ञानियों का भी मानना है कि दिल्ली-एनसीआर में जल्द बारिश न हुई तो प्रदूषण में और अधिक इजाफा होगा। एयर क्वालिटी इंडेक्स में इजाफे के साथ लोगों का स्वास्थ्य भी प्रभावित होगा।
नई दिल्ली, जेएनएन। दिल्ली-एनसीआर (National Capital Region) में मानसून के दस्तक देने के बाद झमाझम बारिश का इंतजार कर रहे करोड़ों लोगों को पिछले 24 घंटे के दौरान एक नई मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल, दिल्ली से बेहद करीब राजस्थान से चलने वाली धूल भरी हवाओं के कारण दिल्ली की वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air quality index) 272 तक पहुंच चुका है। शुक्रवार शाम होते-होते हवा में धूल की मात्रा इतनी अधिक बढ़ गई है कि लोगों को खासतौर से बच्चों को सांस लेने में खासी परेशानी होने लगी।
वहीं, शनिवार सुबह से हवा के साथ धूल के कण हवा में अधिक मात्रा में घुल गए, इससे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा रहा है। बढ़ते प्रदूषण के साथ ही शुक्रवार को लोग अधिकतम 38.3 और न्यूनतम 30.6 डिग्री तापमान में गर्मी से परेशान रहे। शनिवार को भी ऐसी ही स्थिति रही।
अगले कुछ दिन तक राहत के आसार नहीं
विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर अगले कुछ दिनों में बारिश नहीं हुआ तो हवा में प्रदूषण की मात्रा में इजाफा होगा। जैसा की मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department) पहले ही पूर्वानुमान जता चुका है कि 20 जुलाई के आसपास ही झमाझम बारिश होगी।
इससे पहले 15-16 जुलाई की रात से दिल्ली के कुछ इलाकों में हल्की बारिश के बाद थोड़ी राहत मिलने की उम्मीद है, लेकिन इससे प्रदूषण को कम करने में मदद नहीं मिलेगी।ऐसे में माना जा रहा है कि आने वाले कुछ दिनों में हवा में प्रदूषण के कणों की मात्रा और बढ़ेगी। पश्चिमी राजस्थान की धूल बारिश होने तक दिल्ली-एनसीआर के लोगों को परेशान करेगी और इस दौरान प्रदूषण का स्तर खराब से बेहद खराब पर भी पहुंच सकता है।
जल्द बारिश न हुई तो लोगों को होगी परेशानी
मौसम विज्ञानियों का भी मानना है कि दिल्ली-एनसीआर में जल्द बारिश नही हुई तो प्रदूषण में और अधिक इजाफा होगा। एयर क्वालिटी इंडेक्स में इजाफे के साथ लोगों का स्वास्थ्य भी प्रभावित होगा।
बच्चों-बुजुर्गों को हो रही ज्यादा परेशानी
यहां पर बता दें कि वायु प्रदूषण का मतलब है हवा में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय किए गए मापदंड से अधिक होना। ऐसी स्थिति होने पर लोगों को परेशानी होनी शुरू हो जाती है, खासकर अस्थमा के मरीजों और बुजुर्गों-बच्चों को ज्यादा दिक्कत होती है।
यहां पर बता दें कि वायु प्रदूषण में इजाफा होने से लोगों के शरीर में खनिज की मात्रा कम होने लगती है, जिससे हड्डियों के टूटने का खतरा बढ़ सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) के मुताबिक, वायु प्रदूषण वह स्थिति है, जिस दौरान वातावरण में पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले तत्व ज्यादा मात्रा में जमा हो जाते हैं। जाहिर है इससे मनुष्य भी प्रभावित होता है। ऐसे हालात में जो भी शारीरिक रूप से कमजोर होगा, वह सर्वाधिक प्रभावित होगा। दरअसस, वातावरण में ऑक्सीजन के साथ कार्बन डाइ ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड आदि गैसें हमेशा मौजूद होती है, जिनमें स्वाभाविक तौर पर संतुलन बना रहता है। ऐसे में जब भी बाहरी असर बढ़ता है तो इन गैसों की मात्री में जरा-सा भी हेरफेर होने से संतुलन बिगड़ने लगता है। साथ ही हवा में प्रदूषण बढ़ने लगता है।
दिल्ली को मुसीबत से बचाने वाली खुद बेहाल
दिल्ली-एनसीआर में भूकंप की तीव्रता और मरुस्थलीकरण को रोकने में ढाल बनने वाली अरावली पहाड़ी की हरियाणा क्षेत्र में स्थिति ठीक नही है। प्रदेश के छह जिलों में करीब साढ़े छह हजार वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैली इन पहाड़ियों में पेड़-पौधों का क्षेत्र केवल 78 वर्ग किलोमीटर ही है। वन विभाग छह साल में छह वर्ग किमी हरियाली क्षेत्र ही बढ़ा पाया है। यह रहस्योद्घाटन पिछले साल भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून की सर्वे रिपोर्ट से हुआ है। रिपोर्ट भारतीय वन्यजीव संस्थान के एनिमल इकॉलोजी एंड कंर्जेवेशन बायोलॉजी विभाग के डॉ. बिलाल हबीब, गौतम तालूकदार, परिधि जैन व आंचल भसीन ने तैयार की है। रिपोर्ट के अनुसार अरावली सबसे प्राचीन पर्वत माला है।
विलायती बबूल बना नासूर
करीब 25 साल पहले बगैर सोचे समझे हरियाली बढ़ाने के चक्कर में वन विभाग की ओर विलायती बबूल के बीज अरावली में हेलीकाप्टर से बिखेर दिए गए थे। जिसके पेड़ आज अरावली के लिए नासूर बन चुके हैं। अच्छे पौधे गायब हो चुके हैं। यहां तक कि घास भी गायब हो गई। पर्यावरण विशेषज्ञ कहते हैं अगर इसे समय रहते नहीं मिटाया गया तो देशी पेड़-पौधों की रही-सही प्रजातियां भी खत्म हो जाएंगी। यही नहीं अरावली क्षेत्र में जल संकट और गहरा सकता है, वायु प्रदूषण भी बढ़ जाएगा।
करोड़ों की धनराशि हुई खर्च, हालात नहीं सुधरे
दक्षिणी हरियाणा मे नूंह, गुरुग्राम, नारनौल, रेवाड़ी व भिवानी जिलों में फैली अरावली की पहाड़ियों को हराभरा करने के लिए विलायती बबूल उगाए गए। विश्व बैंक से करीब 600 करोड़ रुपये की सहायता ली गई थी। वन विभाग के अधिकारियों ने पानी देने की परेशानी से बचने के लिए इस वनस्पति को ही लगाकर पूरा पैसा खर्च कर दिया।
ओपन फॉरेस्ट दो फीसद से भी कम
अरावली में ओपन फॉरेस्ट केवल 119 वर्ग किमी है, जो कुल क्षेत्र का दो फीसद भी नहीं है। कृषि योग्य भूमि भी लगातार घटती जा रही है। 16 साल पहले इसमें कृषि योग्य भूमि 5495 वर्ग किलोमीटर थी जो कि अब घटकर 5235 वर्ग किलोमीटर रह गई है। घास-फूंस का क्षेत्र भी काफी कम हो गया।
पर्यावरण विशेषज्ञ विवेक कांबोज का कहना है कि दक्षिणी हरियाणा में अरावली का लगभग 1,00,000 हेक्टेयर क्षेत्र है। हालांकि अरावली का दस फीसद हिस्सा भी वनक्षेत्र नहीं है। वन विभाग की ओर से कराए गए सर्वे में भी यह बात सामने आई कि सोलह साल में छह फीसद भी वन क्षेत्र नही बढ़ा है। अवैध खनन अभी भी लुके-छिपे किया जा रहा है। प्रशासन बड़े खनन माफिया के गिरेबान में हाथ डालने के बजाय श्रमिकों के खिलाफ पत्थर चोरी का मामला दर्ज करता है। कुछ सफेदपोशों ने ही माफिया कां संरक्षण किया था।