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वैज्ञानिकों ने बताया कि किन चीजों पर अंकुश लगाकर दिल्ली-एनसीआर में हवा की गुणवत्ता में कर सकते हैं सुधार

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक और भी ज्यादा सख्त हो गए हैं। स्थिति यह है कि मानसून के दिनों में भी दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स करीब 100 से अधिक होता है। ट्रकों के अवागमन पर रोक निर्माण पर रोक इत्यादि प्रदूषण दूर करने के मौजूदा उपाय फायर फाइटिंग की तरह है।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Wed, 24 Nov 2021 11:38 AM (IST)Updated: Wed, 24 Nov 2021 11:38 AM (IST)
वैज्ञानिकों ने बताया कि किन चीजों पर अंकुश लगाकर दिल्ली-एनसीआर में हवा की गुणवत्ता में कर सकते हैं सुधार
मानसून के दिनों में भी दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स करीब 100 से अधिक होता है।

नई दिल्ली [रणविजय सिंह]। दिल्ली एनसीआर में वर्ष भर हवा की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती। प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए बेहद घातक होता है। इसलिए एयर इंक्वालिटी इंडेक्स 50 से कम होना चाहिए। दिल्ली की हवा इस मानक को कभी पूरा नहीं पाती। जबकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक और भी ज्यादा सख्त हो गए हैं। स्थिति यह है कि मानसून के दिनों में भी दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स करीब 100 से अधिक होता है। ट्रकों के अवागमन पर रोक, निर्माण पर रोक इत्यादि प्रदूषण दूर करने के मौजूदा उपाय फायर फाइ¨टग की तरह है। यह स्थायी समाधान नहीं है।

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वर्ष भर हवा की गुणवत्ता बेहतर बनाने के लिए स्थानीय स्तर पर उत्पन्न होने वाले प्रदूषण तत्वों को कम करने की प्रक्रिया तेज करनी होगी। इसके तहत एक निर्धारित समय पर प्रदूषण कम करने का लक्ष्य तय करके स्थायी समाधान ढूंढने की जरूरत है। वाहनों की बढ़ती संख्या प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है। दिल्ली की सड़कों पर डीजल से चलने वाले चार पहिया एसयूवी वाहन अधिक हैं। लिहाजा, डीजल से चलने वाले वाहनों पर पूरी तरह से रोक लगाना होगा। इससे प्रदूषण कम करने में बहुत मदद मिलेगी। दिल्ली की सड़कों पर प्रतिदिन 30 से 40 फीसद वाहन बाहर (हरियाणा, पंजाब व राजस्थान) से आते हैं। जिसमें से ज्यादातर प्रदूषण नियंत्रण के मानकों को पूरा नहीं करते।

दिल्ली में डीजल से चलने वाले 10 साल पुराने वाहन व पेट्रोल से चलने वाले 15 साल पुराने वाहन बंद हैं। लेकिन बाहर ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है। इसलिए बाहर से काफी संख्या में लोग डीजल व पेट्रोल से चलने वाले पुराने वाहन लेकर दिल्ली पहुंचते हैं। इस पर रोक जरूरी है। हालांकि, वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए यूरो-6 वाले वाहनों का इस्तेमाल बढ़ाया जा रहा है। इलेक्टि्रक दोपहिया वाहन को भी बढ़ावा देना होगा। दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन के साधन बस व आटो भले ही सीएनजी से चल रहे हैं लेकिन डीजल व पेट्रोल से चलने वाले निजी वाहन ही दिल्ली में अधिक हैं। इस वजह से इलेक्टि्रक से चलने निजी वाहनों का इस्तेमाल बढ़ाना होगा।

निर्माणाधीन स्थलों पर उपकरण लगाकर हर घंटे हो धूल के स्तर की जांच

ट्रैफिक जाम के कारण होने वाले प्रदूषण को कम करने के लिए यातायात को इस तरह नियंत्रित करना होगा कि वाहनों की औसत गति 35 से 40 किलोमीटर प्रति घंटे बरकरार रहे। यातायात जाम व वाहनों की रफ्तार कम होने से प्रदूषण कम होता है। इसके अलावा निर्माण के दौरान उड़ने वाले धूल को रोकने के लिए कारगर उपाय करने होंगे। एक-दो स्माग टावर बनने से प्रदूषण कम नहीं होगा। दिल्ली एनसीआर में बड़े स्तर पर निर्माण गतिविधियां हो रही हैं। छोटे-बड़े हर बिल्डर को मजबूर करना होगा कि धूल रोकने के उपाय पूरे साल सुनिश्चित करें। इसके लिए हर निर्माणाधीन स्थल पर धूल के स्तर की जांच के लिए उपकरण लगाकर हर घंटे की रिपोर्ट तैयार होनी चाहिए और धूल का स्तर अधिक होने पर उसे रोकने के लिए क्या कदम उठाए गए, इसका जवाब तलब करना होगा।

इसके अलावा सड़कों पर वाहनों के कारण उड़ने वाली धूल को रोकने के लिए केमिकल स्प्रे कराया जा सकता है। कई देशों के बड़े शहरों केमिकल स्प्रे किया जाता है और यह उपाय कारगर रहा है। दिल्ली एनसीआर के औद्योगिक क्षेत्रों की सड़कों पर धूल की समस्या अधिक है। औद्योगिक ईकाइयों की नियमित तौर पर निगरानी जरूरी है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यह सुनिश्चित करना चाहिए। इसके अलावा प्रतिदिन निकलने वाले कूड़े के सही निस्तारण की व्यवस्था करनी होगी। क्योंकि प्रतिदिन उत्पन्न होने वाला 10 से 15 फीसद कूड़े का ही उचित निस्तारण हो पाता है।

दरअसल, प्रदूषण के स्थानीय स्त्रोतों के कारण ही इन दिनों 300-400 के बीच एयर इंडेक्स बना हुआ है। जबकि अभी पराली का धुआं दिल्ली नहीं पहुंच रहा है। पराली का धुआं पहुंचने पर स्थिति ज्यादा खतरनाक हो जाती है। इसलिए पराली के उचित प्रबंधन के साथ-साथ यह भी जरूरी है कि हवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए प्रदूषण के स्थानीय स्त्रोतों को दूर किया जाए।

थर्मल पावर में अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल जरूर

हवा की दिशा के अनुरूप पंजाब, उत्तर प्रदेश व राजस्थान के थर्मल पावर प्लांट का धुआं भी दिल्ली पहुंचता है। थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने की तकनीक है। इसके लिए कई साल पहले दिशा निर्देश भी जारी किया गया लेकिन उसके पालन सुनिश्चित करने की समय सीमा बढ़ते-बढ़ते वर्ष 2022 हो गया है। अगले साल तक इस पर अमल सुनिश्चित होनी चाहिए।

(डा. केजे रमेश, पूर्व सदस्य, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग)


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