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सीलिंग अवमानना केस में मनोज तिवारी बरी, SC ने भाजपा से कहा- चाहे तो करे कार्रवाई

इससे पहले दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि वह सीलिंग तोड़ने के लिए माफी नहीं मांगेंगे।

By JP YadavEdited By: Published: Thu, 22 Nov 2018 07:59 AM (IST)Updated: Thu, 22 Nov 2018 03:16 PM (IST)
सीलिंग अवमानना केस में मनोज तिवारी बरी, SC ने भाजपा से कहा- चाहे तो करे कार्रवाई
सीलिंग अवमानना केस में मनोज तिवारी बरी, SC ने भाजपा से कहा- चाहे तो करे कार्रवाई

नई दिल्ली, जेएनएन। उत्तरी-पूर्वी दिल्ली के गोकलपुर गांव में सील तोड़ने को लेकर अवमानना का सामना कर रहे दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी को बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को सुनवाई के दौरान दिल्ली से भाजपा सांसद मनोज तिवारी पर अवमानना मामले में कोई भी कार्रवाई करने से मना कर दिया। साथ ही कोर्ट ने सीलिंग तोड़ने के मामले में मनोज तिवारी के खिलाफ कार्रवाई भी बंद कर दी, लेकिन  जस्टिस मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह भी कहा कि मनोज तिवारी के रवैये से हम दुखी हैं। मनोज तिवारी ने कानून को अपने हाथ में लिया। 

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वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने सलाह दी है कि अगर भाजपा चाहे तो मनोज तिवारी के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है। फैसले के दौरान मनोज तिवारी को कोर्ट में मौजूद रहे। इससे पहले 30 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

बृहस्पतिवार को हुई सुनवाई में कोर्ट ने मनोज तिवारी के सांसद रहते हुए सील तोड़ने पर दुख जताया। इतना ही नहीं, कोर्ट ने भाजपा नेता के व्यवहार पर कई सख्त टिप्पणियां कीं।

 

कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि मनोज तिवारी ने कानून अपने हाथ में लिया। हम उनके इस व्यवहार से दुखी हैं। जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि को जिम्मेदारी के साथ व्यवहार करना चाहिए, बावजूद इसके कानून अपने हाथ में लिया।

वहीं, कोर्ट के बाहर मीडिया से मुखातिब, मनोज तिवारी ने कहा- 'मनोज तिवारी - 'मैंने कोई कानून नहीं तोड़ा। यदि मैं कानून तोड़ता तो सुप्रीम कोर्ट मुझे अवमानना मामले में बरी नहीं करता। मैं कानून का सम्मान करने वाला व्यक्ति हूं, कानून तोड़ने वाला व्यक्ति नहीं। कोर्ट ने कहा है कि कानून को हाथ में लिए बिना अपना विरोध जारी रख सकते हैं।'

पिछली सुनवाई में मॉनिटरिंग कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया था कि मनोज तिवारी को अवमानना मामले में जेल नहीं भेजा जाए, बल्कि उन पर भारी जुर्माना लगाया जाए। कमेटी ने इसके पीछे तर्क दिया था कि मनोज तिवारी को जेल भेजने पर वह इसका राजनीतिक लाभ उठा सकते हैं।

बता दें कि उत्तर-पूर्व दिल्ली के गोकलपुरी इलाके में एक परिसर की सील तोड़ने पर उत्तरी दिल्ली नगर निगम (EDMC) ने 16 सितंबर को मनोज तिवारी के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई थी। इससे पहले सीलिंग पर बनाई गई कमेटी ने भी अपना पक्ष सुप्रीम कोर्ट में रखा था, जिसके बाद इस पर सुनवाई चल रही थी। 

बता दें कि इससे पहले दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि वह सीलिंग तोड़ने के लिए माफी नहीं मांगेंगे। यही नहीं मनोज तिवारी ने यहां तक कह दिया था कि सुप्रीम कोर्ट अपनी मॉनिटरिंग कमेटी को भंग करे और वो खुद सीलिंग अफ़सर बनने को तैयार हैं।

वहीं, इस मामले में 30 अक्टूबर को हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मनोज तिवारी से सख्त लहजे में कहा था- 'आप जनप्रतिनिधि है, जिम्मेदार नागरिक हैं। आखिर आपको सील तोड़ने की इजाजत किसने दी? अगर सीलिंग गलत की गई थी तो आपको संबंधित अथॉरिटी के पास जाना चाहिए था।’ इतना ही नहीं, कोर्ट ने यह भी कहा था- 'हम भीड़ के कानून से नहीं चलते, बल्कि रूल ऑफ लॉ से चलते हैं।

इससे पहले सांसद मनोज तिवारी की ओर से कहा गया था कि उन्होंने न तो सुप्रीम कोर्ट और न ही कोर्ट द्वारा गठित निगरानी समिति की अवहेलना की है। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 24 मार्च, 2006 को गठित इस निगरानी समिति में चुनाव आयोग के पूर्व सलाहकार केजे राव, पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम एवं नियंत्रण) प्राधिकरण के अध्यक्ष भूरे लाल और मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) सोम झिंगन शामिल हैं।


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