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आलोचना के बाद बैकफुट पर एसबीआइ, तीन माह से ज्यादा गर्भवती महिलाओं की नई भर्ती नियम को लिया वापस

SBI New Recruitment Policy महिला आयोग ने कहा यह स्वीकार्य नहीं है कि गर्भवती महिला को अस्थायी रूप से अयोग्य कहा जाए और उसे काम करने के अवसरों से वंचित किया जाए।यह पितृसत्तात्मक मानसिकता और महिला विरोधी सोच दर्शाता है जो आज भी हमारे समाज में दुर्भाग्य से प्रचलित है।

By Prateek KumarEdited By: Published: Sat, 29 Jan 2022 07:34 PM (IST)Updated: Sat, 29 Jan 2022 08:20 PM (IST)
आलोचना के बाद बैकफुट पर एसबीआइ, तीन माह से ज्यादा गर्भवती महिलाओं की नई भर्ती नियम को लिया वापस
SBI New Recruitment Policy: एसबीआइ ने इस मामले में नियम को वापस ले लिया।

नई दिल्ली [रीतिका मिश्रा]। दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) ने शनिवार को भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) की नई भर्ती और पदोन्नति नीति का संज्ञान लेते हुए एसबीआइ को नोटिस जारी किया। आयोग के प्रवक्ता राहुल ताहिल्यानी ने बताया कि आयोग ने नोटिस में एसबीआइ द्वारा जारी की गई नई भर्ती और पदोन्नति नीति को महिला विरोधी बताते हुए तुरंत वापस लेने की मांग की है। हालांकि, कुछ देर बाद ही मीडिया में खबर आने के बाद एसबीआइ ने इस मामले में नियम को वापस ले लिया।

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नीति तैयार करने वाले एवं उसे पास करने वालों की पूरी जानकारी मांगी

बता दें कि इससे पहले महिला आयोग ने इसके साथ ही नीति को तैयार करने एवं उसको पास करने वाले अधिकारियों के बारे में पूरी जानकारी मांगी। आयोग ने एसबीआइ से नीति को वापस लेने तथा उसके संशोधन के लिए उठाए जा रहे कदमों का विवरण भी मांगा है।

48 घंटों में विस्तृत रिपोर्ट देने की मांग

आयोग ने बैंक को 48 घंटों का समय देते हुए मामले में एक विस्तृत कार्रवाई रिपोर्ट तथा इस संबंध में बैंक की नई और पुरानी भर्ती नीति या नियमों की सूची भी प्रदान करने को कहा है। राहुल ने कहा कि आयोग बैंक की नई भर्ती नीति को अवैध, भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक मानता है क्योंकि ये नीति संविधान के तहत महिलाओं को प्रदान किए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं। यही नहीं बल्कि बैंक नई नीति 'सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020' के तहत महिलाओं को प्रदान किए गए मातृत्व लाभों का भी उल्लंघन करती है और स्पष्ट रूप से जेंडर के आधार पर भेदभाव करती हैं।

ये है नीति

एसबीआइ ने 31 दिसंबर, 2021 को जारी एक परिपत्र के माध्यम से अपनी भर्ती और पदोन्नति नीति में बदलाव किया था। जिसमें कहा गया था कि तीन माह से अधिक गर्भवती महिला उम्मीदवार को ज्वाइनिंग के लिए अस्थायी रूप से अयोग्य माना जाएगा और उसे प्रसव के बाद चार महीने के बाद ही बैंक में ज्वाइनिंग की अनुमति दी जा सकती है। जिसका अर्थ स्पष्ट है कि 3 माह से अधिक की गर्भवती महिला उम्मीदवार को नियत प्रक्रिया के माध्यम से चयनित होने के बावजूद भी बैंक में अपने गर्भवती होने के कारण तुरंत ज्वाइनिंग नही दी जाएगी।

महिला आयोग ने बताया गलत

दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने बताया कि यह स्वीकार्य नहीं है कि एक गर्भवती महिला को अस्थायी रूप से अयोग्य कहा जाए और सिर्फ गर्भवती होने के कारण उसे काम करने के अवसरों से वंचित किया जाए। यह पितृसत्तात्मक मानसिकता और महिला विरोधी सोच दर्शाता है जो आज भी हमारे समाज में दुर्भाग्य से प्रचलित है। नए नियम भेदभावपूर्ण और संविधान में दिए गए महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं और इन्हें तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। साथ ही मामले में एसबीआई की जवाबदेही तय की जानी चाहिए।

आलोचना के बाद बैंक बैकफुट पर

इधर समाचार एजेंसी पीटीआइ के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार आलोचना का सामना करने के बाद, देश के सबसे बड़े ऋणदाता भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने शनिवार को गर्भवती महिलाओं की भर्ती पर अपने परिपत्र को निलंबित करने का फैसला किया है। एसबीआई ने हाल ही में अपने 'बैंक में भर्ती के लिए फिटनेस मानकों' की समीक्षा की, जिसमें गर्भवती महिला उम्मीदवारों के लिए मानदंड शामिल हैं। नए नियमों के तहत, तीन महीने से अधिक की गर्भावस्था वाली महिला उम्मीदवार को "अस्थायी रूप से अयोग्य" माना जाएगा और वह प्रसव के बाद चार महीने के भीतर बैंक में शामिल हो सकती हैं।


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