तु लिख तो सही 'इसकी, उसकी और अपनी बात' फिर देख जमाना कैसे कद्रदान हो जाएगा
शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी 40 वर्षीय सरिता बताती हैं कि नवोदित लेखकों को बढ़ावा देना उनकी प्राथमिकता है। मौजूदा समय में हर किसी में प्रतिभा छिपी हुई है।
नई दिल्ली (ललित कौशिक)। आजकल लोगों में लिखने का शौक दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है। कहानी, कविताएं, शायरी और गजल के माध्यम से लोग अपनी अभिव्यक्ति को बयां कर रहे हैं। सोशल मीडिया के आ जाने से तो हर कोई लेखक बन गया है। इस मंच के माध्यम से वे अपनी बातों को सबके सामने रखने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन नवोदित लेखकों की लेखनी को पहचान कैसे मिले उस दिशा में सरिता शुक्ला कुछ वर्षों से कार्य कर रही हैं। शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी 40 वर्षीय सरिता बताती हैं कि नवोदित लेखकों को बढ़ावा देना उनकी प्राथमिकता है। मौजूदा समय में हर किसी में प्रतिभा छिपी हुई है।
बस उस रचनात्मकता को पहचान दिलाने की आवश्यकता है, लेकिन ऐसी व्यवस्था न होने के कारण बच्चों और युवाओं की ओर से लिखी गई कहानियां व कविताएं पन्नों पर ही सिमट जाती हैं। ऐसे उभरते लेखकों को पहचान दिलाने की आवश्यकता है, ताकि उनके विचारों को भी दुनिया जान सके।
उन्होंने बताया कि इसके लिए सोशल मीडिया पर एक पेज बना रखा है, जिससे बड़ी संख्या में लोग जुड़े हैं। उन लोगों के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जो स्कूल, कॉलेजों और कैफे में होते हैं। इन जगहों पर कला मंथन के जरिये नवोदित लेखक अपनी कहानी, कविताएं, शायरी और गजल सबके समक्ष रखते हैं।
उसके बाद उनकी ओर से बोली और लिखी गई रचनाओं को वेबसाइट और अन्य माध्यमों से विस्तार किया जाता है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक उसकी पहुंच हो सके। इसके लिए पूरी व्यवस्था बना रखी है।
इसके लिए किसी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। उन्होंने बताया कि इससे हिंदी का प्रचार-प्रसार करने में भी मदद मिलती है। साथ ही हिंदी के प्रति युवाओं में रुचि पैदा होती है, क्योंकि मौजूदा समय में युवा पीढ़ी अंग्रेजी भाषा से ज्यादा प्रभावित हो रही है।