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Farmer protest: आंदोलन में फिर से जान फूंकना चाहता है संयुक्त किसान मोर्चा, सरकार के खिलाफ किया बड़ा एलान

युक्त मोर्चा के नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि सरकार तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग को नहीं सुन रही है और उर्वरकों डीजल और पेट्रोल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। देश-प्रदेश में महंगाई अपने चरम पर है।

By Mangal YadavEdited By: Published: Sun, 16 May 2021 02:02 PM (IST)Updated: Sun, 16 May 2021 02:02 PM (IST)
Farmer protest: आंदोलन में फिर से जान फूंकना चाहता है संयुक्त किसान मोर्चा, सरकार के खिलाफ किया बड़ा एलान
पत्रकारों से बात करते संयुक्त किसान मोर्चा के नेता

नई दिल्ली/ सोनीपत, जागरण संवाददाता। कुंडली बार्डर पर तीनों कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन को 26 मई को छह माह पूरे हो जाएंगे। इसके अलावा 26 मई को वर्तमान केंद्र सरकार के सात साल भी पूरे होंगे। इसे देखते हुए संयुक्त किसान मोर्चा ने 26 मई को काला दिवस के रूप में मनाने का एलान किया है। संयुक्त किसान मोर्चा ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए यह जानकारी दी।

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पत्रकारों से बातचीत करते हुए संयुक्त मोर्चा के नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि सरकार तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग को नहीं सुन रही है और उर्वरकों, डीजल और पेट्रोल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। देश-प्रदेश में महंगाई अपने चरम पर है। लोग इस सरकार से त्रस्त हो चुके हैं।

सरकार पर लगाया गंभीर आरोप

एक सवाल के जवाब में राजेवाल ने कहा कि उन्होंने कभी बातचीत से इनकार नहीं किया है। जब भी सरकार बातचीत के लिए बुलाएगी, हम लोग अवश्य जाएंगे। कोरोना को लेकर राजेवाल ने कहा कि सरकार आंदोलन का बदनाम करने की एक और साजिश कर रही है। सरकार अपनी नाकामी छिपाने का प्रयास कर रही है। असलियत यह है कि आंदोलन स्थल पर कोई कोरोना नहीं है। असल में जो लोग गांव से बाहर शहरों में, औद्योगिक क्षेत्रों में नौकरी के लिए आवागमन करते हैं, वे कोरोना के वाहक बन रहे हैं। आमतौर पर गांव में किसान-मजदूरों में यह समस्या ज्यादा नहीं है। पत्रकारवार्ता के दौरान मंजीत सिंह राय, जगबीर आदि भी मौजूद थे।

बता दें कि केंद्र सरकार के खिलाफ किसान संगठनों के नेता दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर और दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर धरना दे रहे हैं। प्रदर्शनकारी केंद्र से तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। इस संबंध में केंद्र सरकार और किसान नेताओं के बीच कई दौर की वार्ता हो चुकी है लेकिन कोई आम सहमति नहीं बनी है। 


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