गणतंत्र दिवस परेड : दिल्ली की गलियों, सड़कों और अस्पतालों में काम करने वाले आम लोग बने खास मेहमान
परेड के दौरान कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों विदेशी राजनयिकों के अलावा ऐसे 565 अनजान लोग भी बतौर मेहमान शामिल हुए जो बुधवार को किसी सेलिब्रिटी की तरह नजर आए। इनमें दिल्ली के लोग भी शामिल थे जो विभिन्न पेशे से जुड़े हैं।
नई दिल्ली, जागरण आनलाइन डेस्क। दिल्ली-एनसीआर समेत देशभर में बुधवार को 73वां गणतंत्र दिवस मनाया गया। कोरोना वायरस संक्रमण के चलते लोगों ने बेहद सावधानी के साथ गणतंत्र दिवस का जश्न मनाया। वहीं, हर साल की तरह इस बार भी गणतंत्र दिवस का मुख्य समरोह दिल्ली के राजपथ पर आयोजित किया गया, जिसमें सेना ने जवानों ने हैरत भरे करतब दिखाए। परेड के दौरान कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों, विदेशी राजनयिकों के अलावा ऐसे 565 'अनजान' लोग भी बतौर मेहमान शामिल हुए, जो बुधवार को किसी सेलिब्रिटी की तरह नजर आए। इनमें दिल्ली के लोग भी शामिल थे, जो विभिन्न पेशे से जुड़े हैं। बतौर मेहमान शामिल होने वालों में सफाई कर्मचारी, नर्स और आटो रिक्शा चालक भी थे। कुलमिलाकर 562 मेहमानों में 250 निर्माण कार्य से जुड़े श्रमिक, 115 सफाई कर्मचारी, 100 आटोरिक्श चालक और 100 स्वास्थ्य कर्मचारी रहे।
मुश्किल भरा था कोरोना की शुरुआती दौर : रेणू नागर
नर्सों के कल्याण पर केंद्रित संस्था द ट्रेन्ड नर्सेस एसोसिएशन आफ इंडिया से जुड़ी रेणु नागर भी बतौर मेहमान गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल हुईं। उन्होंने बताया कि कोरोना वायरस का शुरुआती दौर बेहद मुश्किल भरा था। पीपीइ की मांग करते हुए नर्सें हमारे पास पहुंचती थीं। हमने नर्सों की शिकायतों का निवारण करने के लिए एक शिकायत प्रकोष्ठ की स्थापना भी की।
बतौर मेहमान गणतंत्र दिवस की परेड देखकर अच्छा लगा
नई दिल्ली नगर परिषद (एनडीएमसी) में बतौर सफाई कर्मचारी ढाई दशक से जुड़े अशोक कुमार (52) ने भी देशी-विदेशी मेहमानों के साथ गणतंत्र दिवस की परेड देखी। पत्नी और तीन बच्चों के साथ गाजियाबाद में में रहने वाले अशोक कुमार कनाट प्लेस इलाके में सफाई का काम करते हैं। अशोक का कहना है कि इससे पहले गणतंत्र दिवस परेड देखने का मौका ही नहीं मना। बुधवार को बतौर मेहमान शिरकत करने का मौका मिला तो बहुत अच्छा लगा। अशोक कुमार ने कोरोना काल में जमकर सफाई का काम किया, जब इसकी सर्वाधिक जरूरत थी। अशोक कुमार औसतन दिन में सुबह 6 बजे से दोपहर 2 बजे तक या फिर दोपहर 2 बजे से रात 10 बजे तक काम करते थे। जो उसे सौंपी गई शिफ्ट पर निर्भर करता है।
लाकडाउन के दौरान कई महीने नहीं मिला काम
पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के रहने वाले अक्षय तांती राष्ट्रीय राजधानी में निर्माणाधीन सेंट्रल विस्टा से जुड़े हैं और बतौर एक सहायक के रूप में काम करते हैं। वह कहते हैं कि मैं लगभग 50 दिनों से साइट पर काम कर रहा हूं। इससे पहले, मैं वडोदरा में एक अलग कंपनी में काम कर रहा था। अक्षय के मुताबिक, मार्च, 2020 में लाकडाउन के दौरान उन्हें मालदा में घर पर लौटना पड़ा और फिर कई महीने तक बिना काम के रहना पड़ा। हमें बाहर जाने की अनुमति नहीं थी। ऐसे में कभी-कभी काम और भोजन होता था, और कभी-कभी नहीं भी होता था। जरूरत पड़ने पर सफाई भी करते हैं। पश्चिम बंगाल में उनके दो बच्चे हैं।
कोरोना के दौरान आईं समस्याएं
प्रशिक्षित नर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया की सहायक महासचिव संघ मित्रा ने बताया कि पिछले दो साल नर्सों के लिए कठिन रहे हैं। उन्हें महामारी के दौरान कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। मसलन,नौकरी की अस्थिरता और काम करने की स्थिति के साथ आवास के मुद्दे भी गंभीर रहे। संघ मित्रा का कहना है कि हम चाहते हैं कि नर्सों को उनके प्रयास के लिए मान्यता मिले।