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1984 anti Sikh riots: उम्रकैद की सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे सज्जन कुमार

दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा सिख विरोधी दंगे में उम्रकैद की सजा सुनाए जाने के खिलाफ कांग्रेस नेता सज्जन कुमार ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।

By JP YadavEdited By: Published: Sat, 22 Dec 2018 02:39 PM (IST)Updated: Sat, 22 Dec 2018 02:51 PM (IST)
1984 anti Sikh riots:  उम्रकैद की सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे सज्जन कुमार
1984 anti Sikh riots: उम्रकैद की सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे सज्जन कुमार

नई दिल्ली, जेएनएन। दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा सिख विरोधी दंगे में उम्रकैद की सजा सुनाए जाने के खिलाफ कांग्रेस नेता सज्जन कुमार ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। यह अलग बात है कि सज्जन से पहले ही केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआइ) सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी है।

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वहीं, सीबीआइ ने 20 दिसंबर को ही सुप्रीम कोर्ट मे कैविएट दाखिल कर दी है, ताकि कोर्ट सज्जन कुमार को एकतरफा सुनवाई मे कोई राहत न दे दे। कोर्ट कोई भी आदेश देने से पहले सीबीआइ का भी पक्ष सुने।

1984 सिख विरोधी दंगा मामला
यहां पर बता दें कि दिल्ली हाई कोर्ट ने 1984 के सिख विरोधी दंगे के एक मामले में गत 17 दिसंबर को कांग्रेस के पूर्व सांसद और दिल्ली के दिग्गज नेता सज्जन कुमार को दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने सज्जन कुमार को जीवित रहने तक कैद में रहने की सजा दी है। इसी के साथ हाई कोर्ट ने सज्जन कुमार को सजा भुगतने के लिए 31 दिसंबर तक सरेंडर करने का आदेश दिया है, हालांकि उन्होंने 30 जनवरी तक सरेंडर के लिए राहत मिली थी, लेकिन कोर्ट ने राहत देने से मना कर दिया। अब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। 

सुप्रीम कोर्ट में सजा के खिलाफ अपील का नियम यह है कि अभियुक्त को अपील के साथ ही जेल जाने के सबूत के तौर पर सरेंडर सर्टिफिकेट लगाना पड़ता है तभी रजिस्ट्री अपील स्वीकार करती है। अगर सरेंडर सर्टिफिकेट नहीं लगाया तो सरेंडर से छूट मांगने की अर्जी दाखिल की जाती है। ज्यादातर मामलों में अभियुक्त सरेंडर से छूट मांगने की अर्जी दाखिल करते हैं।

क्या होती है कैविएट

कैविएट हाई कोर्ट से मुकदमा जीतने वाला पक्षकार सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करता है। इसका मतलब होता है कि अगर मुकदमा हारने वाला पक्षकार सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करे तो कोर्ट उसके हक में एकतरफा सुनवाई करके कोई फैसला न दे दे। कोर्ट मामले में कोई भी आदेश देने से पहले कैविएट दाखिल करने वाले पक्षकार का पक्ष भी सुने। कैविएट दाखिल होने से एकतरफा आदेश की आशंका नहीं रहती। दोनों पक्षों को सुनने के बाद ही कोई आदेश पारित होता है।


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