सड़क सुरक्षा सप्ताहः सर्दियों के साथ जोखिम में फंसी वाहन चालकों की जान
सरकार को संयुक्त राष्ट्र से वादा करना पड़ा है कि वह 2020 तक दुर्घटनाओं में 50 फीसद कमी लाएगी।
नई दिल्ली (संजय सिंह)। हर साल की तरह उत्तर भारत में सर्दियों के आगमन के साथ धुंध ने दस्तक दे दी है। इसके पीछे कोहरा भी आने वाला है। प्रदूषणकारी धुंध के कारण हुए भयानक हादसों ने पिछले दिनों उत्तर प्रदेश और पंजाब में कई निर्दोष जिंदगियों को लील लिया।
हालांकि, जानलेवा प्रदूषण रोकने के लिए तो सरकार और अदालतों ने सक्रियता दिखाई, लेकिन सालाना संकट के बावजूद धुंध से होने वाली सड़क दुर्घटनाओं की रोकथाम को लेकर कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं दिखाई देती है।
पिछले दिनों जब दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण के कारण धुंध का साया अपने चरमोत्कर्ष पर था, तब ग्रेटर आगरा एक्सप्रेसवे पर कई वाहनों के टकराने का भयावह वीडियो हममें से बहुतों ने वाट्सएप और टीवी चैनलों पर देखा होगा।
इस तरह की अनेक दुर्घटनाएं रोज देश केकिसी न किसी कोने में होती रहती हैं। परंतु हमें कुछ ही हादसों की खबर मिलती है, जिन्हें रूटीन समझकर हम आंखें फेर लेते हैं। हमारी संवेदनाएं तभी जागृत होती हैं, जब अपना कोई निकट संबंधी इनका शिकार होता है।
हमारे इस रवैये केपीछे सड़क दुर्घटनाओं के वे आंकड़े हैं, जो लाखों में दर्ज होते हैं। यही वजह है कि दो-चार लोगों की मौत का हमारे ऊपर कोई असर नहीं पड़ता, लेकिन इससे समस्या बढ़ती है।
2020 तक हादसों में 50 फीसद कमी का किया है वादा
भारत की सड़क दुर्घटनाओं को लेकर पूरी दुनिया चिंतित है। यहां तक कि सरकार को संयुक्त राष्ट्र से वादा करना पड़ा है कि वह 2020 तक दुर्घटनाओं में 50 फीसद कमी लाएगी।
इस दिशा में काम भी शुरू हो गया है जिसके परिणामस्वरूप 2017 में दुर्घटनाओं में मामूली कमी के संकेत मिले हैं। लेकिन आंकड़ा इतना विशाल और वजहें इतनी विविधतापूर्ण हैं कि साधारण उपायों से काम चलने वाला नहीं है।
हर साल मारे जाते हैं डेढ़ लाख से ज्यादा लोग
भारत में हर साल होने वाली पौने पांच लाख सड़क दुर्घटनाओं में डेढ़ लाख से ज्यादा लोग मारे जाते हैं। पांच लाख के करीब लोग घायल होते हैं। इन दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण कोहरा और धुंध है। यह एक ऐसी चीज है, जिससे निजात पाने का कोई कारगर उपाय सरकार लागू नहीं कर पाई है।
कहने को इधर देश में काफी बेहतर सड़कों का निर्माण होने लगा है। लेकिन रोड साइन और यातायात संकेतकों के मामले में हम अब भी विकसित देशों से कोसों दूर हैं।
हाईवे तो हाईवे हमारे यहां एक्सप्रेसवे पर भी सटीक संकेतकों का अभाव नजर आता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि हमारे यहां सड़क निर्माण के मुकाबले सड़क सुरक्षा उपायों पर बहुत कम राशि खर्च की जाती है।
यही कारण है कि ज्यादातर सड़कों पर साइन बोर्ड गलत जगहों पर लगाए गए हैं। उन पर लिखी इबारत इतनी छोटी है कि उसे दूर से पढऩा संभव नहीं होता।
इसके अलावा घुमाओं और तीखे मोड़ों पर मार्गदर्शक फ्लोरिसेंट तीरों की कमी स्पष्ट रूप से नजर आती है। इन हालात में एकमात्र वाहन चालक की खुद की सावधानी ही उसे मुसीबत से बचा सकती है।
लेन ड्राइविंग सुनिश्चित करने का कोई प्रावधान नहीं
देश के किसी भी हिस्से में अब तक राजमार्गों अथवा एक्सप्रेसवे पर लेन ड्राइविंग को सुनिश्चित नहीं किया जा सका है। जबकि विदेशों में हर लेन के लिए अलग स्पीड तय होती है और बिना उचित संकेत दिए लेन बदलने की अनुमति नहीं होती। संसद में प्रस्तुत नए सड़क सुरक्षा विधेयक में भी इसका कोई प्रावधान नहीं किया गया है।